NMM। विदेशियों ने नष्ट-भ्रष्ट की भारत की हजारों पांडुलिपियां : डॉ. जीवानन्द झा। पांडुलिपियों का संरक्षण है हमारा राष्ट्रीय कर्तव्य : डॉ. जीवानन्द झा

*विदेशियों ने नष्ट-भ्रष्ट की भारत की हजारों पांडुलिपियां : डॉ. जीवानन्द झा*

*पांडुलिपियों का संरक्षण है हमारा राष्ट्रीय कर्तव्य : डॉ. जीवानन्द झा*

पांडुलिपियां हमारी राष्ट्रीय धरोहर हैं। ये हमारी बहुमूल्य ज्ञान संपदा एवं गौरवशाली विरासत की साक्षी हैं। अतः पांडुलिपियों का संरक्षण एवं संवर्धन हमारा राष्ट्रीय कर्तव्य है।

यह बात ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय, दरभंगा में संस्कृत विभाग के अध्यक्ष प्रो. (डॉ.) जीवानन्द झा ने कही। वे शुक्रवार को ‘पांडुलिपि विज्ञान एवं लिपि विज्ञान’ पर आयोजित तीस दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला में प्रतिभागियों को संबोधित कर रहे थे। यह कार्यशाला राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र, संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार, नई दिल्ली के सौजन्य से केन्द्रीय पुस्तकालय, पुराना परिसर, बीएनएमयू, मधेपुरा में आयोजित हो रही है।

*पांडुलिपियों के मामले में दुनिया का सबसे समृद्ध राष्ट्र है भारत*

उन्होंने बताया कि विदेशियों एवं विधर्मियों ने विभिन्न आक्रमणों के दौरान और अपने शासनकाल में भारत की हजारों बहुमूल्य पांडुलिपियां को नष्ट-भ्रष्ट किया। साथ ही विदेशी लुटेरे एवं लेखक सैकड़ों पांडुलिपियों को भारत से लेकर अपने देश चले गए। हमारे अपने शासन की उपेक्षा और आम लोगों में जनजागृति के अभाव में भी हमारी सैकड़ों पांडुलिपियां बर्बाद हो गईं। इसके बावजूद भारत पांडुलिपियों के मामले में दुनिया का सबसे समृद्ध राष्ट्र है।

*पांडुलिपियों के नष्ट होने के हैं प्राकृतिक कारण*

उन्होंने बताया कि पांडुलिपियों के नष्ट होने के प्राकृतिक कारण भी हैं। पांडुलिपियों को धूल, पानी, आग एवं तेल आदि से नुकसान पहुंचता है। गृष्म के भीषण गर्मी में पांडुलिपि के पन्ने सुखकर भुर-भुरा (खस्ता) हो जाते हैं। वर्षा ऋतु के आगमन से वायुमंडल की नमी पांडुलिपि के पन्नों को कमजोर बना देती है।

*पांडुलिपियों को दिया गया है देवमूर्तियों का दर्जा*
उन्होंने बताया कि पांडुलिपियों को संरक्षित करने के उद्देश्य से उसे देवमूर्तियों का दर्जा दिया गया। पांडुलिपियों को संरक्षित करने के लिए उसे लाल सूती कपङे में बांधने, प्रतिदिन उलटने-पलटने एवं पाठ करने, कपूर एवं गुग्गुल जैसे तीखी गंद वाले पदार्थों से आरती करने आदि का नियम बनाया गया। इसमें लाल कपड़ा एंटीबायोटिक का काम करता है, उलटने-पलटने से धूल झड़ते हैं, पाठ करने से कंठस्थता आती है और आरती से कीड़े दूर भागते हैं।

*पारंपरिक आयुर्वेदिक औषधियों सर्वाधिक टिकाऊ*

उन्होंने कहा कि भारत में पांडुलिपि-संरक्षण के लिए पारंपरिक आयुर्वेदिक औषधियों का प्रयोग किया जाता रहा है, जो आसानी से उपलब्ध, टिकाऊ एवं सस्ते हैं। इसमें नीम, हल्दी, चंदन, पुदिना, काला जीरा, करंच, लौंग, सिनुआर, आजवाइन, अश्वगंधा आदि जड़ी-बूटियों का प्रयोग किया जाता है।

*विशेषज्ञ वक्ता का अंगवस्त्रम् एवं स्मृतिचिह्न देकर सम्मान*

कार्यक्रम के अंत में विकास पदाधिकारी डॉ. ललन प्रसाद अद्री, केंद्रीय पुस्तकालय के प्रोफेसर इंचार्ज डॉ. अशोक कुमार एवं उप कुलसचिव अकादमिक डॉ. सुधांशु शेखर ने विशेषज्ञ वक्ता का अंगवस्त्रम् एवं स्मृतिचिह्न देकर सम्मान किया। इस अवसर पर सिड्डु कुमार, पृथ्वीराज यदुवंशी, डॉ. राजीव रंजन, जयप्रकाश भारती,त्रिलोकनाथ झा, डॉ. संगीत कुमार, नीरज कुमार सिंह, रवींद्र कुमार, बालकृष्ण कुमार सिंह, कपिलदेव यादव, शंकर कुमार सिंह, अरविंद विश्वास, अमोल यादव,‌ सौरभ कुमार चौहान, अंजली कुमारी, मधु कुमारी, लूसी कुमारी, रुचि कुमारी, स्नेहा कुमारी, रश्मि कुमारी, ब्यूटी कुमारी आदि उपस्थित थे।

*पांडुलिपि संरक्षण की अपील*
आयोजन सचिव डॉ. सुधांशु शेखर ने बताया कि एनएमएम बीएनएमयू में पांडुलिपि संरक्षण केंद्र खोलने को लेकर गंभीर है। यदि इस क्षेत्र में कुछ महत्वपूर्ण अप्रकाशित पांडुलिपियां मिलेंगी, तो यहां की शुरुआत भी हो सकती है। यदि इस क्षेत्र में किसी व्यक्ति के पास कोई महत्वपूर्ण पांडुलिपि है, तो उनकी पांडुलिपि का निःशुल्क संरक्षण एवं प्रकाशन की व्यवस्था की जाएगी और पांडुलिपि उनको वापस लौटा दी जाएगी।