Tag: और

Dalit-Adhikar aur Manvadhikar दलित-अधिकार और मानवाधिकार
Uncategorized

Dalit-Adhikar aur Manvadhikar दलित-अधिकार और मानवाधिकार

18. दलित-अधिकार और मानवाधिकार ”मैं सोचता हूँ कि डाॅ. अंबेडकर को हिंदू-समाज की अन्यायपूर्ण विषमताओं के प्रति विद्रोह करने वाले के रूप में याद किया जाएगा। मुख्य बात यह है कि उन्होंने ऐसी स्थिति के विरूद्ध विद्रोह किया, जिसके प्रति हमें करना चाहिए और वास्तव में हमने किसी न किसी रूप में किया भी है।“1 जवाहरलाल नेहरू का यह कथन डाॅ. भीमराव अंबेडकर द्वारा मानवाधिकारों हेतु किए गए संघर्षों की ओर इशारा करता है। सचमुच, डाॅ. अंबेडकर का संपूर्ण जीवन-दर्शन मानवाधिकारों के लिए समर्पित था। उनके मानवाधिकार संबंधी विचारों के दो मुख्य तत्व हैंऋ नकारात्मक रूप से यह वर्ण-व्यवस्था की स्तरीय असमानताओं एवं अमानवीय निर्योग्यताओं का विरेधी है और सकारात्मक रूप में संविधान में परिलक्षित स्वतंत्राता, समानता एवं बंधुता आदि मानवीय मूल्यों का पोषक है। इस तरह इसमें न केवल दलितों, अपितु सभी शोषित-पीड़ित एवं वंचित समूहों ...
Dalit-Mukti aur Manvadhikar दलित-मुक्ति और मानवाधिकार
Uncategorized

Dalit-Mukti aur Manvadhikar दलित-मुक्ति और मानवाधिकार

17. दलित-मुक्ति और मानवाधिकार ‘संयुक्त राष्ट्र संघ’ द्वारा जारी ‘मानवाधिकारों के सार्वभौम घोषणा-पत्रा’ में कहा गया है, ”किसी भी व्यक्ति के साथ प्रताड़ना, क्रूरता, अमानवीयता एवं घृणित व्यवहार नहीं किया जाएगा।“ भारतीय संविधान में भी सभी नागरिकों को बिना किसी भेदभाव के छह मुख्य अधिकार दिए गए हैं। उन अधिकारों में मोटे तौर पर निम्न बातें शामिल हैं1, एक, समानता का अधिकार (अनुच्छेद-14-18), दो, स्वतंत्राता का अधिकार (अनुच्छेद-19 एवं 21), तीन, शोषण के विरूद्ध अधिकार (अनुच्छेद 23 एवं 24), चार, अंतःकरण की तथा धर्म को अबाध रूप में मानने, तदनुसार आचरण एवं उसका प्रचार करने की स्वतंत्राता (अनुच्छेद-23 एवं 24), पाँच, अल्पसंख्यकों का अपनी संस्कृति, भाषा एवं लिपि को बनाए रखने तथा अपनी रूचि की शिक्षा संस्थाओं की स्थापना एवं प्रशासन का अधिकार (अनुच्छेद-29 एवं 30) और छह, इन सभी मूल अधिकारों को प्रवर्तित करने क...
Aarakshan aur Manvadhikar आरक्षण और मानवाधिकार
Uncategorized

