Uncategorized
Dalit-Adhikar aur Manvadhikar दलित-अधिकार और मानवाधिकार
18. दलित-अधिकार और मानवाधिकार
”मैं सोचता हूँ कि डाॅ. अंबेडकर को हिंदू-समाज की अन्यायपूर्ण विषमताओं के प्रति विद्रोह करने वाले के रूप में याद किया जाएगा। मुख्य बात यह है कि उन्होंने ऐसी स्थिति के विरूद्ध विद्रोह किया, जिसके प्रति हमें करना चाहिए और वास्तव में हमने किसी न किसी रूप में किया भी है।“1 जवाहरलाल नेहरू का यह कथन डाॅ. भीमराव अंबेडकर द्वारा मानवाधिकारों हेतु किए गए संघर्षों की ओर इशारा करता है। सचमुच, डाॅ. अंबेडकर का संपूर्ण जीवन-दर्शन मानवाधिकारों के लिए समर्पित था। उनके मानवाधिकार संबंधी विचारों के दो मुख्य तत्व हैंऋ नकारात्मक रूप से यह वर्ण-व्यवस्था की स्तरीय असमानताओं एवं अमानवीय निर्योग्यताओं का विरेधी है और सकारात्मक रूप में संविधान में परिलक्षित स्वतंत्राता, समानता एवं बंधुता आदि मानवीय मूल्यों का पोषक है। इस तरह इसमें न केवल दलितों, अपितु सभी शोषित-पीड़ित एवं वंचित समूहों ...