Environmental आओ मानव प्रकृति की ओर लौट आओ

आओ मानव प्रकृति की ओर लौट आओ

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जब भी घायल होता है मन
प्रकृति रखती उस पर मलहम
पर उसे हम भूल जाते हैं !

उसकी नदियाँ ,उसके सागर
उसके जंगल और पहाड़
सब हितसाधन करते हमारा
पर उसे देते हैं उजाड़ !!

 

दरअसल जब – जब मानव अपने आपको अति शक्तिशाली और शूरवीर समझ बैठता है और उसके नाश को अग्रसर हो उठता है तब – तब प्रकृति याद दिलाती है हे मानव अपनी मर्यादा में रहो तुम्हारा कोई अस्तित्व नहीं है मेरे बिना अगर मुझे ही नहीं बचा पाओगे तो तुम्हारा क्या अस्तित्व रह पायेगा ? आज मनुष्य विज्ञान को इतनी तरजीह दे रखा है कि उसका अस्तित्व ही खतरे में पड़ गया है और एक भयंकर महामारी ने डेरा डाल रखा है| मानो आज मनुष्य की सम्पूर्ण परिधि को ही समेट लिया है | विज्ञान जीवन के लिए महत्वपूर्ण है इस बात से कदापि इनकार नहीं किया जा सकता है लेकिन आप प्रकृति को नजरअंदाज करके केवल और केवल विज्ञान के भरोसे जीवन नहीं जी सकते एक अच्छा जीवन मनुष्य प्रकृति के साथ ही जी सकता है | आज से कई वर्ष पहले मनुष्य अपनी आदिम अवस्था में आज से कहीं अधिक स्वस्थ्य रहता था इसलिए की तब डॉक्टर नहीं थे | मनुष्य था , और शक्ति और जीवन का केंद्र प्रकृति थी | स्वास्थ्य के कृत्रिम साधनों और बोतल की दवाओं ने स्वास्थ्य की जड़ काट दी | स्वास्थ्य तो अब हम सभी के आलमारीयों में बंद है ……लेकिन यह बहुत दिन नहीं चलेगा ,जिसका परिणाम आज सम्पूर्ण विश्व एक कोविद -१९ जैसी महामारी के रूप में हम सभी के सामने उपस्थित है | जब हम हद से ज्यादा उसे परेशान करेंगें तो वो अपना बदला किसी न किसी रूप में लेगी और ले भी रही है कि आज मनुष्य का ‘ अस्तित्व ’ ही उसके केंद्र में आ चुका है |
मानव जाति क्या वाकई मानव कहलाने के लायक बची है ? क्या उसकी थोड़ी सी भी चेतना बची रह सकी है जिसका वो सदुपयोग करे ? दरअसल , सब सभी लोग एक मशीनी युग में जी रहें हैं जहाँ सुबह होते ही एक मशीन के पुर्जे के समान कार्य करने में लग जाते हैं और समय की सुई के साथ ही टिक- तिक करती हुई ऐसे बीत रही है कि हमें अपने बारे में खुद को भी समझने के लिए हमारे पास वक़्त नही है | हम चले जा रहें है लेकिन कहाँ जा रहे ,किस दिशा में जा रहें हैं हमें खुद भी मालूम नही है | आखिर ऐसा क्यों हुआ ? जब आप इन सब सवालों के जड़ में जाकर देखेंगे तो पायेंगे कि ये सब मानव द्वारा ही किया गया कृत्य है , हम अब मशीन बन चुके हैं हम श्रम करना छोड़ चुके हैं और मशीनी प्रक्रिया का हिस्सा बन चुके हैं | हमारी सम्वेदना , हमारी समझदारी ,विचार करने की शक्ति को आज “ रोबोटिक सभ्यता ’’ ने अपने कब्जे में कर लिया है | हम अब इंसान नहीं रहे बल्कि मशीन बन चुके हैं और हमारी वैचारिक शक्ति क्षीण हो चुकी है | विनाश की ओर खुद मानव अमादा हैं |
मानव को पुनः प्रकृति की ओर लौटना ही होगा तभी मानव अपने अस्तित्व को बचा पायेगा | प्रकृति हमारे लिए सबकुछ है , जीवनदायिनी है प्रकृति के बिना हमारा अपना कोई अस्तित्व नहीं है | हमें गंभीरतापूर्वक इसपर विचार करना होगा अन्यथा जिस वैश्विक महामारी से आज सम्पूर्ण विश्व जूझ रहा है कोविद -१९ वो तो विनाश की एक मात्र झलक है | मानव के कृत्य की कुछ झलकियाँ—-
“ कलयुग में अपराध का
बढ़ा अब इतना प्रकोप
आज फिर से कॉप उठी
देखो धरती माता की कोख़ !!
कहीं बाढ़ कहीं पर सुखाड़
कभी महामारी का प्रकोप
यदा कदा धरती हिलती
फिर भूकंप से मरते बे – मौत !!

मंदिर –मस्जिद और गुरूद्वारे
चढ़ गए भेट राजनीतिक के लोभ
सबको अपनी चाह लगी है
नहीं रहा प्रकृति का अब शौक
“ धर्म’’ करे जब बातें जनमानस की
दुनियाँवालों को लगता है जोक !!

हे मानव जाति समय अब भी है लौट आओ प्रकृति की ओर | लौट आओ कि अपने को इस विनाश से बचाओ, ओं अब लौट आओ |

मारीषा
पीएच.डी. शोध छात्रा ,हिंदी विभाग
महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय ,मोतिहारी बिहार