BNMU *महापंडित राहुल सांस्कृत्यायन के रचनात्मक अवदान पर एकदिवसीय संगोष्ठी का आयोजन*

*महापंडित राहुल सांस्कृत्यायन के रचनात्मक अवदान पर एकदिवसीय संगोष्ठी का आयोजन*

 

विश्वविद्यालय हिन्दी विभाग, विश्वविद्यालय दर्शनशास्त्र विभाग एवं आईक्यूएसी के संयुक्त तत्वावधान में राहुल सांकृत्यायन की जयंती के अवसर पर महापंडित राहुल सांकृत्यायन का रचनात्मक अवदान विषय पर एकदिवसीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया।

इस अवसर पर मुख्य वक्ता अंतरराष्ट्रीय हिन्दी परिषद् के अध्यक्ष वीरेंद्र कुमार यादव ने राहुल की साहित्यिक यात्राओं पर प्रकाश डाला। उन्होंने राहुल की रचनाओं में व्यक्त ऐतिहासिकता और राष्ट्रभाषा पर उनके विचारों को सामने लाया और उनकी सुप्रसिद्ध रचना वोल्गा से गंगा में व्यक्त मातृसत्तात्मक समाज-व्यवस्था की भी चर्चा की।

 

उन्होंने राहुल की साहित्यिक क्रियाशीलता के बारे में बताते हुए मातृभाषाओं के प्रश्न पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने बताया कि राहुल जी सच्चे अर्थों में लोक भाषा-विज्ञानी थे। वे 36 भाषाओं के ज्ञाता थे। इसके बावजूद उन्होंने अपने लेखन का माध्यम हिंदी को चुना। उनका विपुल साहित्य राष्ट्र-निर्माण की दृष्टि से महत्वपूर्ण है।

विशिष्ट अतिथि हिन्दी विभाग, रांची विश्वविद्यालय, रांची के पूर्व विभागाध्यक्ष डॉ. जंग बहादुर पांडेय ने राहुल सांकृत्यायन के जीवन, उनकी साहित्यिक और सामाजिक प्रतिबद्धता को सबके समक्ष रखा उनके कार्यों से प्रेरणा लेने की बात कही। उन्होंने राहुल को कागद की लेखी नहीं, वरन् आँखन देखी परंपरा का साहित्यकार बताया।

 

उन्होंने राहुल के दार्शनिक विचारों और उनके जीवन संघर्षों और उनके यात्रा वृतांतों पर विस्तार से समीक्षा की। उन्होंने बताया कि राहुल की रचनाएं अनुभवजन्य ज्ञान का प्रामाणिक दस्तावेज और हिन्दी साहित्य की अमूल्य निधि है। इनकी रचनाओं पर व्यापक अनुसंधान की जरुरत है।

 

उन्होंने कहा कि राहुल की रचनाओं में व्यक्त‌ संदेशों को जीवन में उतारने की जरूरत है।

 

कार्यक्रम के अध्यक्ष हिन्दी के विभागाध्यक्ष डॉ. विनोद मोहन जायसवाल ने राहुल जी की घुमक्कड़ी प्रवृति और मनुष्यता के प्रति उनके आग्रह पर विस्तार से बताया। उन्होंने उनके साहित्य को ज्ञान के विभिन्न अनुशासनों से जुड़ा हुआ बताते हुए उसके महत्व को रेखांकित किया।

कार्यक्रम के सह-अध्यक्ष सह दर्शनशास्त्र विभागाध्यक्ष डॉ. सुधांशु शेखर ने कहा कि राहुल ने भारतीय ज्ञान परंपरा को समृद्ध करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

 

स्वागत वक्तव्य देते हुए कार्यक्रम की संयोजक सह पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. उषा सिन्हा ने राहुल जी की ज्ञान परंपरा और बौद्ध पुस्तकों को भारत लाने के उनके प्रयासों से सीख लेने की आवश्यकता बताई। उन्होंने राहुल की विभिन्न रचनाओं और लोकभाषा के प्रति प्रेम पर भी प्रकाश डाला।

 

एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. सिद्धेश्वर कश्यप ने कहा कि राहुल सांकृत्यायन मानव धर्मी चिंतक एवं लेखक हैं। अपनी कृतियों में वह मार्क्सवादी, गांधीवादी, समाजवादी मूल्यों को स्वर देते हैं। लेकिन मानवधर्मी मूल्य को रचनात्मक आयाम प्रदान करते हैं।

 

आईक्यूएसी निदेशक प्रो. नरेश कुमार ने कहा कि राहुल के विचारों में सकारात्मकता है। यह हमें जीवन में आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है।

पूर्व संकायाध्यक्ष प्रो. विनय चौधरी ने राहुल के विलक्षण और प्रतिभाशाली व्यक्तित्व और कृतित्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि राहुल एक पति एवं पिता की भूमिका का सम्यक् निर्वहन नहीं कर सके।

 

कार्यक्रम में मनोज विद्यासागर एवं जेआरएफ विभीषण आदि ने भी अपने विचार व्यक्त किए।

 

इसके पूर्व संगोष्ठी के प्रारंभ में सभी अतिथियों ने राहुल के चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित की। तदुपरांत दीप प्रज्ज्वलित कर विधिवत कार्यक्रम का शुभारंभ किया गया। अतिथियों को अंगवस्त्रम् एवं पौधा भेंट कर सम्मानित किया गया।कार्यक्रम का संचालन असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. पूजा गुप्ता ने किया। धन्यवाद ज्ञापन असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. प्रफुल्ल ने की।

 

इस अवसर पर कार्यक्रम में मानविकी संकायाध्यक्ष प्रो. राजीव कुमार मल्लिक, वाणिज्य संकायाध्यक्ष डॉ. अशोक कुमार, समाजशास्त्र विभागाध्यक्ष डॉ. राणा सुनील कुमार सिंह, इतिहास विभागाध्यक्ष प्रो. सी. पी. सिंह, गणित विभागाध्यक्ष नरेश कुमार, डॉ. पी. एन. सिंह, डॉ. मोनिका, डॉ. विवेक प्रताप, डॉ. विनय कुमार, डॉ. कुमार श्रषभ, डॉ. प्रफुल्ल कुमार, डॉ. रश्मि कुमारी, अजय कुमार, डॉ. सदय कुमार, डॉ. सुमेध आनंद, नरेश कुमार, तनु प्रिया, नन्ही कुमारी, कल्याणी कुमारी, नरेश कुमार, राहुल पासवान, राजहंस राज, सौरभ कुमार चौहान, सुमन कुमार, सुनील कुमार सहित बड़ी संख्या में शिक्षक, शिक्षणेत्तर कर्मी, शोधार्थी एवं विद्यार्थी उपस्थित रहे।