SRIJAN.KAVITA

Poem। कविता। सिरजने का सुख
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Poem। कविता। सिरजने का सुख

सिरजने का सुख **************** खेत मेरा है, मेहनत मेरी है , पसीना मेरा बहा, मेहनत मैंने किया. बारिश में भींगते हुए, लू में तपते हुए, जाड़े में ठिठुरते हुए, बाढ़ में फंसते हुए, जीवन मैंने जिया, मेहनत मैंने किया। बीज के लिए, खाद के लिए, जुताई के लिए, बुआई के लिए, हमने साझा काम किया। हर क्षण हमने गीत गाया, कुदाल चलाते हुए, धान रोंपते हुए, फसल काटते हुए, फसल ओसाते हुए। खुश हैं हम, सिरजने के सुख से. लेकिन हमारी हर खुशी को हमसे छीनी जा रही है। हमारे आधार को हमसे दरकाया जा रहा है। अब हम किसके भरोसे रहेंगे ? ना तो खेत मेरी है, ना खाद मेरा है, ना पानी मेरा रहा, ना तो समाज मेरा रहा। आहिस्ता-आहिस्ता,                                                              हर हमारी चीज तुम्हारी हुई, पहले हमारी मेहनत गई,                                                      फिर हमारी एकता गई, ...
Poem। कविता। समय के समक्ष
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Poem। कविता। समय के समक्ष

समय के समक्ष जब- भिक्षुक हो जाएँ सभी विकल्प; जीवित रखना होता तब; अन्तःप्रज्ञा का ही दृढ़ संकल्प। लक्ष्य निष्ठुर हो जाते हैं जब- रातों में पहाड़ी पगडंडी -से; अपना लहू प्रपंच-मन में भर; जिजीविषा की दियासलाई से- चिमनी को जलाना होता तब। निचोड़ आँखों को स्वयं की; कामनाओं की बाती सुलगाना- जीवन-अनिवार्य प्रश्न-सा; उत्तर लिखकर भी; विकल्पहीन- असफल ही कहलाता; जबकि वह दिन-रात- वेश्या सा अपना तन-मन सुलगाता... डॉ कविता भट्ट 'शैलपुत्री'...
Poem। कविता। कैसा होगा देश का नजारा
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Poem। कविता। कैसा होगा देश का नजारा

कैसा होगा देश का नजारा एक तरफ आजादी तो दूसरी तरफ बंटवारा कैसा वीभत्स होगा हमारे देश का नजारा, एक तरफ मिलन तो दूसरी तरफ बेसहारा, लोगों का प्रेम तो लाशों की ढेर, बहुत मुश्किल से संभाला होगा देश हमारा। वो त्रासदी की रातें कैसे कटी होंगी, आजादी के लिए लहू से मिट्टी सनी होगी। अपनों का बिछड़ना क्या मरने से कम होगा, बिछड़ने वालों की आंखों में आंसू का समंदर होगा, बच्चों की बेबस आंखें अपनों को ढूंढती होंगी, अनगिनत लोगों को न जाने कितनी पीड़ा होगी। जिसके लहू में कट्टरता होगी उसे ये रात बहुत भाई होगी, लेकिन देशप्रेमियों की आंखें पथराई होगी। उस स्नेह का क्या विकल्प होगा, जिसने ना बिछड़ने की कसम खाई होगी। उस प्रेम का क्या नाम होगा, जिसने दूसरे मुल्क में पनाह पाई होगी। वो द्रवित क्षण, वो द्रवित पल क्या किसी के मन से भुलाई होगी। उस विभाजन वेदना से, किस आंगन की मिट्टी ने शीतलता पा...
Poem। कविता। तेरी लाडो। मोनिका राज
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Poem। कविता। तेरी लाडो। मोनिका राज

तेरी लाडो दुआओं को आँचल में लेकर , क्यों हुई मेरी विदाई माँ ? लाँघकर दहलीज़ को तेरे , क्या मैं हुई पराई माँ ?? जिस आँगन में बरसों खेला जिस मिट्टी में मैं पली-बढ़ी । उस बगिया को छोड़कर क्योंकर मैं ससुराल चली ?? कन्यादान औ' पगफेरे की , जाने किसने रस्म बनायी ? कलतक जो 'बिट्टो' थी तेरी , आज क्यूँ वो हुई परायी ?? निभाऊंगी हर वादे सारे , नहीं पराया धन हूँ मैं । मत छोड़ो तुम साथ मेरा, माँ अब भी तेरी 'लाडो' हूँ मैं ।। - मोनिका राज, पटना विश्वविद्यालय पटना...
Poem। कविता/ माँ/ धीरज कुमार
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Poem। कविता/ माँ/ धीरज कुमार

