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BNMU। अनुस्यूत बनाम अनुस्युत। बहादुर मिश्र
SRIJAN.AALEKH

BNMU। अनुस्यूत बनाम अनुस्युत। बहादुर मिश्र

अनुस्यूत बनाम अनुस्युत यह विषय मेरी प्राथमिकता सूची में नहीं था। एक दिन मैं पी-एच्.-डी. संचिका निबटा रहा था। एक विश्वविख्यात विश्वविद्यालय के ख्यात प्राचार्य का प्रतिवेदन पढ़ रहा था। उसमें एक स्थल पर ‘अनुस्युत’ का प्रयोग देखकर हतप्रभ रह गया; क्योंकि छात्र और शिक्षक- दोनों रूपों में उनकी यशस्विता असंदिग्ध रही है। पहले सोचा कि दूरभाष पर ही उनका भ्रम-निवारण कर दूँ। फिर विचार आया कि ‘पोस्ट’ ही डाल देता हूँ। इससे अन्य पाठक भी लाभान्वित हो जाएँगे। अन्यत्र इसके अनियंत्रित प्रयोग देख-देख कुढ़ ही रहा था कि उक्त महाशय की इस भाषिक विच्युति ने एतद्विषयक विमर्श के लिए तत्क्षण विवश किया। यह शब्द-विमर्श उसी चिन्ता की प्रसूति है। अनु+षिवु(तन्तुसन्ताने) >सिवु (आदेश)> सि (व् >ऊ) सि+ऊ (यण् सन्धि)= स्य् +ऊ = स्यू+ क्त > त = अनुस्यूत का अर्थ होता है-- अच्छी तरह सिला हुआ/ गज्झिन बुना हुआ/ सुशृंखलि...