Tag: srijan.aalekh

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Bharat महाराणा प्रताप की पुण्य तिथि पर (9 मई 1540–19 जनवरी 1597)

महाराणा प्रताप की पुण्य तिथि पर (9 मई 1540--19 जनवरी 1597) ----------------- सुरेंद्र किशोर, पटना --------------- ब्रिटिश सरकार ने जार्ज पंचम के दिल्ली दरबार(सन 1911) में हाजिर होने से सिर्फ महाराणा प्रताप के वंशज को छूट दी थी। याद रहे कि सारे भारतीय राजाओं की यह मजबूरी होती थी कि वे ब्रिटिश किंग के सामने झुककर उन्हें नजराना दें। ------------------------ चूंकि महाराणा के वंशज इसके लिए तैयार नहीं थे,इसलिए अंग्रेजों ने उन्हें यह छूट दे दी थी।किसी अन्य राजा-महाराजा को ऐसी छूट नहीं मिली थी।(-एम.ओ.मथाई लिखित पुस्तक ‘‘नेहरू के साथ तेरह वर्ष’’से) -------------------- मध्यकाल के इतिहास लेखन के बारे में नेहरू युग के कम्युनिस्ट इतिहासकारों ने नये इतिहास लेखकों को यह निदेश दिया था कि महाराणा प्रताप और छत्रपति शिवाजी के त्याग, वीरता आदि की चर्चा करते हुए इतिहास मत लिखो ...
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मोहनदास अब महात्मा था रेलगाड़ी के तीसरे-दर्ज़े से भारत-दर्शन के दौरान मोहनदास ने वस्त्र त्याग दिये थे। अब मोहनदास सिर्फ़ लँगोटी वाला नँगा-फ़क़ीर था और मोहनदास को महात्मा पहली बार कवीन्द्र-रवींद्र ने कहा। मोहनदास की हैसियत अब किसी सितारे-हिन्द जैसी थी और उसे सत्याग्रह, नमक बनाने, सविनय अवज्ञा, जेल जाने के अलावा पोस्टकार्ड लिखने, यंग-इंडिया अख़बार के लिये लेख-सम्पादकीय लिखने के साथ बकरी को चारा खिलाने, जूते गांठने जैसे अन्य काम भी करने होते थे। राजनीति और धर्म के अलावा महात्मा को अब साहित्य-संगीत-संस्कृति के मामलों में भी हस्तक्षेप करना पड़ता था और इसी क्रम में वे बच्चन की 'मधुशाला', उग्र के उपन्यास 'चॉकलेट' को क्लीन-चिट दे चुके थे और निराला जैसे महारथी उन्हें 'बापू, तुम यदि मुर्गी खाते' जैसी कविताओं के जरिये उकसाने की असफल कोशिश कर चुके थे। युवा सितार-वादक विलायत खान भी गाँधी को अपन...
Premchand शतरंज के खिलाड़ी ” कहानी के प्रकाशन के 100 साल  ——————————–  शतरंज के खिलाड़ी और कफ़न : प्रेमचंद की दो कहानियां 
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Premchand शतरंज के खिलाड़ी ” कहानी के प्रकाशन के 100 साल ——————————– शतरंज के खिलाड़ी और कफ़न : प्रेमचंद की दो कहानियां 

"शतरंज के खिलाड़ी " कहानी के प्रकाशन के 100 साल -------------------------------- शतरंज के खिलाड़ी और कफ़न : प्रेमचंद की दो कहानियां  प्रेमकुमार मणि, पटना    प्रेमचंद ने दो सौ से अधिक कहानियां लिखी है, जिनमें से कोई बीस कहानियां अलग-अलग कारणों से रेखांकित करने योग्य हैं. कफ़न,पूस की रात, शतरंज के खिलाड़ी, सवा सेर गेहूं, सद्गति, ठाकुर का कुआँ, ईदगाह, बड़े भाई साहब, नमक का दरोगा और पंच-परमेश्वर जैसी कहानियां मुझे भी काफी पसंद हैं; लेकिन यहाँ मैं केवल दो कहानियों की विवेचना करना चाहूंगा. ये हैं- शतरंज के खिलाडी और कफ़न. यह चुनाव इसलिए कर सका हूँ कि मुझे लगता है,इनके माध्यम से हम न केवल प्रेमचंद को, बल्कि उनके दौर को भी समझ सकते हैं. इससे यह बात भी निकलती है कि प्रेमचंद अपने समय के अन्य लेखकों से किस तरह अलग थे.   ' शतरंज के खिलाड़ी ' 1924 में लिखी गई थी और पहली दफा ' मा...
Sansmaran बारह मालिक पूंजी नाश!
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Sansmaran बारह मालिक पूंजी नाश!

