ICPR भारतीय दर्शन में मौजूद हैं जीवन-प्रबंधन के सूत्र : डॉ. इंदु पांडेय खंडुरी

*भारतीय दर्शन में मौजूद हैं जीवन-प्रबंधन के सूत्र : डॉ. इंदु पांडेय खंडुरी*

भारतीय दर्शन कोई कोरा सिद्धांत या बौद्धिक विलास नहीं है, बल्कि यह व्यावहारिक जीवन-दर्शन है। इसमें समग्र मानव जीवन और संपूर्ण चराचर जगत के कल्याण की कामना की गई है और उसके लिए स्पष्ट मार्ग भी बताए गए हैं। गहराई से देखने पर विशाल भारतीय वांग्मय में हर जगह सार्थक जीवन-प्रबंधन के सच्चे सूत्र मिल सकते हैं। हमें उन सूत्रों को समझने और अपने व्यावहारिक जीवन में अपनाने की जरूरत है।

यह बात हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय, श्रीनगर- गढ़वाल (उत्तराखंड) में दर्शनशास्त्र विभाग की अध्यक्ष एवं सुप्रसिद्ध मोटिवेशनल स्पीकर प्रो. (डॉ.) इंदु पांडेय खंडुरी ने कहीं। वे शुक्रवार को ‘भारतीय दर्शन में जीवन- प्रबंधन’ विषयक संवाद में मुख्य वक्ता थीं। कार्यक्रम का आयोजन शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार के अंतर्गत संचालित भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद् (आईसीपीआर) नई दिल्ली के स्टडी सर्किल योजना के तहत दर्शनशास्त्र विभाग, बीएनएमयू, मधेपुरा के तत्वावधान में किया गया।

डॉ. खंडुरी ने कहा कि भारतीय दर्शन का जीवन- प्रबंधन आज के व्यावसायिक क्षेत्र के प्रबंधन से बहुत भिन्न एवं व्यापक है। व्यावसायिक प्रबंधन व्यक्तिगत लाभ तक सीमित है। लेकिन भारतीय दर्शन में न केवल व्यक्तिगत जीवन, वरन् संपूर्ण समाज एवं चराचर जगत के कल्याण की कामना की गई है। भारतीय दर्शन का आदर्श ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ एवं उद्देश्य ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’ है।

उन्होंने कहा कि भारतीय दर्शन में समग्र जीवन एवं संपूर्ण के प्रबंधन के सूत्र मौजूद हैं। यहां सम्पूर्ण जीवन का लक्ष्य-प्रबन्धन (पुरुषार्थ), समय-प्रबन्धन (आश्रम व्यवस्था), गुण एवं योग्यता प्रबंधन (वर्ण-व्यवस्था) की अन्तर्दृष्टि मौजूद है। इसके अलावा संसाधन प्रबंधन की दृष्टि से त्यागपूर्ण उपभोग करने का आदर्श प्रस्तुत किया गया है।

उन्होंने बताया कि श्रीमद्भगवद्गीता में विषम परिस्थिति में निर्णय लेने का मार्गदर्शन है। न्याय में संवाद- सम्प्रेषण एवं सांख्य में योजना-निर्माण और योग एवं आयुर्वेद से समग्र स्वस्थ्य की अवधारणा मिलती है। वेदांत का साधन चतुष्टय व्यक्तिगत उन्नति के लिए प्रबंधन सूत्र सिद्ध हो सकता है और रामायण एवं महाभारत से जीवन के विभिन्न पक्षों के प्रबंधन की अंतर्दृष्टि प्राप्त की जा सकती है।

उन्होंने कहा कि भारतीय दर्शन में सफल जीवन प्रबन्धन की सार्थकता उनके व्यवहारिक जीवन मे उपयोग पर निर्भर है। अतः हमें भारतीय दर्शन में उपलब्ध जीवन-प्रबंधन के सूत्रों को वर्तमान युग की आवश्यकता के अनुरूप वर्तमान संदर्भ एवं शब्दावली में प्रस्तुत करने की जरूरत है।

इसके पूर्व विषय प्रवेश करते हुए पटना विश्वविद्यालय, पटना के पूर्व अध्यक्ष सह दर्शन परिषद्, बिहार के पूर्व अध्यक्ष डॉ. पूनम सिंह ने भारतीय दर्शन में जीवन- प्रबंधन के विभिन्न पहलुओं को स्पष्ट किया। उन्होंने बताया कि आज के भौतिकवादी युग में हम मानवीय मूल्यों, नैतिक संस्कारों एवं सामाजिक सरोकारों से कटते जा रहे हैं। ऐसे में भारतीय दर्शन आशा की किरण है।

इस अवसर पर मुख्य अतिथि अखिल भारतीय दर्शन परिषद् के अध्यक्ष एवं दर्शनशास्त्र विभाग, इलाहाबाद विश्वविद्यालय, प्रयागराज के पूर्व अध्यक्ष प्रो. जटाशंकर ने कहा कि कुछ पश्चिमी विद्वानों ने भारतीय दर्शन को जीवन निषेधक एवं निराशावादी बताया है। लेकिन वास्तव में संपूर्ण भारतीय दर्शन जीवन एवं जगत का प्रबंधन है‌। हमारे जीवन एवं जगत की ऐसी कोई भी समस्या नहीं है, जिसका समाधान भारतीय चिंतन परंपरा में मौजूद नहीं हो।