माँ तो होती है बस - "माँ" । माँ जैसी हीरा मिले कहाँ ।। इनकी तो बस बच्चों में ही है जहां ।।। हर कुछ करती, अपने बच्चों की खातिर । चाहे हो कोई भी माँ , यह बात है जाहिर।। माँ तो बच्चों की खातिर, हर कुछ करने को रहती तैयार । वह तो गाली बात क्या , खा लेती है मार।। ऐसी माँ को कभी मत करना लाचार । माँ की आँचल में ही, समझना अपना संसार।। माँ है एक अनमोल धन । इसे समझने का करो जतन।। इससे बड़ा न इस जहां में कोई रतन। धीरज कुमार छात्राध्यापक, ठाकुर प्रसाद महाविद्यालय, मधेपुरा                        भूपेंद्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय, लालूनगर, मधेपुरा...
Poem। कविता/मोबाइल फोन की दुनिया/मारूति नंदन मिश्र
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Poem। कविता/मोबाइल फोन की दुनिया/मारूति नंदन मिश्र

मोबाइल फोन की दुनिया में सब काम आसान हो गया मोबाइल सबका संसार हो गया सबको मोबाइल से लगाव हो गया जीवन मोबाइल में खो गया मोबाइल सबका जीवन हो गया नेताओं के लिए सभा स्थल हो गया बच्चों का स्कूल और क्रीड़ास्थल हो गया समय बिताने के लिए खिलौना हो गया इसके आगे पुस्तक का ज्ञान बौना हो गया यह सभी के लिए ज्ञान का भंडार हो गया जमाना ऑनलाइन का बड़ा सा बाजार हो गया दूर रहकर भी सब पास हो गया पास वाला कहीं और खो गया इस मायावी चमत्कार से सब परतंत्र हो गया यह उन्मुक्त कामना पूर्ण करने का यन्त्र हो गया काल्पनिक व्यवहार का राज हो गया मोबाइल ही अब समाज हो गया यही हंसाता, यही रुलाता, हमारी गति, यही चलाता ताकत,खबर और ज्ञान हो गया हमारा आंख, नाक और कान हो गया जीवन की शैली हो गया बच्चों का पालनहार हो गया भाई-बहन का प्यार और माता-पिता का दुलार हो गया यह किसी का नहीं मगर सब का हो गया बिगाड़...
Poem। मात्र भाषा नहीं मेरे लिए हिन्दी/ डॉ. दीपा
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Poem। मात्र भाषा नहीं मेरे लिए हिन्दी/ डॉ. दीपा

हिन्दी केवल भाषा नहीं है मेरे लिए, और न ज्ञान का भंडार मात्र, ही नहीं है मेरे लिए, एवं ये सोच है, भवनाओं से ओतप्रोत है, सम्वेदना है मेरी। माँ को देखकर एक शिशु के, चेहरे पर है जो आ जाती, वो मुस्कुराहट है मेरे लिए। मेरी संस्कृति, मेरी परम्पराओं से, है जो मुझे जोड़ती, ये वो सेतु है मेरे लिए। मैं जिसमें सोचती हूँ, हूँ गीत गुनगुनाती, और ख़्वाब संजोती जिसमें, यह वो अपनत्व की परिभाषा है मेरे लिए। हिंदी केवल मात्र भाषा, ही नहीं है मेरे लिए। ये झरनों का कलकल करके बहना, ये पक्षियों की चहचहाहट, ये पत्तों की सरसराहट है मेरे लिए। ये आत्मीयता की अमिट छाप, आनंद की अनुभूति, दूसरों के हृदय से है जो मुझे जोड़ती, अनमोल रिश्तों की, सुंदर माला है मेरे लिए। हिंदी केवल मात्र भाषा, ही नहीं है मेरे लिए। डॉ. दीपा सहायक प्राध्यापिका, दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली (बीएनएमयू संवाद के लिए...
Poem। कविता /अपनी तलाश में …/अंजलि आहूजा
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Poem। कविता /अपनी तलाश में …/अंजलि आहूजा