Aarakshan aur Manvadhikar आरक्षण और मानवाधिकार

16. आरक्षण और मानवाधिकार भारत में आरक्षण का मामला सीधे-सीधे वर्ण-व्यवस्था1 से जुड़ा है, जो बहुसंख्यकों के मानवाधिकार-हनन की एक अनोखी व्यवस्था थी। इस व्यवस्था के तहत समाज को चार वर्णों, यथाऋ ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य एवं शूद्र में बाँटा गया और उनके लिए अलग-अलग कार्य आरक्षित किए गए।2 वर्ण-व्यवस्था के विधानों के अनुसार राज पुरोहित, राजगुरु, न्यायाधीश एवं मंत्रियों के पद ब्राह्मणों के लिए आरक्षित थे।3 साथ ही शिक्षा पर उनका एक तरह से एकाधिकार था। इसी तरह क्षत्रियों के लिए ‘राजा’ का पद और सेना का क्षेत्रा आरक्षित था और वैश्यों को खेती, पशुपालन एवं व्यापार में आरक्षण दिए गए थे। वैसे, वर्ण-व्यवस्था द्वारा स्थापित आरक्षण-व्यवस्था अब प्रायः समाप्त हो गई है, मगर उससे ब्राह्मण, क्षत्राीय एवं वैश्य अभी भी फल-फूल रहे हैं। इसके विपरीत शूद्र आज भी इन विधानों से त्रास्त हैं। वर्ण-व्यवस्था के निर्माताओं ने ...
Bhartiy Samvidhan aur Manvadhikar भारतीय संविधान और मानवाधिकार
Uncategorized

Bhartiy Samvidhan aur Manvadhikar भारतीय संविधान और मानवाधिकार

15. भारतीय संविधान और मानवाधिकार ”मैं महसूस करता हूँ कि संविधान कितना भी अच्छा क्यों न हो, यदि वे लोग, जिन्हें संविधान को अमल में लाने का काम सौंपा जाए, खराब निकलें, तो निश्चित रूप से संविधान भी खराब सिद्ध होगा। दूसरी ओर, संविधान चाहे कितना भी खराब क्यों न हो, यदि वे लोग, जिन्हें संविधान को अमल में लाने का काम सौंपा जाए, अच्छे हों, तो संविधान अच्छा सिद्ध होगा। संविधान पर अमल केवल संविधान के स्वरूप पर निर्भर नहीं करता। संविधान केवल विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका जैसे राज्य के अंगों का प्रावधान कर सकता है। राज्य के उन अंगों का संचालन लोगों पर और उनके द्वारा अपनी आकांक्षाओं तथा अपनी राजनीति की पूर्ति के लिए बनाए जाने वाले राजनैतिक दलों पर निर्भर करता है। कौन कह सकता है कि भारत के लोगों और उनके राजनैतिक दलों का व्यवहार कैसा होगा? जातियों तथा संप्रदायों के रूप में हमारे पुराने शत्राुओं...
Varna-Vyavastha aur Manvadhikar वर्ण-व्यवस्था और मानवाधिकार
Uncategorized

Varna-Vyavastha aur Manvadhikar वर्ण-व्यवस्था और मानवाधिकार

11. भूमंडलीकरण और भारतीय सभ्यता हम जानते हैं कि प्राकृतिक संपदाओं और मानव संसाधनों की प्रचुरता के कारण भारत को ‘सोने की चिड़िया’ कहा जाता था। मगर, पश्चिमी सभ्यता के झंडाबरदारों ने इसे सपेरोें, लूटेरों, जटाजूट वाले संन्यासियों, धर्मांधों, गरीबों एवं असभ्यों का देश कहकर ही प्रचारित किया। यह एक औपनिवेशिक दृष्टि थी, जिसे भारत के कई नवशिक्षित बुद्धिजीवियों ने भी बौद्धिकता एवं प्रगतिशीलता के अहंकार में अपनाया था। तब गाँधी ने इस औपनिवेशिक दृष्टि के साथ-साथ ऐसे बुद्धिजीवियों के मानसिक दिवालियेपन को भी ‘हिंद-स्वराज’ में झकझोरने की कोशिश की थी। ‘हिंद-स्वराज’ में गाँधी ने यह दिखाने का प्रयास किया है कि हिंदुस्तान पश्चिमी सभ्यता के कारण ही गुलाम हुआ है और हिंदुस्तान की दुर्दशा के लिए अंग्रेजी राज से अधिक अंग्रेजी (पश्चिमी) सभ्यता जिम्मेदार है। इसलिए, यदि हम भारतीय पश्चिमी सभ्यता के माया-जाल से निकलकर ...
Vikas aur Manvadhikar विकास और मानवाधिकार
Uncategorized

