Independence Day स्वतंत्रता दिवस : संस्मरण/ सुधांशु शेखर

स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएँ
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आज स्वतंत्रता दिवस के शुभ अवसर पर मैं अपनी ओर से और बी. एन. मंडल विश्वविद्यालय, मधेपुरा परिवार की ओर से आप सबों को बधाई एवं शुभकामनाएँ देता हूँ। साथ ही अपने कुछ संस्मरण ‘शेयर’ कर रहा हूँ।
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स्वतंत्रता सेनानी नाना जी की यादें
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मैं सर्वप्रथम अपने नाना जी स्वतंत्रता सेनानी श्री राम नारायण सिंह (1910-1997) को सादर नमन करता हूँ। जैसा कि मैं पहले भी लिख चुका हूँ कि मेरे जीवन पर उनका काफी प्रभाव रहा है। इनके माध्यम से ही मुझे स्वतंत्रता संग्राम के बारे में मेरी प्रारम्भिक जानकारी मिली। नाना जी बताते थे कि उनकी पूरी मित्र मंडली महात्मा गाँधी और जयप्रकाश नारायण से प्रभावित थी। उनके क्षेत्रिय नेता थे श्री सुरेशचंद्र मिश्र, जो स्वतंत्रता के बाद विधायक भी बने थे।

जैसा कि मैंने पहले भी लिखा है कि नाना जी शतरंज के बेहतरीन खिलाड़ी थे और उनके साथी उन्हें ‘कप्तान’ कहकर बुलाते थे। इसके साथ ही उन्हें पहलवानी में भी महारत हासिल था। इस तरह वे तिक्ष्ण मस्तिष्क एवं बलशाली शरीर के विरल संगम थे।

यहाँ यह उल्लेखनीय है कि मेरे नानी गाँव माधवपुर (खगड़िया) में नाना जी के कई स्वतंत्रता सेनानी मित्र थे। इनमें से दो नाना जी के बेहद करीबी थे। स्वतंत्रता सेनानी मो. सादिक नदाब और स्वतंत्रता सेनानी श्री भूमी मंडल। ये दोनों प्रायः प्रतिदिन सुबह नाना जी से मिलने हमारे घर आते थे। इन लोगों में घंटों सहृदयतापूर्वक बातचीत होती थी। ये लोग गाँव-समाज एवं देश-दुनिया के मौजूदा हालातों पर बात करते थे और पुराने दिनों को भी याद करते थे। बीचबीच में स्वतंत्रता संग्राम की कहानियाँ भी चलती रहती थी। मैंने इन लोगों से गाँधी जी के बिहपुर आगमन, असहयोग आंदोलन आदि से जुड़े संस्मरण सुने थे।

नाना जी आंदोलन के दिनों के कुछ गीत भी गाते थे। उनका एक गीत “कहमां के दाल-चाऊर, कहमां के लकड़ी और कहमां में खिचड़ी पकैभो हे धनेसड़ी” मुझे आज भी याद है।

हमारे घर के पीछे ही मेरा मिडिल स्कूल स्थित था। वहाँ नाना जी भी स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस समारोह में शामिल हीते थे। स्कूल के रंगमंच पर प्रत्येक वर्ष सरस्वती पूजा के अवसर पर ‘नाटक’ खेलने की परंपरा है। अपने जवानी के दिनों में नाना जी ऐतिहासिक और स्वतंत्रता के मूल्यों से संबंधित नाटकों में भाग लेते थे। बाद में उन्होंने अभिनय करना छोड़ दिया, लेकिन नाटकों से उनका लगाव अंतिम दम तक बना रहा। मेले में कुश्ती प्रतियोगिता के आयोजन में भी उनकी अहम भूमिका होती थी।

