BNMU। रवि जी के व्यक्तित्व में बड़प्पन था : शिवानंद तिवारी

रवि जी चले गए. रवि जी यानी डा. रमेंद्र कुमार रवि, भूतपूर्व सांसद, एक कुशल राजनेता, प्रख्यात शिक्षाविद और कवि. कोरोना उनको भी निगल गया. बहुत दिनों से उनसे मुलाकात नहीं थी. लेकिन उनके प्रति आदर और स्नेह भाव हमेशा बना रहा. बहुत शानदार इंसान, जब भी मिले गर्मजोशी के साथ. पता ही नहीं चलता था कि हम बहुत दिनों के बाद मिल रहे हैं.
आज की पीढ़ी के लोगों को नहीं मालूम होगा कि रवि जी ने ही मधेपुरा की अपनी लोकसभा सीट 1991 में शरद यादव के लिए छोड़ दी थी. इस प्रकार शरद यादव पहली दफा बिहार में मधेपुरा से लोकसभा का चुनाव लड़कर जीते थे. उसके बाद तो वे बिहार के ही होकर रह गए. रवि जी 1989 में मधेपुरा से चुनाव जीतकर लोकसभा में गए थे. 1991 में मंडल कमीशन लगाए जाने के विरोध में भाजपा ने वीपी सिंह की सरकार से समर्थन वापस ले लिया था. सरकार गिर गई थी. इस प्रकार लोकसभा का मध्यावधि चुनाव हो रहा था. रवि जी मधेपुरा से वर्तमान सांसद थे. इसलिए 1991 लोक सभा चुनाव के लिए जनता दल ने स्वभाविक रूप से उनको वहाँ से अपना उम्मीदवार बना दिया था. संयोग ऐसा हुआ कि चुनाव के दरमियान मधेपुरा चुनाव में किसी प्रत्याशी का देहांत हो गया था. फलस्वरूप नियमानुसार वहां का चुनाव टल गया था.
उसी चुनाव में शरद यादव उत्तर प्रदेश के बदायूं संसदीय क्षेत्र से लोकसभा का चुनाव लड़े थे. 1989 में जनता दल से लोकसभा का चुनाव लड़ कर वहीं से सांसद बने थे. 1991 में भी जनता दल की ओर से वे ही उम्मीदवार थे.
मुझे याद है, शरद जी के उस चुनाव अभियान में पटना से नितीश कुमार, जगता भाई और मैं साथ-साथ ही बदायूँ गए थे. हम लोग दो- तीन दिन बदायूँ में थे. लेकिन शरद जी वह चुनाव जीत नहीं पाए. अपनी हार से शरद जी तो परेशान थे ही हम लोग भी दुखी थे. इधर एक उम्मीदवार की मृत्यु के कारण मधेपुरा का चुनाव टल गया था. नए सिरे से वहां चुनावी प्रक्रिया शुरू हो रही थी. उसी समय शरद जी को मधेपुरा से चुनाव लड़ाने का ख्याल आया. लालू जी मुख्यमंत्री थे. मंडल अभियान से उनका कद बहुत ऊंचा उठ गया था. आडवाणी जी की गिरफ्तारी से उनकी लोकप्रियता में अभूतपूर्व वृद्धि हुई थी. शरद जी मधेपुरा से चुनाव लड़े, इसमें लालू जी की सहमति आवश्यक थी. नीतीश जी ने इस विषय में लालू जी से बात किया. लालू जी का कहना था कि अगर रवि जी तैयार हो जाएं तो मुझे कोई एतराज नहीं है.
बात काफी पुरानी हो गई है. लेकिन मुझे याद है कि बिहार सरकार का आम्रपाली होटल उस तनावपूर्ण गतिविधि का केंद्र था. रवि जी को घेर कर सब लोग बैठे थे. उनका मनावन हो रहा था. लोकसभा आप शरद जी को लड़ने दीजिये. आप राज्य सभा चले जाइए. संभवतः तीन-चार घंटे उत्तेजक माहौल में बातचीत चली. शरद जी भी बगल के कमरे में मौजूद थे. रवि जी के मन में भी शरद जी के लिए इज्ज़त थी. अंत में सबकुछ तय हुआ. वहीं प्रेस को बुलाया गया और रवि जी ने मधेपुरा लोकसभा चुनाव क्षेत्र से उम्मीदवार के रूप में अपना नाम वापस लिया और शरद यादव का नाम प्रस्तावित किया. इस प्रकार शरद जी 1991 का लोकसभा चुनाव मधेपुरा से लड़े और चुनाव जीते.
रवि जी के व्यक्तित्व में बड़प्पन था. मैंने कभी भी उनके मुंह से कोई ओछी बात नहीं सुनी. उनकी स्मृति के प्रति मैं सम्मान प्रगट करता हूँ और उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ.

शिवानन्द तिवारी, 15 मई, 2021