Vikas aur Manvadhikar विकास और मानवाधिकार

13. विकास और मानवाधिकार भूमंडलीकरण के रथ पर सवार आधुनिक मानव ‘विकास’ की बुलंदियों पर है। आज उसके पास हैऋ आकाश को मुंह चिढ़ाते बहुमंजिले मकान, धरती की छाती लांघते द्रुतगामी वायुयान और हवा में बातें करते विकसित संचार-समान। वह अंतरिक्ष में चक्कर लगा रहा है, कर रहा है समुद्रतल पर क्रीड़ा और घूम रहा है लेकर दुनिया को अपनी मुट्ठी में! वह नदियों को रोक सकता है, पहाड़ों को तोड़ सकता है और हवाओं का रूख मोड़ सकता है। उसने धरती के सभी जीवों को अपने वश मंे कर लिया है और प्रकृति-पर्यावरण को जितने के लिए लगा रहा है जोर! यह है आधुनिक विकास के विश्वविजयी अभियान की कुछ कहानियाँ!! मगर, इस कहानी का दूसरा पहलू बड़ा ही भयावह है। पूरी दुनिया में प्रायः हर जगह लोगों के मानवाधिकारों का हनन हो रहा है। आज भी हम सभी लोगों को भोजन, वस्त्रा, आवास एवं चिकित्सा और शिक्षा, रोजगार एवं सुरक्षा आदि उपलब्ध कराने में नाकामयाब...
Bhumandalikaran aur Bhartiy Vikalp भूमंडलीकरण और भारतीय विकल्प
Uncategorized

Bhumandalikaran aur Bhartiy Vikalp भूमंडलीकरण और भारतीय विकल्प

12. भूमंडलीकरण और भारतीय विकल्प महात्मा गाँधी द्वारा हिंद-स्वराज’ में कहा है, ”यह सभ्यता ऐसी है कि अगर हम धीरज धरकर बैठे रहेंगे, तो इसकी चपेट में आए हुए लोग खुद की जलाई हुई आग में जल मरेंगे। ... यह सभ्यता दूसरों का नाश करने वाली और खुद भी नाशवान है।“1 उनकी इस भविष्यवाणी के संकेत आज हर तरफ दिखाई दे रहे हैं। ऐसे में इस तथाकथित भूमंडलीकरण से उत्पन्न चातुर्दिक संकटों के समाधान की दिशा में भी गंभीरतापूर्वक काम करने की जरूरत महसूस होने लगी है। इस क्रम में भारतीय चिंतन की ओर ध्यान जाना स्वभाविक है। भारतीय चिंतन सार्वभौमिक एवं सर्वकालिक है और आधुनिक संदर्भों में भी इसकी प्रासंगिकता, उपादेयता एवं स्वीकार्यता बढ़ती जा रही है। भूमंडलीकरण के भारतीय विकल्प को निम्न बिंदुओं में आसानी से समझा जा सकता हैऋ पण् समग्र विकास या सर्वोदय: भूमंडलीकरण का सबसे अहम मुद्दा हैऋ ‘विकास’, लेकिन दुर्भाग्य से इसे संकुचि...
Bhumandalikaran aur Bhartiy Sabhyta भूमंडलीकरण और भारतीय सभ्यता
Uncategorized

Bhumandalikaran aur Bhartiy Sabhyta भूमंडलीकरण और भारतीय सभ्यता

11. भूमंडलीकरण और भारतीय सभ्यता हम जानते हैं कि प्राकृतिक संपदाओं और मानव संसाधनों की प्रचुरता के कारण भारत को ‘सोने की चिड़िया’ कहा जाता था। मगर, पश्चिमी सभ्यता के झंडाबरदारों ने इसे सपेरोें, लूटेरों, जटाजूट वाले संन्यासियों, धर्मांधों, गरीबों एवं असभ्यों का देश कहकर ही प्रचारित किया। यह एक औपनिवेशिक दृष्टि थी, जिसे भारत के कई नवशिक्षित बुद्धिजीवियों ने भी बौद्धिकता एवं प्रगतिशीलता के अहंकार में अपनाया था। तब गाँधी ने इस औपनिवेशिक दृष्टि के साथ-साथ ऐसे बुद्धिजीवियों के मानसिक दिवालियेपन को भी ‘हिंद-स्वराज’ में झकझोरने की कोशिश की थी। ‘हिंद-स्वराज’ में गाँधी ने यह दिखाने का प्रयास किया है कि हिंदुस्तान पश्चिमी सभ्यता के कारण ही गुलाम हुआ है और हिंदुस्तान की दुर्दशा के लिए अंग्रेजी राज से अधिक अंग्रेजी (पश्चिमी) सभ्यता जिम्मेदार है। इसलिए, यदि हम भारतीय पश्चिमी सभ्यता के माया-जाल से निकलकर ...
Bhumandalikaran and Rastravad भूमंडलीकरण और राष्ट्रवाद
Uncategorized