दरअसल पहलवानों वाला कसरती शरीर, शतरंज की तिक्ष्ण बुद्धि और अभिनय कला, ये सभी नाना जी के स्वतंत्रता आंदोलन से अंतर्संबंधित थे। कसरती शरीर उन्हें दुश्मनों से मुकाबले के लिए जरूरी था। अपनी तिक्ष्ण बुद्धि से ये आंदोलन की रणनीति बनाते थे एवं अभिनय कला से ये दुश्मनों को चकमा देने में सफल हो जाते थे। ये कई बार अपना पहचान छुपाकर और नाम बदलकर भी आंदोलन का काम करते थे।
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स्कूल में समारोह
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मैं भी अपने मिडिल स्कूल के कार्यक्रम में बढ़चढ़ कर भाग लेता था। नाना जी मुझे अपने से बांस की बड़ी छड़ी में झंडा लगाकर देते थे। हम सभी विद्यार्थी अपने शिक्षकों के साथ ‘प्रभात फेरी’ करते थे। हम महात्मा गाँधी, भगत सिंह और अन्य स्वतंत्रता सेनानियों का जयघोष करते थे। हमारा दो प्रमुख नारा था। एक, ‘आज क्या है ? /पंद्रह अगस्त’ और ‘पंद्रह अगस्त मनाएंगे/ घर-घर झंडा फहराएंगे’। ये दोनों नारे आज भी मेरे मन-मस्तिष्क में बसे हुए हैं। अभी भी कोई अन्य दिनों में भी मुझसे पुछे कि ‘आज क्या है ?’, तो मेरे मन में उत्तर आता है ‘पंद्रह अगस्त’।

हमारे स्कूल में स्वतंत्रता दिवस पर कई प्रतियोगिताएं होती थीं। मैं ‘गणित-दौड़’ में हमेशा प्रथम आता था। दरअसल इस खेल में पहले एक ही सवाल को अलग-अलग पर्चे पर लिखकर कुछ दूरी पर रख दिया जाता था। फिर हमें दौड़कर किसी एक पर्चे के पास जाकर उसे खोलना होता था और उसे हलकर वापस अपनी जगह पर आना होता था। जो सबसे पहले सही हल (उत्तर) के साथ आता था, वह विजेता घोषित किया जाता था।

बाद में हाईस्कूल में भी मैं हमेशा स्वतंत्रता दिवस समारोह में शामिल होते रहा। मैं पंद्रह अगस्त के दिन के अखबारों को बहुत गौर से पढ़ता था और स्वतंत्रता दिवस से संबंधित महत्वपूर्ण आलेखों को संग्रहित करता था।
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काॅलेज और स्नातकोत्तर विभाग
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मैं पढ़ाई के दौरान अपने टी. एन. बी. काॅलेज और स्नातकोत्तर दर्शनशास्त्र (न्यू पीजी कैम्पस) के झंडोत्तोलन कार्यक्रम में अक्सर नहीं जाता था। मुझे यह सब औपचारिकता जैसा लगता था और औपचारिकताओं के निर्वहन में मुझे अक्सर आलस्य घेर लेता है। लेकिन मैं अपने गाँधी विचार विभाग के कार्यक्रम में शिरकत करता था। वर्ष 2017 के गणतंत्र दिवस (स्वतंत्रता दिवस नहीं) के अवसर पर मैं भुष्टा कार्यालय में आयोजित झंडोत्तोलन कार्यक्रम में गया था; जहाँ मेरे गुरु प्रोफेसर डाॅ. शंभु प्रसाद सिंह ने झंडोत्तोलन किया था।
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बीएनएमयू में स्वतंत्रता दिवस


2017 का स्वतंत्रता दिवस समारोह मैंने असिस्टेंट प्रोफ़ेसर (दर्शनशास्त्र) एवं जनसंपर्क पदाधिकारी के रूप में अपने ठाकुर प्रसाद महाविद्यालय, मधेपुरा और बी. एन. मंडल विश्वविद्यालय, मधेपुरा में मनाया था।

लगातार यह क्रम जारी है। यह एक नागरिक के रूप में मेरे मूलभूत कर्तव्य का हिस्सा है और हमारी सर्विस का एक अनिवार्य दायित्व भी।

-सुधांशु शेखर, असिस्टेंट प्रोफेसर एवं अध्यक्ष, स्नातकोत्तर दर्शनशास्त्र विभाग, ठाकुर प्रसाद महाविद्यालय, मधेपुरा (बिहार)