बारह मालिक पूंजी नाश! ========== मेरा बचपन मेरे नानी घर माधवपुर, खगड़िया (बिहार) में बीता है और स्वाभाविक रूप से ननिहाल परिवार का मेरे जीवन-दर्शन पर अमिट छाप है। विशेष रूप से स्वतंत्रता सेनानी नाना जी (राम नारायण सिंह) द्वारा सुनाई गई धर्मग्रंथों के किस्से एवं स्वतंत्रता आंदोलन की कहानियाँ और नानी माय (सिया देवी) की कहावतों का मेरे ऊपर गहरा प्रभाव पड़ा है। इन किस्से- कहानियों एवं कहावतों में मुझे जीवन एवं जगत को समझने का सूत्र मिलता है।   मैंने लाॅकडाउन के दौरान नानी की दर्जनों कहावतों को वर्णानुक्रम से लिखा था, लेकिन मोबाइल की तकनीकी खराबी के कारण वह मिट गया। फिर से लिखने का प्रयास कर रहा हूँ। तैयार होने पर, आप सबों की सेवा में प्रस्तुत करूँगा। अभी आज मुझे नानी जी की एक कहावत याद आ रही है, "बारह मालिक पूंजी नाश।" आशय स्पष्ट है! शेष आप सभी समझदार हैं, विस्तार अनपेक्ष...
Vivekanand विवेकानन्द के जन्मदिन पर ————————-  उठो ,जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य की प्राप्ति न हो जाय…  प्रेमकुमार मणि
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Vivekanand विवेकानन्द के जन्मदिन पर ————————- उठो ,जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य की प्राप्ति न हो जाय… प्रेमकुमार मणि

विवेकानन्द के जन्मदिन पर ------------------------- उठो ,जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य की प्राप्ति न हो जाय... प्रेमकुमार मणि, पटना (बिहार) विवेकानंद ( 12 जनवरी 1863 - 4 जुलाई 1902 ) के प्रति मैंने हमेशा एक जिज्ञासु भाव रखा है. जब हाई स्कूल का विद्यार्थी था, तब मैं उनके प्रति आकर्षित हुआ और उनके बारे में जितना कुछ मिलता ध्यान से पढता. उनके जीवन के बारे में हम ने अपने पाठ्यक्रम में कुछ जान लिया था. उनका चित्र सम्मोहित करता था. एक शांत -चित्त, स्वस्थ और सुन्दर युवा चेहरा बरबस बुद्ध-मूर्तियों की याद दिलाता था. एक पददलित देश -समाज मानो उनके व्यक्तित्व में अपनी पहचान अथवा अस्मिता के साथ उभर रहा हो. वह आध्यात्मिक थे, सामाजिक -क्रांतिकारी भी. उन्हें अपने देश -समाज की चिंता थी. और कुल मिला कर वह खुले दिमाग से सोचने पर जोर देते थे, जैसे कि बुद्ध देते थे. इसलिए मैं अपनी किशोरावस्था में...
Vivekanand स्वामी विवेकानंद जयंती पर विशेष….। मेरे जीवन में विवेकानंद की प्रेरणा…। सुधांशु शेखर
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Vivekanand स्वामी विवेकानंद जयंती पर विशेष….। मेरे जीवन में विवेकानंद की प्रेरणा…। सुधांशु शेखर

स्वामी विवेकानंद जयंती पर विशेष....                      ----                                                                      स्वामी विवेकानंद युवाओं के प्रेरणास्रोत हैं। मुझे भी बचपन से ही स्वामी विवेकानंद के प्रति एक अतिरिक्त आकर्षण रहा है। बचपन से ही विभिन्न पत्र- पत्रिकाओं में उनके बारे में कुछ-ना-कुछ पढ़ने को मिलता रहा। मैट्रिक परीक्षा के बाद जब मैं कुछ दिनों के लिए पटना में रहता था, तो पटना से वापस घर लौटने के क्रम में अक्सर कोई-ना-कोई किताबें खरीदता था। इन किताबों में विवेकानंद की किताबें भी होती थीं। मैंने टी. एन. बी. कॉलेज, भागलपुर में स्नातक (दर्शनशास्त्र) की पढ़ाई के दौरान 'कदम्बिनी क्लब', लालकोठी का गठन किया था। इस 'क्लब' में हम विवेकानंद सहित अन्य महापुरुषों की जयंतियाँ मानते थे। मैं विभिन्न छात्र संगठनों द्वारा युवा दिवस पर आयोजित विभिन्न प्रतियोगिताओं में भी भाग लेता...
Madhepura वार्षिक खेलकूद प्रतियोगिता के बहाने…
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Madhepura वार्षिक खेलकूद प्रतियोगिता के बहाने…

वार्षिक खेलकूद प्रतियोगिता के बहाने... ---- आज 09 जनवरी, 2023 को माया विद्या निकेतन, मधेपुरा में वार्षिक खेलकूद प्रतियोगिता के पुरस्कार वितरण समारोह में भाग लेने का अवसर मिला। इसके लिए आदरणीय बड़ी बहन सह संस्थान की निदेशिका श्रीमती चंद्रिका यादव और प्रिय छोटे भाई सह संस्थान के शिक्षक श्री हर्षवर्धन सिंह राठौड़ के प्रति बहुत-बहुत आभार। कार्यक्रम में शामिल होकर हमें अपने बचपन की याद आ गई। हमारे नानी गांव के मध्य विद्यालय में उस जमाने में प्रत्येक वर्ष विभिन्न प्रतियोगिताएं आयोजित होती थीं। मैं प्रायः खेलकूद में कम रुचि लेता था, लेकिन मैं गणित-दौड़ में हमेशा प्रथम रहता था। एक बार मैंने गणित-दौड़ में प्रथम किया था और मेरे साथ पढ़ने वाली मेरी बड़ी बहन नीतु कुमारी  सूई-दौड़ में प्रथम आई थीं। फिर मैं अपने टी. एन. बी. महाविद्यालय, भागलपुर में भी स्नातक की पढ़ाई के दौरान महाविद्यालय...