Bhumandalikaran and Rastravad भूमंडलीकरण और राष्ट्रवाद

10. भूमंडलीकरण और राष्ट्रवाद हम जानते हैं कि ‘राष्ट्र’1 शब्द ‘रज्’ धातु में ‘ष्ट्रन्’ प्रत्यय लगाने पर बना है। इसका अर्थ हैऋ ‘देश’, ‘मुल्क’, ‘नेशन’ आदि। राष्ट्र के कुछ विशेष गुण हैं, जो उसे अराष्ट्रिक जनसमूहों से अलग करते हैं। यह किसी भौगोलिक क्षेत्रा की सीमा मात्रा नहीं है, बल्कि सभी नागरिकों के सम्मिलित अस्तित्व का नाम है।2 इसमें राष्ट्र के प्रति सार्वभौमिक एवं सर्वकालिक कर्तव्य एवं निष्ठा के तत्व निहित हैं। ‘राष्ट’ª की व्यापकता में सारी वैयक्तिक संकीर्णताएँ विलीन हो जाती हैं और सांस्कृतिक विभिन्नताओं का लोप हो जाता है। यही कारण है कि राष्ट्र-आराधना समस्त आराधनाओं में सर्वोपरि है। राष्ट्र का गौरवगान सर्वोत्तम भजन, राष्ट्रहित साधन सर्वश्रेष्ठ तप और राष्ट्र के लिए निःस्वार्थ निष्ठा पवित्रातम् यज्ञ माना गया है।3 संपूर्ण भारतीय जीवन-दर्शन में राष्ट्रवाद के तत्व विद्यमान हैं, लेकिन भारतीय रा...
Bhumandalikaran aur Sarvodaya भूमंडलीकरण और सर्वोदय
Uncategorized

Bhumandalikaran aur Sarvodaya भूमंडलीकरण और सर्वोदय

9. भूमंडलीकरण और सर्वोदय समग्र विकास की भारतीय परिकल्पना को ‘सर्वोदय’ कहते हैं। ‘सर्वोदय’ शब्द ‘सर्व’ और ‘उदय’ इन दो शब्दों के योग से बना है। ‘सर्व’ का अर्थ हैऋ ‘सब’ और ‘उदय’ का अर्थ हैऋ ‘विकास’। तदनुसार, ‘सर्वोदय’ शब्द के मुख्यतः तीन अर्थ हंैऋ ‘सबों का उदय’, ‘सब प्रकार से उदय’ और ‘सबों के द्वारा उदय’। यहाँ ‘सबों के उदय’ का अर्थ हैऋ सभी मनुष्यों, जीव-जंतुओं एवं चराचर जगत का विकास। ‘सब प्रकार से उदय’ का अर्थ हैऋ शारीरिक, मानसिक, आर्थिक, राजनैतिक एवं सामाजिक सभी दृष्टियों से विकास और ‘सबांे के द्वारा उदय’ का अर्थ हैऋ उदय या विकास में सबों की भागीदारी। सर्वोदय या समग्र विकास की यह परिकल्पना सदैव ही भारतीय सभ्यता संस्कृति के मूल में विद्यमान है। हजारों वर्षों पूर्व भारतीय ऋषि-मुनियों ने ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ और ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’ आदि उदगारों में सर्वोदय की भावना व्यक्त किया है। ‘उपनिषद्’ (व...