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BNMU परिसंपदा पदाधिकारी बने शंकर कुमार मिश्र
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BNMU परिसंपदा पदाधिकारी बने शंकर कुमार मिश्र

परिसंपदा पदाधिकारी बने शंकर कुमार मिश्र ठाकुर प्रसाद महाविद्यालय, मधेपुरा में मनोविज्ञान विभागाध्यक्ष डॉ. शंकर कुमार मिश्र ने शनिवार को बीएनएमयू का परिसंपदा पदाधिकारी के रूप में योगदान दिया।‌ इस अवसर पर कुलानुशासक डॉ. बी. एन. विवेका, विकास पदाधिकारी डॉ. ललन प्रसाद अद्री, उपकुलसचिव (स्थापना) डॉ. सुधांशु शेखर आदि उपस्थित थे। उपकुलसचिव (स्थापना) डॉ. सुधांशु शेखर ने बताया कि डॉ. मिश्रा ने बिहार लोक सेवा आयोग (बीपीएससी), पटना की अनुसंशा के आलोक में जुलाई 2017 में विश्वविद्यालय स्नातकोत्तर विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर के रूप में योगदान दिया है। इसके कुछ महिनों बाद ही उनको तत्कालीन कुलपति प्रो. अवध किशोर राय ने उन्हें संयुक्त सचिव की जिम्मेदारी दी थी। उन्होंने बताया कि संप्रति डॉ. मिश्रा ठाकुर प्रसाद महाविद्यालय में प्रतिनियोजित हैं और मनोविज्ञान विभागाध्यक्ष की जिम्मेदारियों का बखूब...
BNMU। अनुस्यूत बनाम अनुस्युत। बहादुर मिश्र
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BNMU। अनुस्यूत बनाम अनुस्युत। बहादुर मिश्र

अनुस्यूत बनाम अनुस्युत यह विषय मेरी प्राथमिकता सूची में नहीं था। एक दिन मैं पी-एच्.-डी. संचिका निबटा रहा था। एक विश्वविख्यात विश्वविद्यालय के ख्यात प्राचार्य का प्रतिवेदन पढ़ रहा था। उसमें एक स्थल पर ‘अनुस्युत’ का प्रयोग देखकर हतप्रभ रह गया; क्योंकि छात्र और शिक्षक- दोनों रूपों में उनकी यशस्विता असंदिग्ध रही है। पहले सोचा कि दूरभाष पर ही उनका भ्रम-निवारण कर दूँ। फिर विचार आया कि ‘पोस्ट’ ही डाल देता हूँ। इससे अन्य पाठक भी लाभान्वित हो जाएँगे। अन्यत्र इसके अनियंत्रित प्रयोग देख-देख कुढ़ ही रहा था कि उक्त महाशय की इस भाषिक विच्युति ने एतद्विषयक विमर्श के लिए तत्क्षण विवश किया। यह शब्द-विमर्श उसी चिन्ता की प्रसूति है। अनु+षिवु(तन्तुसन्ताने) >सिवु (आदेश)> सि (व् >ऊ) सि+ऊ (यण् सन्धि)= स्य् +ऊ = स्यू+ क्त > त = अनुस्यूत का अर्थ होता है-- अच्छी तरह सिला हुआ/ गज्झिन बुना हुआ/ सुशृंखलि...
Culture चार पर विचार …/मारूति नंदन मिश्र
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Culture चार पर विचार …/मारूति नंदन मिश्र

भारतीय संस्कृति विश्व की सर्वाधिक प्राचीन एवं समृद्ध संस्कृति है। यहाँ की संस्कृति और इतिहास पर गौर किया जाय तो "चार" (4) अंक महत्वपूर्ण दिखता है। कुछ रोचक तथ्य को सहेजकर प्रस्तुत कर रहा हूँ:- भारतीय संस्कृति में प्रमुख यज्ञ 4 होते है- अश्वमेध, पुरुषमेध, पितृमेध और सर्वमेध। धनुर्विज्ञान में 4 भाग होते हैं इसलिए इसे 'चतुष्पादम' भी कहा जाता है। ये है- ग्रहण, धारण, प्रयोग और प्रतिकार। भोज्य पदार्थ 4 है- लेह्य, पेय, खाद्य तथा चोस्य। हिन्दू विवाह प्रथा में 'चौथे' दिन चतुर्थी संस्कार का विशेष महत्त्व है।रूप,गुण, ज्ञान और क्षमा 'चारों' मिलकर नर को नरोत्तम बनाता है। ज्ञान प्राप्ति के मुख्य 4 साधन है- श्रद्धा, तत्परता, इंद्रिय संयम व योग संसिद्धि। शक्ति के 4 भेद होते हैं - योगशक्ति, कुलशक्ति, एश्वर्यशक्ति और विद्याशक्ति। आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद और आश्विन ये 4 मास चातुर्मास कहलाते हैं। यज...
Hindi तदुपरान्त बनाम तदोपरान्त / प्रोफेसर डॉ. बहादुर मिश्र, तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय, भागलपुर, बिहार
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Hindi तदुपरान्त बनाम तदोपरान्त / प्रोफेसर डॉ. बहादुर मिश्र, तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय, भागलपुर, बिहार

तदुपरान्त बनाम तदोपरान्त मेरे प्राध्यापकीय जीवन के प्रारम्भिक दिन थे। उनदिनों मैं भागलपुर के टी.एन.बी. काॅलेज में पदस्थापित था। बी. ए. के पाठ्यक्रम में हिन्दी की एक पुस्तक लगी थी, जिसका सम्पादन स्थानीय वरिष्ठ प्राध्यापक ने किया था। उस पुस्तक की भूमिका के अतिरिक्त हर पाठ के पूर्व लिखित कवि/लेखक-परिचय में कम-से-कम डेढ़ दर्जन स्थलों पर सम्पादक महोदय ने ‘तदुपरान्त’ की जगह ‘तदोपरान्त’ का प्रयोग कर रखा था। यह मेरे लिए हैरान करने वाली बात थी; क्योंकि अर्थ की दृष्टि से दोनों में स्प ष्ट अन्तर है। चलिए, दोनों के बीच का तात्त्विक अन्तर समझें। तत्+उपरान्त = तदुपरान्त (व्यंजन सन्धि) का शाब्दिक अर्थ होता है-- उसके बाद (आफ़्टर दैट)। आपने ‘तत्’ (वह ) शब्द रूप पढ़ा होगा। पुलिंग में सः (एकवचन)- तौ (द्विवचन)-ते (बहुवचन) स्त्रीलिंग में सा (एक वचन)-ते ( द्विवचन)-ताः(बहुवचन) तथा नपुंसक लिंग में तत्(एकवचन)-ते...