Tag: मानवाधिकार

NSS शिविर का तीसरा दिन। मानवाधिकार जागरूकता कार्यक्रम आयोजित।
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NSS शिविर का तीसरा दिन। मानवाधिकार जागरूकता कार्यक्रम आयोजित।

*शिविर का तीसरा दिन* वैसे अधिकार जो लोगों के जीवन के लिये अति-आवश्यक या मौलिक समझे जाते हैं उन्हें मूल अधिकार कहा जाता है।भारत के नागरिकों को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 12 से 35 तक मूल अधिकार प्रदत किए गए हैं। हमें इन अधिकारियों के प्रति सजग होना चाहिए और अपने कर्तव्यों का भी निर्वहन करना चाहिए। यह बात इतिहास विभाग, ठाकुर प्रसाद महाविद्यालय, मधेपुरा के सहायक प्राध्यापक डॉ. अमिताभ कुमार ने कही। वे एनएसएस प्रथम इकाई के सात दिवसीय विशेष शिविर के तीसरे दिन मानवाधिकार जागरूकता कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने बताया कि आधुनिक विश्व में मानवाधिकार की अवधारणा संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान से लिया गया है। इसका वर्णन संविधान के भाग-3 में (अनुच्छेद 12 से अनुच्छेद 35) है। इसमें संशोधन हो सकता है और राष्ट्रीय आपात के दौरान (अनुच्छेद 352) जीवन एवं व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार को छ...
Bhupendalikaran aur Manvadhikar भूमंडलीकरण और मानवाधिकार
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Bhupendalikaran aur Manvadhikar भूमंडलीकरण और मानवाधिकार

विश्व मानवाधिकार दिवस की बधाई --------   पुस्तक प्रकाशित --- ठाकुर प्रसाद महाविद्यालय, मधेपुरा में दर्शनशास्त्र विभागाध्यक्ष एवं बीएनएमयू के उपकुलसचिव (स्थापना) डॉ. सुधांशु शेखर की पुस्तक 'गाँधी-अंबेडकर और मानवाधिकार' प्रकाशित हुई है। कुल 202 पृष्ठों की इस पुस्तक को के. एल. पचौरी प्रकाशन, गाजियाबाद (उत्तर प्रदेश) के तरूण विजय पचौरी ने हार्ड कवर में उच्च गुणवत्ता के साथ प्रकाशित किया है।   लेखक डॉ. सुधांशु शेखर ने बताया कि प्रस्तुत पुस्तक में प्रस्तावना एवं उपसंहार सहित कुल तेरह अध्याय हैं। प्रस्तावना में विषय की आवश्यकता को रेखांकित किया है। अध्याय दो से पाँच तक क्रमशः 'दलित', 'स्त्री', 'धर्म' एवं 'राष्ट्र' को गाँधी की दृष्टि से समझने की कोशिश की गई है। आगे अध्याय छः से नौ तक पुनः क्रमशः 'दलित', 'स्त्री', 'धर्म' एवं 'राष्ट्र' को डॉ. अंबेडकर की दृष्टि से व्याख...
Bhumandalikaran aur Manvadhikar भूमंडलीकरण और मानवाधिकार
SRIJAN.AALEKH

