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Poem विषाद मन का/डॉ. कविता भट्ट ‘शैलपुत्री’, श्रीनगर गढ़वाल, उत्तराखंड
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Poem विषाद मन का/डॉ. कविता भट्ट ‘शैलपुत्री’, श्रीनगर गढ़वाल, उत्तराखंड

डॉ कविता भट्ट 'शैलपुत्री' श्रीनगर गढ़वाल, उत्तराखंड विषाद मन का, डूबते दिन- सा, लेखनी असहयोग कर बैठी। वो मेरी चूनर का सितारा तय था, उसकी प्रीत परायों से संयोग कर बैठी। हाथ में मौली -सा जिसका प्यार बाँधा, वही समय-गति, मेरा उपयोग कर बैठी। चुप है- झिर्री से आता हुआ उजाला, सूरज है- विमुख, किरण वियोग कर बैठी। अँधेरे में छोड़ दिया साथ परछाई-सा उसकी निष्ठा छल का प्रयोग कर बैठी। दीपक है मेरा प्यार आँधी से संघर्ष करेगा समर्पण की चेतना हठयोग कर बैठी। (बीएनएमयू संवाद के लिए आपकी रचनाएं एवं विचार सादर आमंत्रित हैं। आप हमें अपना आलेख, कहानी, कविताएं आदि भेज सकते हैं। संपर्क वाट्सएप -9934629245) ...
Poem। कविता / लहरें /अंजलि आहूजा, श्रीनगर गढ़वाल, उत्तराखंड पिन-246174
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Poem। कविता / लहरें /अंजलि आहूजा, श्रीनगर गढ़वाल, उत्तराखंड पिन-246174

लहरें ठंडी ठंडी लहरें, छू कर पैरों को जाती लहरें आती लहरें जाती लहरें लाती कुछ ले जातीं लहरें बलखातीं इठलातीं लहरें क्या कह जातीं हमसे लहरें चलते रहना, कभी न थमना मस्ती में बहना, कह जातीं लहरें मन की लहरें या लहरों में मन है जल में लहरें या लहरों में जल है। अंजलि आहूजा आहूजा भवन, कमलेश्वर रोड श्रीनगर गढ़वाल, उत्तराखंड पिन-246174 (बीएनएमयू संवाद के लिए आपकी रचनाएं एवं विचार सादर आमंत्रित हैं। आप हमें अपना आलेख, कहानी, कविताएं आदि भेज सकते हैं। संपर्क वाट्सएप -9934629245)...
कविता/जिनका बचपन जिनके कंधे पर है/ डॉ. कर्मानंद आर्य
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कविता/जिनका बचपन जिनके कंधे पर है/ डॉ. कर्मानंद आर्य

जिनका बचपन जिनके कंधे पर होता है उनकी जवानी उनके कंधे पर कभी नहीं होती यानी वह किसी और के कंधे पर सवार हो तय करती है शेष यात्रा एक ब्रह्मांड से दूसरे ब्रह्मांड तक एक ग्रह से दूसरे ग्रह तक एक दुनिया से दूसरी दुनिया तक शेष बची रहती है शरीर में बचे हुए बचपन की तरह वह पहाड़ सी उठ जाती है किसी ऊँची चीज की ही तरह गगनचुंबी बातें करती है उड़ती है आसमानों से ऊपर बनकर चील वह मुर्गे की तरह बांग देती है जगाती है श्रमशीलों को देखती है वहां से लौटकर बचपन के कंधों पर उभरे हुए घाव और मरहम अमरता कुछ नहीं एक शब्द मात्र है एक शब्दकोश में क्योंकि बचपन भी एक शब्द है जो सब डिक्शनरियों में नहीं मिलता जिनका बचपन जिनके कंधे पर कभी नहीं आता जिसके साथ साथ चलता रहता है उनका भाग्य विधाता वे बचपन की कीलों के बारे में क्या जानें वे सधी दलीलों के बारे में क्या जाने मेरा बचपन म...
कविता / मुझे अँधेरों में रखा / डॉ. कविता भट्ट ‘शैलपुत्री’ श्रीनगर-गढ़वाल, उत्तराखंड
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कविता / मुझे अँधेरों में रखा / डॉ. कविता भट्ट ‘शैलपुत्री’ श्रीनगर-गढ़वाल, उत्तराखंड

