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Poem डाकिये से भेंट। विनय सौरभ।
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Poem डाकिये से भेंट। विनय सौरभ।

डाकिये से भेंट। विनय सौरभ ऐसी तेज़ होती बारिश में तक़रीबन पच्चीस सालों के बाद वे मिलेंगे/यह हैरत होती है सोच कर!/वे मिले मुझे एक दवाई की दुकान पर/बारिश की बौछारों से बचते हुए/बरसों देखे गये उस चेहरे को/भूलना असंभव था!/आप यहां कैसे?/रोमांच से और थोड़े संकोच से/ मैंने पूछा-बहुत मोटे चश्मे के शीशे के भीतर से झांकते हुए/उन्होंने मुझे ताका और एकाएक आ गयी मुस्कान के बीच/कहा कि पहचान में अब दिक्क़त होती है/आप विनय हैं न नोनीहाट वाले?/पहचान लेने की ख़ुशी/उनके चेहरे पर पसर गयी थी/अपने कपड़े का झोला संभालकर/कंधे पर चढ़ाते हुए/उन्होंने मेरे दोनों हाथ थाम लिये/यहां डॉक्टर को दिखाने आये थे/सांस बहुत फूलती है अब/क्या आप यहीं रहते हैं गोड्डा में?/अपनी रौ में बोले जा रहे थे/अपनी जात का डॉक्टर है/पर रहम नहीं है ज़रा भी/ग़रीबों से भी पूरी फ़ीस लेते हैं/हां अब ऐसा ही है , मैंने कहा -अधिकांश डॉक्टर अब किसी...
POEM कविता / सच पूछो तो/ प्रो. . इन्दु पाण्डेय खण्डूड़ी दर्शन विभाग हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय श्रीनगर-गढ़वाल, उत्तराखंड
SRIJAN.KAVITA

POEM कविता / सच पूछो तो/ प्रो. . इन्दु पाण्डेय खण्डूड़ी दर्शन विभाग हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय श्रीनगर-गढ़वाल, उत्तराखंड

सच पूछो तो, कभी तो सच में लगता है कि मैं ही गलत हूँ। कुछ तो वजह होगी, दुनियादारी में मैं ही नासमझ हूँ। जब तक सामने वाले को, अपने नहीं, उसके नज़रिये से, समझे जाओ, मैं देवत्व से पूर्ण होती जाती हूँ पर जैसे ही अपने नजरिये से देखने की सोच भी आई मुझे मैं अहमक और नासमझ कही जाती हूँ, और हद तो तब होती जब झूठ पर पर्दा डालती हूँ, ताकि झूठ बोलने वाला शर्मिंदा न हो और वो इस सोच के साथ मुस्कुरा उठता है कि मैं उस पर विश्वास से, उसके झूठ तक पहुँच न सकी। सच पूछो तो,इसके बाद भी, मैं बस सामने वाले को शर्मिंदगी से बचा लेने में खुश हूँ। प्रो. इन्दु पाण्डेय खण्डूड़ी दर्शन विभाग हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय श्रीनगर-गढ़वाल, उत्तराखंड ...