Vivekanand स्वामी विवेकानंद जयंती पर विशेष….। मेरे जीवन में विवेकानंद की प्रेरणा…। सुधांशु शेखर

स्वामी विवेकानंद जयंती पर विशेष….                      —-                                                                      स्वामी विवेकानंद युवाओं के प्रेरणास्रोत हैं। मुझे भी बचपन से ही स्वामी विवेकानंद के प्रति एक अतिरिक्त आकर्षण रहा है। बचपन से ही विभिन्न पत्र- पत्रिकाओं में उनके बारे में कुछ-ना-कुछ पढ़ने को मिलता रहा। मैट्रिक परीक्षा के बाद जब मैं कुछ दिनों के लिए पटना में रहता था, तो पटना से वापस घर लौटने के क्रम में अक्सर कोई-ना-कोई किताबें खरीदता था। इन किताबों में विवेकानंद की किताबें भी होती थीं।

मैंने टी. एन. बी. कॉलेज, भागलपुर में स्नातक (दर्शनशास्त्र) की पढ़ाई के दौरान ‘कदम्बिनी क्लब’, लालकोठी का गठन किया था। इस ‘क्लब’ में हम विवेकानंद सहित अन्य महापुरुषों की जयंतियाँ मानते थे। मैं विभिन्न छात्र संगठनों द्वारा युवा दिवस पर आयोजित विभिन्न प्रतियोगिताओं में भी भाग लेता था।

एक बार मैंने विवेकानंद जयंती के उपलक्ष्य में दिनकर भवन, भागलपुर में ‘अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद्’ द्वारा भाषण-प्रतियोगिता में प्रथम स्थान प्राप्त किया था। इस कार्यक्रम में पुरस्कार लेते हुए मेरी तस्वीर :हिंदुस्तान’ अखबार में छपी थी। शायद वह अखबारों में मेरी पहली स्पष्ट तस्वीर थी।

संयोग से उसी दिन भाषण प्रतियोगिता के तुरंत बाद मुझे मुझे अपने बड़े भाई समान दीपक कुमार सिंह के विशेष आग्रह पर उनके द्वारा बच्चों के लिए संचालित विद्यालय (विवेकानंद आश्रम, परबत्ती) में आयोजित कार्यक्रम में ‘स्वामी’ के वेश में जाना पड़ा। इस कार्यक्रम में दिए गए मेरे भाषण और उससे भी अधिक मेरे ‘स्वामी-रुप’ का  स्कूल के बच्चों और उनके अभिभावकों पर भी काफी गहरा प्रभाव पड़ा था। इसी की बानगी थी कि कार्यक्रम की समाप्ति के बाद परबत्ती समाज के सबसे महत्वपूर्ण हस्तियों में एक कामेश्वर यादव ने मुझे अपनी गाड़ी से मेरे आवास तक पहुंचा दिया था। खास बात यह कि इस कार्यक्रम की तस्वीर भी भाषण प्रतियोगिता के बगल में ही छपी थी।

एक बार ‘दैनिक जागरण’ के सप्ताहिक आयोजन ‘जागरण सिटी’ में मेरा एक आलेख (संयुक्त) ‘भागलपुर आए थे विवेकानंद’ मेरे मित्र अश्विनी कुमार के साथ प्रकाशित हुआ था। दरअसल, हम दोनों मित्रों ने विवेकानंद जयंती के अवसर पर अलग-अलग आलेख तैयार किया था। लेकिन फीचर इंचार्ज प्रणय प्रियंवद भाईजी ने बिना मेरी सहमति लिए ही मेरे आलेख के नीचे मेरे मित्र का लिखा कुछ अंश जोड़ दिया था। इससे यह आलेख और भी यादगार बन गया था।

आगे स्नातकोत्तर में पढ़ाई के दौरान भी मैं स्वामी विवेकानंद की जयंती पर आयोजित विभिन्न कार्यक्रमों में भाग लेता रहा और कुछ-न-कुछ लिखता-पढ़ता रहा। हमारे स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम में समकालीन भारतीय दर्शन पत्र मुझे सर्वाधिक प्रिय था। इसमें स्वामी विवेकानंद, रवीन्द्रनाथ टैगोर, श्रीअरविंद महात्मा गांधी, डॉ. भीमराव अंबेडकर, डॉ. राधाकृष्णन, के. सी. भट्टाचार्य, मोहम्मद इकबाल हमारे पाठ्यक्रम का भी हिस्सा थे।

मैंने अपने शोध शोध-प्रबंध ‘वर्ण-व्यवस्था और सामाजिक न्याय : डॉ. भीमराव अंबेडकर के विशेष संदर्भ में’ को तैयार करने के क्रम में पांच सौ से अधिक किताबें खरीदीं। इनमें बाबा साहेब अंबेडकर संपूर्ण वांग्मय के साथ-साथ विवेकानंद साहित्य का संपूर्ण साहित्य भी शामिल था। मेरे शोध-प्रबंध के एक उप-अध्याय में भी विवेकानंद के वर्ण-व्यवस्था संबंधी विचारों की चर्चा है।

मैंने वर्ष-2017 में भूपेंद्र मंडल विश्वविद्यालय, लालूनगर, मधेपुरा अंतर्गत ठाकुर प्रसाद महाविद्यालय, मधेपुरा में योगदानोपरांत हमने वहाँ विवेकानंद से संबंधित कई कार्यक्रमों का आयोजन किया है। वर्ष 2020 में जब लॉकडाउन के दौरान ऑनलाइन कक्षाओं का दौड़ चला, तो मैंने पहली कक्षा विवेकानंद के ‘सार्वभौम धर्म की अवधारणा’ पर ही लिया था। इस विषय पर बनाया गया मेरा विडियो मेरे प्रारंभिक ऑनलाइन विडियो में एक है। मैंने उसी दौरान अपने वेबसाइट www. bnmusamvad.com पर ‘सार्वभौम धर्म : विवेकानंद की दृष्टि में’ विषयक एक आलेख लिखा था।                                                                                        ‌       मेरे द्वारा आयोजित ‘सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के आयाम’ विषयक अंतरराष्ट्रीय सेमिनार में विवेकानंद पर कई आलेख आए थे। इसमें हमारे विश्वविद्यालय के प्रथम पूर्णकालिक कुलपति एवं सुप्रसिद्ध राष्ट्रवादी चिंतक प्रो. (डॉ.) अमरनाथ सिन्हा का आलेख ‘विवेकानंद का सांस्कृतिक राष्ट्रवाद’ भी शामिल है। मुझे इस बात का खेद है कि कतिपय कारणों से इस सेमिनार का ‘प्रोसिडिंग’ अबतक प्रकाशित नहीं हो पाया है। लेकिन मैं स्वामी विवेकानंद जी की पुण्यतिथि (चार जुलाई) तक इस ‘प्रोसिडिंग’ के प्रकाशन की कोशिश करूँगा।

बहुत-बहुत धन्यवाद।                                          –सुधांशु शेखर, असिस्टेंट प्रोफेसर एवं अध्यक्ष, स्नातकोत्तर दर्शनशास्त्र विभाग, ठाकुर प्रसाद महाविद्यालय, मधेपुरा (बिहार) www.bnmusamvad.com YouTube.com/bnmusamvad