Bhumandalikaran aur Manvadhikar भूमंडलीकरण और मानवाधिकार

20. भूमंडलीकरण और मानवाधिकार ‘संयुक्त राष्ट्र संघ’ के चार्टर में मानव के मौलिक अधिकारों, मानव के व्यक्तित्व के गौरव तथा महत्व में तथा पुरूष एवं स्त्राी के समान अधिकारों के प्रति विश्वास व्यक्त किया गया है। ‘संयुक्त राष्ट्र संघ’ के अनुच्छेद-1 में ‘मानव अधिकारों के प्रति सम्मान को बढ़ावा देने और उसे प्रोत्साहित करने’ की बात कही गई है। वहीं अनुच्छेद-13 में ‘जाति, लिंग, भाषा अथवा धर्म के भेदभाव के बिना सभी के मानव अधिकार तथा मौलिक स्वतंत्राताओं की प्राप्ति में सहायता देना’ निहित है। अनुच्छेद-55 में भी ‘जाति, लिंग, भाषा या धर्म के भेदभाव के बिना सभी के लिए मानव अधिकारों तथा मौलिक स्वतंत्राताओं को बढ़ावा देने’ की बात कही गयी है।1 इसी तरह, ‘संयुक्त राष्ट्र संघ’ के अनुच्छेद-56 में यह प्रावधान है कि सभी सदस्य राष्ट्र मानव अधिकारों तथा मानव स्वतंत्राताओं की प्राप्ति के लिए संयुक्त राष्ट्रसंघ को अपना...
Mrityudand aur Manvadhikar मृत्युदंड और मानवाधिकार
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Mrityudand aur Manvadhikar मृत्युदंड और मानवाधिकार

19. मृत्युदंड और मानवाधिकार संप्रति ‘गैंग रेप’, ‘आतंकी हमले’ एवं ‘आॅनर-किलिंग’ जैसी घटनाओं में शामिल अभियुक्तों को ‘मृत्यदंड’ देने की माँग ज़ोर पकड़ रही है। इसके समर्थकों का कहना है कि ऐसे जघन्य अपराधों को रोकने का एकमात्रा तरीका ‘मृत्युदंड’ ही हो सकता है।1 ऐसे लोगों का यह भी कहना है कि क्रूर अपराधियों के साथ सख्ती बरतना चाहिए और उनसे ‘जैसे को तैसा’ वाला बर्ताव करना चाहिए। सामान्यतः कानूनी न्याय भी इस बात का समर्थक है कि अपराधी को उसके द्वारा किए गए कुकृत्य के बराबर दंड दिया जाए, यही अपराध रूपी बीमारी का कारगर इलाज है। ब्रेडले, हीगेल, कांट एवं मैकेंजी जैसे दार्शनिकों ने भी ऐसे कठोर इलाजों का समर्थन किया है।2 मैकेंजी के शब्दों में, ”समाज से अपराध का निराकरण तभी संभव है, जबकि अपराधी अपने अपराध का दंड प्राकृतिक एवं तार्किक रूप में अपनी क्रिया के परिणाम के रूप में देखता है।“3 इस तरह ‘मृत्युदंड’...
Dalit-Adhikar aur Manvadhikar दलित-अधिकार और मानवाधिकार
SRIJAN.AALEKH

Dalit-Adhikar aur Manvadhikar दलित-अधिकार और मानवाधिकार

18. दलित-अधिकार और मानवाधिकार ”मैं सोचता हूँ कि डाॅ. अंबेडकर को हिंदू-समाज की अन्यायपूर्ण विषमताओं के प्रति विद्रोह करने वाले के रूप में याद किया जाएगा। मुख्य बात यह है कि उन्होंने ऐसी स्थिति के विरूद्ध विद्रोह किया, जिसके प्रति हमें करना चाहिए और वास्तव में हमने किसी न किसी रूप में किया भी है।“1 जवाहरलाल नेहरू का यह कथन डाॅ. भीमराव अंबेडकर द्वारा मानवाधिकारों हेतु किए गए संघर्षों की ओर इशारा करता है। सचमुच, डाॅ. अंबेडकर का संपूर्ण जीवन-दर्शन मानवाधिकारों के लिए समर्पित था। उनके मानवाधिकार संबंधी विचारों के दो मुख्य तत्व हैंऋ नकारात्मक रूप से यह वर्ण-व्यवस्था की स्तरीय असमानताओं एवं अमानवीय निर्योग्यताओं का विरेधी है और सकारात्मक रूप में संविधान में परिलक्षित स्वतंत्राता, समानता एवं बंधुता आदि मानवीय मूल्यों का पोषक है। इस तरह इसमें न केवल दलितों, अपितु सभी शोषित-पीड़ित एवं वंचित समूहों ...
Dalit-Mukti aur Manvadhikar दलित-मुक्ति और मानवाधिकार
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Dalit-Mukti aur Manvadhikar दलित-मुक्ति और मानवाधिकार

