NMM पांडुलिप के क्षेत्र में निरंतर अभ्यास जरूरी: डॉ. उत्तम सिंह

*पांडुलिप के क्षेत्र में निरंतर अभ्यास जरूरी: डॉ. उत्तम सिंह*

पांडुलिपियों के संग्रहण के साथ-साथ उसका संपादन एवं प्रकाशन भी जरूरी है। यह सभी कार्य बिल्कुल श्रमसाध्य है और इसमें हमें निरंतर अभ्यास करने की जरूरत है।

यह बात केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, अगरतला कैम्पस, अगरतला (त्रिपुरा) के संस्कृत विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. उत्तम सिंह ने कही।

वे सोमवार को तीस दिवसीय उच्चस्तरीय राष्ट्रीय कार्यशाला में व्याख्यान दे रहे थे। संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार के अंतर्गत संचालित इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र की राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन योजना के तहत यह कार्यशाला केंद्रीय पुस्तकालय, भूपेंद्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय, मधेपुरा में आयोजित हो रही है।

*शोध कार्य में पांडुलिपियों का काफी महत्व*
उन्होंने कहा कि हम आम तौर पर शोध कार्य में प्रकाशित पुस्तकों का उपयोग करते हैं। लेकिन यदि हम इसमें विषय से संबंधित पांडुलिपियों का भी उपयोग करें, तो हमारा शोध और भी बेहतर हो सकेगा। हम शोध में जितनी अधिक पांडुलिपियों का उपयोग करेंगे, हमारा शोध उतना ही अधिक समीक्षित एवं परिमार्जित होगा।

*विषयानुरूप ग्रंथ का चयन जरूरी*
उन्होंने बताया कि हमें सर्वप्रथम विभिन्न ग्रंथालयों से संपर्क कर अपने शोध से संबंधित पांडुलिपियों का संकलन करना चाहिए। तदुपरांत अपने विषयानुरूप किसी एक ग्रंथ का संपादन हेतु चयन करना चाहिए।

सिंडिकेट सदस्य डॉ. रामनरेश सिंह ने कहा कि यह कार्यशाला विश्वविद्यालय के लिए मील का पत्थर साबित होगा। आगे भी शिक्षा नीति के अनुरूप विभिन्न कार्यक्रमों के आयोजन की जरूरत है।

वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. भूपेंद्र नारायण यादव मधेपुरी ने कहा कि स्थानीय पांडुलिपियों को संरक्षित एवं प्रकाशित करने की जरूरत है।

आयोजन सचिव डॉ. सुधांशु शेखर ने बताया कि इस कार्यशाला में ब्राह्मी एवं नागरी लिपि का प्रशिक्षण दिया गया। साथ ही विक्रम संवत 1839 में नागरी लिपिबद्ध पांडुलिपि के आधार पर व्याधिनिग्रह नामक आर्वेदिक ग्रंथ का संपादन कार्य संपन्न हुआ। श्रषि हीराचंद वैद्य कृत इस ग्रंथ में विविध प्रकार के ज्वरों और मस्तिष्क रोग, वात-पित्त-कफ रोघ, मधुमेय चिकित्सा, क्रमिरोग, उदर रोग एवं पांडुरोग के लिए औषधियां लिपिबद्ध हैं।

व्याख्यान के बाद विशेषज्ञ वक्ता का अंगवस्त्रम्, पुष्पगुच्छ एवं स्मृतिचिह्न भेंटकर सम्मानित किया गया।

इस अवसर पर कुलानुशासक डॉ. विश्वनाथ विवेका, केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, अगरतला कैंपस, अगरतला में असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. उत्तम कुमार सिंह, संयोजक डॉ. अशोक कुमार, आयोजन सचिव सह उप कुलसचिव (शै.) डॉ. सुधांशु शेखर, सीनेटर रंजन कुमार, शोधार्थी सारंग तनय, काउंसिल मेम्बर माधव कुमार, पृथ्वीराज यदुवंशी, सिड्डु कुमार, डॉ. मो. आफताब आलम (गया), नीरज कुमार सिंह (दरभंगा), सौरभ कुमार चौहान, डॉ. संगीत कुमार, राधेश्याम सिंह, त्रिलोकनाथ झा, ईश्वरचंद सागर, बालकृष्ण कुमार सिंह, कपिलदेव यादव, अरविंद विश्वास, अमोल यादव,‌ रश्मि, ब्यूटी कुमारी, खुशबू, डेजी, लूसी कुमारी, रुचि कुमारी, स्नेहा कुमारी, श्वेता कुमारी, मधु कुमारी, इशानी, प्रियंका, निधि आदि उपस्थित थे।