कविता/ अपना क्या है / प्रोफेसर डाॅ. इंदु पाण्डेय खण्डूड़ी, अध्यक्षा, दर्शनशास्त्र विभाग, हे. न. ब.  गढ़वाल केन्द्रीय विश्वविद्यालय,श्रीनगर-गढ़वाल, उत्तराखंड

अपना क्या है
हवा, पानी, धूप, रोशनी
इंसान जाने कैसे सोचता है,
एक छोटा सा सृष्टि का अंश
पूरी सृष्टि पर अधिकार मानता है।
मुझे ही जिंदगी के हर पल,
ना जमीन मिली, ना आकाश का
कोई अनजाना सा टुकड़ा।
पत्तों की कोई हरियाली सी
कोई मुस्कुराहट नहीं होतीं।
फूलों की खुशबू जैसी तो
कोई खुशी की छाया तक नहीं।
फिर भी, आँसू और उदासी के बीच
भावनाओं को बादलों सा उड़ाया,
कैसे पकड़ते, अपना क्या है?

-प्रोफेसर डाॅ. इंदु पाण्डेय खण्डूड़ी, अध्यक्षा, दर्शनशास्त्र विभाग, हे. न. ब.  गढ़वाल केन्द्रीय विश्वविद्यालय,श्रीनगर-गढ़वाल, उत्तराखंड

इन्दु पाण्डेय खण्डूड़ी