17. दलित-मुक्ति और मानवाधिकार ‘संयुक्त राष्ट्र संघ’ द्वारा जारी ‘मानवाधिकारों के सार्वभौम घोषणा-पत्रा’ में कहा गया है, ”किसी भी व्यक्ति के साथ प्रताड़ना, क्रूरता, अमानवीयता एवं घृणित व्यवहार नहीं किया जाएगा।“ भारतीय संविधान में भी सभी नागरिकों को बिना किसी भेदभाव के छह मुख्य अधिकार दिए गए हैं। उन अधिकारों में मोटे तौर पर निम्न बातें शामिल हैं1, एक, समानता का अधिकार (अनुच्छेद-14-18), दो, स्वतंत्राता का अधिकार (अनुच्छेद-19 एवं 21), तीन, शोषण के विरूद्ध अधिकार (अनुच्छेद 23 एवं 24), चार, अंतःकरण की तथा धर्म को अबाध रूप में मानने, तदनुसार आचरण एवं उसका प्रचार करने की स्वतंत्राता (अनुच्छेद-23 एवं 24), पाँच, अल्पसंख्यकों का अपनी संस्कृति, भाषा एवं लिपि को बनाए रखने तथा अपनी रूचि की शिक्षा संस्थाओं की स्थापना एवं प्रशासन का अधिकार (अनुच्छेद-29 एवं 30) और छह, इन सभी मूल अधिकारों को प्रवर्तित करने क...
Aarakshan aur Manvadhikar आरक्षण और मानवाधिकार
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Aarakshan aur Manvadhikar आरक्षण और मानवाधिकार

16. आरक्षण और मानवाधिकार भारत में आरक्षण का मामला सीधे-सीधे वर्ण-व्यवस्था1 से जुड़ा है, जो बहुसंख्यकों के मानवाधिकार-हनन की एक अनोखी व्यवस्था थी। इस व्यवस्था के तहत समाज को चार वर्णों, यथाऋ ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य एवं शूद्र में बाँटा गया और उनके लिए अलग-अलग कार्य आरक्षित किए गए।2 वर्ण-व्यवस्था के विधानों के अनुसार राज पुरोहित, राजगुरु, न्यायाधीश एवं मंत्रियों के पद ब्राह्मणों के लिए आरक्षित थे।3 साथ ही शिक्षा पर उनका एक तरह से एकाधिकार था। इसी तरह क्षत्रियों के लिए ‘राजा’ का पद और सेना का क्षेत्रा आरक्षित था और वैश्यों को खेती, पशुपालन एवं व्यापार में आरक्षण दिए गए थे। वैसे, वर्ण-व्यवस्था द्वारा स्थापित आरक्षण-व्यवस्था अब प्रायः समाप्त हो गई है, मगर उससे ब्राह्मण, क्षत्राीय एवं वैश्य अभी भी फल-फूल रहे हैं। इसके विपरीत शूद्र आज भी इन विधानों से त्रास्त हैं। वर्ण-व्यवस्था के निर्माताओं ने ...
Bhartiy Samvidhan aur Manvadhikar भारतीय संविधान और मानवाधिकार
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Bhartiy Samvidhan aur Manvadhikar भारतीय संविधान और मानवाधिकार