अपनी तलाश में हम मीलों चलते चले रास्ते ले चले कभी, कभी हम उन्हें ले चले। कई नातों रिश्तों में तलाशा स्वयं को हर रिश्ते ने जुदा मैं से मिलाया मैं को। सखियों, सहेलियों दोस्तों ने भी मिलाया कई बार लगा कि कुछ ढूँढ लिया, ढूँढना है किन्तु अपार। हर रूप में ख़ुद को पाया अलग बहुत ही अलग कितने हैं आयाम मेरे, क्या मैं भी हूँ ये जानी। सफ़र लंबा चला है, मंज़िल भी है उस पार न जाने कैसे हो आत्म साक्षात्कार जान सकूँ मैं भी स्वयं का रूप साक्षात्। परिचय अंजलि आहूजा ने अध्यापन कार्य से शिक्षा क्षेत्र में क़दम रखा। दिल्ली एवं गुड़गॉव के कई शिक्षा संस्थानों में शिक्षण कार्य करते हुए प्रिंसिपल के पद पर सेवारत रहीं। NET, B.Ed योग्यता प्राप्त करने के साथ विधि विज्ञान   (Forensic Science) की परा स्नातक शिक्षा प्राप्त की है। कैरियर काउंसिलंग, सॉफ़्ट स्किल ट्रेनिंग, टीचर ट्रेनिंग के साथ साथ वह प्रोफ़ेश...
Covid-19। गीत/ कोरोना/ सुधीर कुमार प्रोग्रामर
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Covid-19। गीत/ कोरोना/ सुधीर कुमार प्रोग्रामर

सौसे दुनिया कानै अखनी, भोकरी-भोकरी.. मारै कोरोना झमारी के, पकरी पकरी। चीन म जनम होलै, चीनें में जुवान हो जिनगी हसोती लेलकै, विदेशी हैवान हो भागे लागलै लोग, छोड़ी-छोडी़ नौकरी मारै कोरोना झमारी के पकरी पकरी। तालियो बजैलियै हो, थालियो बजैलियै नाक-मुंह झापै लेली, जालियो बनैलियै कानै ! दूर रही नूनियां, हकरी-हकरी मारै कोरोना झमारी के पकरी पकरी। डाक्टर-नर्स केरो, खतरा मं जान हो सिपाही के साथ, सरकारो परेशान हो लॉक में छै भूखली, बकरी-छकरी मारै कोरोना झमारी के,पकरी पकरी। आपनों ईलाज आबै आपन्हैं से करबै काम-काज चालू करी, बनी-ठनी रहबै कोरोना समेंटतै, हो झोला-झकरी मारै कोरोना झमारी के, पकरी पकरी। https://youtu.be/5IkmWRhveKI सुधीर कुमार सिंह उर्फ़ - सुधीर कुमार प्रोग्रामर पिता - श्री जगदीश प्रसाद सिंह जन्म तिथि - 1 अक्टूबर 1961 जन्म स्थान - ग्राम+ पो0 खड़िया थाना- बरिया...
गीत/ कोमल चितबन मधुर प्रेम तुम/ अश्विनी प्रजावंशी
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गीत/ कोमल चितबन मधुर प्रेम तुम/ अश्विनी प्रजावंशी

https://youtu.be/5IkmWRhveKI कोमल चितबन मधुर प्रेम तुम तुम्हीं तो जीवन थाती हो कब से मेरे लिये खड़ी तुम तुम्हीं दीये की बाती हो। पीयूष धार चंचल ये घटायें तुम्हीं तो मीठी फाग हो तुमसे ही जीवन महका है तुम्हीं राग अनुराग हो तेरे आलिंगन में बंधकर सुध बुध मैनें खोया है प्रेम मधुरस पीकर झूमा तेरी सुंदर काया है तुम्हीं तो मेरी प्राण दीपिका तम को दूर भगाती हो। शबनम सी है चमक तुम्हारी प्रीत गीत औ आश तुम्हीं यादों में तुम खिली खिली हो लगता जैसे पास तुम्हीं तुम वँशी की मधुर तान हो मगर टेर क्या पाता हूँ बाट घाट में जब भी मिलती तुम्हें घेर क्या पाता हूँ यह अनन्त जन्मों का मधुवन रोज तुम्हीं महकाती हो। कुछ तो बात हुई है देखो घटा घोर उत्पाती क्यों राह में ओले पड़े हुये हैं बूझ रही संझबाती क्यों अदा तुम्हारी लचक लचीली लगती रूपरति रमणी है मयंक भी तुम्हें देखता हँसती सौम...