मुझे अँधेरों में रखा डॉ कविता भट्ट 'शैलपुत्री' श्रीनगर-गढ़वाल, उत्तराखंड मेरी सरलता ने मुझे अंधेरों में रखा, वरना, कोई कमी न थी मुझे उजालों की। उसके मोह ने इस शहर के फेरों में रखा, हवा न लगी मुझे मशहूर होने के ख्यालों की। झिर्रियों की रोशनी को बाँह के डेरों में रखा, जिससे घबरायी वो परछाईं थी मेरे ही बालों की। उसने हमराज़-हमदर्द शब्दों के ढेरों में रखा, नैनों की भाषा हारी, लिपि भावों के उबालों की। चाँद ने उस रात प्यार के घेरों में रखा, सूरज ने हमेशा गवाही दी मेरे पैरों के छालों की। दूर के पर्वत की चोटी को मैंने पैरों में रखा, जानकर 'कविता' अनदेखी करती रही चालों की डॉ. कविता भट्ट लेखिका/साहित्यकार, सम्पादिका तथा योग-दर्शन विशेषज्ञ हैं। आप 'उन्मेष' की राष्ट्रीय महासचिव के रूप में समाज सेवा में निरन्तर निरत हैं। शैक्षणिक एवं साहित्यिक लेखन हेतु आपको अनेक प्रत...
Poem। कविता। खुलेंगे घरों के दरवाजे/डॉ. सरोज
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Poem। कविता। खुलेंगे घरों के दरवाजे/डॉ. सरोज

खुलेंगे घरों के दरवाजे डॉ. सरोज खिसक गयी है                      महाशक्तियों के पैरों तले  की जमीन          कोरोना निगल रही                      जीवन सुरसा की तरह जीवनदान देने जूझ रहा धरती का भगवान, हर दिन हो रहे नए-नए प्रयोग महामारी मारने को नहीं बना अभी कोई वैक्सीन, धैर्य और संयम को बना लो दवा की पुड़िया घरों में कैद हो जाओ।                  अमेरिका, रूस, इटली, जापान दो-चार देश नहीं हर मुल्क में है मौत का मंजर, पर्वत श्रृंखलाओं की तरह खड़ा  हो रहा शवों का पहाड़ मानव जीवन पर बना महासंकट एक मुल्क की मक्कारी का वायरस विस्मित, असहाय, हताश है दुनिया            छिड़ा है महासंग्राम मानवता की रक्षा का मोर्चा पर सबसे आगे डटा है, अपने ही शहर में घर- परिवार, दुधमुंहे बच्चों से दूर अस्पतालों में सेवा दे रहे स्वास्थ्यकर्मी, सड़कों पर मुस्तैद जवान, जरूरतमंदों का सहारा बन रहे लोग...
Poem। कविता / तय नहीं कर पाते/प्रो. इन्दु पाण्डेय खण्डूड़ी दर्शन विभाग, हे. न. ब. गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय, श्रीनगर-गढ़वाल, उत्तराखण्ड
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Poem। कविता / तय नहीं कर पाते/प्रो. इन्दु पाण्डेय खण्डूड़ी दर्शन विभाग, हे. न. ब. गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय, श्रीनगर-गढ़वाल, उत्तराखण्ड

तय नहीं कर पाते, दुनिया के इस मेले में आकर्षणों की भरमार है। कहीं हंसी की खिलखिलाहट, कहीं मुस्कुराहट के उजाले। पसरी है खामोशियों की सांसें, कहीं आँसुओ की बरसात है। पर, मेरे अनजान रास्तों पर, सन्नाटे गूँजते रहते हैं अपनी तो ख्वाहिश बची नहीं लेकिन आसपास जरूरते चीखती हैं। शांति के समंदर में डूब जाऊ, या कर्तव्य के राह अनथक चलूँ, असमंजस के बादल कहाँ बरसे, हवा के झोंके तय नहीं कर पाते। प्रो. इन्दु पाण्डेय खण्डूड़ी दर्शन विभाग हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय श्रीनगर-गढ़वाल, उत्तराखण्ड  ...
POEM कविता / सच पूछो तो/ प्रो. . इन्दु पाण्डेय खण्डूड़ी दर्शन विभाग हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय श्रीनगर-गढ़वाल, उत्तराखंड
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POEM कविता / सच पूछो तो/ प्रो. . इन्दु पाण्डेय खण्डूड़ी दर्शन विभाग हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय श्रीनगर-गढ़वाल, उत्तराखंड

सच पूछो तो, कभी तो सच में लगता है कि मैं ही गलत हूँ। कुछ तो वजह होगी, दुनियादारी में मैं ही नासमझ हूँ। जब तक सामने वाले को, अपने नहीं, उसके नज़रिये से, समझे जाओ, मैं देवत्व से पूर्ण होती जाती हूँ पर जैसे ही अपने नजरिये से देखने की सोच भी आई मुझे मैं अहमक और नासमझ कही जाती हूँ, और हद तो तब होती जब झूठ पर पर्दा डालती हूँ, ताकि झूठ बोलने वाला शर्मिंदा न हो और वो इस सोच के साथ मुस्कुरा उठता है कि मैं उस पर विश्वास से, उसके झूठ तक पहुँच न सकी। सच पूछो तो,इसके बाद भी, मैं बस सामने वाले को शर्मिंदगी से बचा लेने में खुश हूँ। प्रो. इन्दु पाण्डेय खण्डूड़ी दर्शन विभाग हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय श्रीनगर-गढ़वाल, उत्तराखंड ...