15. भारतीय संविधान और मानवाधिकार ”मैं महसूस करता हूँ कि संविधान कितना भी अच्छा क्यों न हो, यदि वे लोग, जिन्हें संविधान को अमल में लाने का काम सौंपा जाए, खराब निकलें, तो निश्चित रूप से संविधान भी खराब सिद्ध होगा। दूसरी ओर, संविधान चाहे कितना भी खराब क्यों न हो, यदि वे लोग, जिन्हें संविधान को अमल में लाने का काम सौंपा जाए, अच्छे हों, तो संविधान अच्छा सिद्ध होगा। संविधान पर अमल केवल संविधान के स्वरूप पर निर्भर नहीं करता। संविधान केवल विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका जैसे राज्य के अंगों का प्रावधान कर सकता है। राज्य के उन अंगों का संचालन लोगों पर और उनके द्वारा अपनी आकांक्षाओं तथा अपनी राजनीति की पूर्ति के लिए बनाए जाने वाले राजनैतिक दलों पर निर्भर करता है। कौन कह सकता है कि भारत के लोगों और उनके राजनैतिक दलों का व्यवहार कैसा होगा? जातियों तथा संप्रदायों के रूप में हमारे पुराने शत्राुओं...
Varna-Vyavastha aur Manvadhikar वर्ण-व्यवस्था और मानवाधिकार
SRIJAN.AALEKH

Varna-Vyavastha aur Manvadhikar वर्ण-व्यवस्था और मानवाधिकार

11. भूमंडलीकरण और भारतीय सभ्यता हम जानते हैं कि प्राकृतिक संपदाओं और मानव संसाधनों की प्रचुरता के कारण भारत को ‘सोने की चिड़िया’ कहा जाता था। मगर, पश्चिमी सभ्यता के झंडाबरदारों ने इसे सपेरोें, लूटेरों, जटाजूट वाले संन्यासियों, धर्मांधों, गरीबों एवं असभ्यों का देश कहकर ही प्रचारित किया। यह एक औपनिवेशिक दृष्टि थी, जिसे भारत के कई नवशिक्षित बुद्धिजीवियों ने भी बौद्धिकता एवं प्रगतिशीलता के अहंकार में अपनाया था। तब गाँधी ने इस औपनिवेशिक दृष्टि के साथ-साथ ऐसे बुद्धिजीवियों के मानसिक दिवालियेपन को भी ‘हिंद-स्वराज’ में झकझोरने की कोशिश की थी। ‘हिंद-स्वराज’ में गाँधी ने यह दिखाने का प्रयास किया है कि हिंदुस्तान पश्चिमी सभ्यता के कारण ही गुलाम हुआ है और हिंदुस्तान की दुर्दशा के लिए अंग्रेजी राज से अधिक अंग्रेजी (पश्चिमी) सभ्यता जिम्मेदार है। इसलिए, यदि हम भारतीय पश्चिमी सभ्यता के माया-जाल से निकलकर ...
Vikas aur Manvadhikar विकास और मानवाधिकार
SRIJAN.AALEKH

Vikas aur Manvadhikar विकास और मानवाधिकार

13. विकास और मानवाधिकार भूमंडलीकरण के रथ पर सवार आधुनिक मानव ‘विकास’ की बुलंदियों पर है। आज उसके पास हैऋ आकाश को मुंह चिढ़ाते बहुमंजिले मकान, धरती की छाती लांघते द्रुतगामी वायुयान और हवा में बातें करते विकसित संचार-समान। वह अंतरिक्ष में चक्कर लगा रहा है, कर रहा है समुद्रतल पर क्रीड़ा और घूम रहा है लेकर दुनिया को अपनी मुट्ठी में! वह नदियों को रोक सकता है, पहाड़ों को तोड़ सकता है और हवाओं का रूख मोड़ सकता है। उसने धरती के सभी जीवों को अपने वश मंे कर लिया है और प्रकृति-पर्यावरण को जितने के लिए लगा रहा है जोर! यह है आधुनिक विकास के विश्वविजयी अभियान की कुछ कहानियाँ!! मगर, इस कहानी का दूसरा पहलू बड़ा ही भयावह है। पूरी दुनिया में प्रायः हर जगह लोगों के मानवाधिकारों का हनन हो रहा है। आज भी हम सभी लोगों को भोजन, वस्त्रा, आवास एवं चिकित्सा और शिक्षा, रोजगार एवं सुरक्षा आदि उपलब्ध कराने में नाकामयाब...