Poem। मात्र भाषा नहीं मेरे लिए हिन्दी/ डॉ. दीपा

हिन्दी केवल भाषा नहीं है मेरे लिए,
और न ज्ञान का भंडार मात्र,
ही नहीं है मेरे लिए, एवं
ये सोच है, भवनाओं से ओतप्रोत है,
सम्वेदना है मेरी।
माँ को देखकर एक शिशु के,
चेहरे पर है जो आ जाती,
वो मुस्कुराहट है मेरे लिए।
मेरी संस्कृति, मेरी परम्पराओं से,
है जो मुझे जोड़ती,
ये वो सेतु है मेरे लिए।
मैं जिसमें सोचती हूँ,
हूँ गीत गुनगुनाती,
और ख़्वाब संजोती जिसमें,
यह वो अपनत्व की परिभाषा है मेरे लिए।
हिंदी केवल मात्र भाषा,
ही नहीं है मेरे लिए।
ये झरनों का कलकल करके बहना,
ये पक्षियों की चहचहाहट,
ये पत्तों की सरसराहट है मेरे लिए।
ये आत्मीयता की अमिट छाप,
आनंद की अनुभूति,
दूसरों के हृदय से है जो मुझे जोड़ती,
अनमोल रिश्तों की,
सुंदर माला है मेरे लिए।
हिंदी केवल मात्र भाषा,
ही नहीं है मेरे लिए।

डॉ. दीपा
सहायक प्राध्यापिका,
दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली

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