आशीर्वचन देते हुए सुप्रसिद्ध दार्शनिक डॉ. सभाजीत मिश्र ने कहा कि भारतीय दार्शनिकों ने मानव जीवन एवं संपूर्ण समाज को बेहतर बनाने के रास्ते बताए हैं। हम उनको अपनाकर अपने व्यक्तिगत एवं सामाजिक जीवन को बेहतर बना सकते हैं।

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए आईसीपीआर के पूर्व अध्यक्ष डॉ. रमेशचंद्र सिन्हा ने कहा कि हमें अपनी परंपराओं में मौजूद उदात्त एवं उपयोगी मूल्यों को सहजता पूर्वक अंगीकार करना चाहिए, जबकि जड़ एवं अनुपयोगी मूल्यों को छोड़ देना चाहिए।

कार्यक्रम के प्रश्नोत्तर सत्र में डॉ. आलोक टंडन और अन्य ने कई सार्थक प्रश्न उठाए। अतिथियों का स्वागत आयोजन सचिव सह उप कुलसचिव अकादमिक डॉ. सुधांशु शेखर ने किया।
संचालन श्रीनगर-गढ़वाल (उत्तराखंड) की सुप्रसिद्ध योग विशेषज्ञ डॉ. कविता भट्ट ‘शैलपुत्री’ और धन्यवाद ज्ञापन विश्वविद्यालय दर्शनशास्त्र विभागाध्यक्ष शोभाकांत कुमार ने किया। प्रांगण रंगमंच के प्रांगण रंगमंच की आरती आर्य एवं अर्जुन रॉकी ने स्वागत गीत प्रस्तुत किया।

इस अवसर पर पूर्व कुलपति डॉ. कुसुम कुमारी, डॉ.
गोविंद शरण (नेपाल), डॉ. राजकुमारी सिन्हा (कनाडा), डॉ. शैलेश कुमार सिंह (पटना), डॉ. रागिनी सिन्हा (महाराष्ट्र), डॉ. रामेश्वर, डॉ. सुनील सिंह, डॉ. संजय परमार, डॉ. जीयाउल हसन, डॉ. सविता कुमारी, अजीत कुमार, अनिमा कुमारी, आराधना, आशुतोष आनंद, अभिनव श्रीवास्तव, विजय शंकर, पंडित, चांदनी कुमारी, चंद्र किरण, डॉ. ओपी प्रभाकर, गुरुदेव कुमार, जयप्रकाश भारती, किरण कुमारी, ललिता कुमारी, मदन मोहन पंडित, माधव कुमार, नीतू कुमारी, नितेश कुमार, पूजा सिंह, विनय कुमार, पूनम यादव, प्रतिभा प्रिया, प्रिया सिंह, रमन भारती, रमेश चंदन, रश्मि दत्ता, रेशमा सुलताना, साक्षी कुमारी, नीलकमल चौधरी, सुनीता कुमारी, श्वेता सुमन, उमा शंकर पासवान, विद्यानंद यादव, विजय शंकर,विनय कुमार, जाकीर हुसैन आदि उपस्थित थे।

*सफलतापूर्वक संपन्न हो चुके हैं चार संवाद*
डॉ. शेखर ने बताया कि ‘स्टडी सर्किल’ आईसीपीआर की एक अत्यंत ही महत्वपूर्ण योजना है। इसके तहत लोगों का एक छोटा समूह नियमित रूप से एक वर्ष तक प्रत्येक माह एक पूर्व निर्धारित विषय पर संवाद और चर्चा-परिचर्चा करते हैं। बीएनएमयू, मधेपुरा में अब तक तीन संवाद सफलतापूर्वक संपन्न हो चुके हैं। प्रथम संवाद (अप्रैल 2022) में आईसीपीआर के पूर्व अध्यक्ष डॉ. रमेशचन्द्र सिन्हा ने ‘सांस्कृतिक स्वराज’ विषय पर मार्गदर्शन‌ दिया था। दूसरे संवाद में ‘गीता का दर्शन’ विषय पर अखिल भारतीय दर्शन परिषद् के अध्यक्ष प्रो. जटाशंकर मुख्य वक्ता थे। जून में तीसरा संवाद ‘मानवता के लिए योग’ विषय पर हुआ, जिसके मुख्य वक्ता पटना विश्वविद्यालय पटना के सेवानिवृत्त प्रोफेसर डॉ. एन. पी. तिवारी थे। चौथा संवाद 29 जुलाई (शुक्रवार) को भारतीय दर्शन में जीवन- प्रबंधन विषय पर संपन्न हुआ।

*मार्च 2023 तक के लिए विषय निर्धारित*
उन्होंने बताया कि स्टडी सर्किल के अंतर्गत अप्रैल 2022 से मार्च 2023 तक के लिए विषयों का निर्धारण किया जा चुका है। आगे वेदांत दर्शन : एक विमर्श (डाॅ. राजकुमारी सिन्हा, रांची), बौद्ध दर्शन की प्रासंगिकता (डॉ. वैद्यनाथ लाभ), नव वेदांत की प्रासंगिकता (स्वामी भवात्मानंद महाराज), समाज-परिवर्तन का दर्शन (डॉ. पूनम सिंह) एवं राष्ट्र-निर्माण में आधुनिक भारतीय चिंतकों का योगदान (डॉ. नरेश कुमार अम्बष्ट), टैगोर का मानववाद (डॉ. सिराजुल इस्लाम),
गांधी-दर्शन की प्रासंगिकता (डॉ. विजय कुमार) एवं सर्वोदय-दर्शन की प्रासंगिकता (डॉ. विजय कुमार) विषयक संवाद का आयोजन किया जाएगा।