BNMU पी-एच. डी. से संबंधित कई महत्वपूर्ण निर्णय

पी-एच. डी. से संबंधित कई महत्वपूर्ण निर्णय

बी. एन. मंडल विश्वविद्यालय, मधेपुरा के वैसे नवनियुक्त शिक्षक जो एक वर्ष की सफल परीक्ष्यमान अवधि के साथ कम-से-कम दो वर्ष की निर्बाध सेवा पूरी कर चुके हैं वे नियमानुसार इस विश्वविद्यालय से पी-एच. डी. की डिग्री प्राप्त कर सकेंगे। इसमें दो वर्ष की सफल निर्बाध सेवा में ही एक वर्ष की सफल परीक्ष्यमान अवधि भी अंतर्निहित है। स्नातकोत्तर विभागों एवं अंगीभूत महाविद्यालयों में स्वीकृत एवं रिक्त पदों पर नियुक्त ऐसे शिक्षकों को पीएच. डी. करने हेतु पीएटी परीक्षा भी नहीं देनी होगी। ये शिक्षक विधिवत पीएटटी के लिए आवेदन फार्म भरेंगे और सीधे पी-एच. डी. नामांकन हेतु आयोजित साक्षात्कार में शामिल होंगे।

उप कुलसचिव (अकादमिक) डाॅ. सुधांशु शेखर ने बताया कि कुलपति डाॅ. आर. के. पी. रमण के आदेशानुसार कुलसचिव डाॅ. कपिलदेव प्रसाद ने आशय की अधिसूचना जारी कर दी है। उन्होंने बताया कि यह निर्णय अधिसूचित एक उच्च स्तरीय समिति के प्रतिवेदन के आलोक में लिया गया है। यह समिति संकायाध्यक्षों एवं स्नातकोत्तर विभागाध्यक्षों की बैठक (5 फरवरी, 2021) की कार्यावली संख्या-6 के निर्णयानुसार पी-एच. डी. से संबंधित विभिन्न मामलों पर निर्णय के लिए गठित की गई थी।

समिति में प्रति कुलपति प्रोफेसर डाॅ. आभा सिंह (अध्यक्ष), विज्ञान संकायाध्यक्ष प्रोफेसर डाॅ. अशोक कुमारयादव (सदस्य-सचिव), सामाजिक विज्ञान संकायाध्यक्ष प्रोफेसर डाॅ. राज कुमार सिंह (सदस्य), मानविकी संकायाध्यक्ष प्रोफेसर डाॅ. उषा सिन्हा (सदस्य), वाणिज्य संकायाध्यक्ष डाॅ. लम्बोदर झा (सदस्य) और निदेशक अकादमिक प्रोफेसर डाॅ. एम. आई. रहमान (समन्वयक) थे।

डाॅ. शेखर ने बताया कि वैसे शिक्षक जो शोध करने की सभी अर्हताओं को पूरा करते हैं और विश्वविद्यालय अंतर्गत स्नातकोत्तर विभागों या विश्वविद्यालय मुख्यालय से आठ किलोमीटर की परिधि में आने वाले अंगीभूत महाविद्यालयों में विधिवत नियुक्त हैं, उन्हें शैक्षणिक अवकाश लेने की आवश्यकता नहीं है। किन्तु आठ किलोमीटर की परिधि से बाहर के शिक्षकों को कोर्स वर्क की कक्षाओं में उपस्थित रहने हेतु स्नातकोत्तर विभागों अथवा विश्वविद्यालय मुख्यालय के किसी अंगीभूत महाविद्यालय में प्रतिनियोजित किया जाएगा। शोधकार्य के दौरान यदि शिक्षक किसी दूर-दराज के महाविद्यालय में नियुक्त एवं कार्यरत हैं, तो उन्हें उनके शोध निदेशक के विभाग या महाविद्यालय में प्रतिनियोजित कर दिया जाएगा।

यह भी अधिसूचित किया गया है कि इस विश्वविद्यालय के शिक्षक यदि अन्य विश्वविद्यालय में शोधकार्य करना चाहते हैं तो वह विधिवत रूप से अवकाश स्वीकृति के पश्चात् ही शोध कार्य संपादित कर सकते हैं। विश्वविद्यालय कर्मी, जो नियमानुकूल शोध-कार्य करने की अर्हता रखते हैं और शोध कार्य करना चाहते हैं, शोध विनियम-2016 में वर्णित नियमानुसार शोध-कार्य कर सकते हैं।

डाॅ. शेखर ने बताया कि अतिथि शिक्षकों के लिए शैक्षणिक अवकाश का प्रावधान नहीं है। अतएव ऐसे शिक्षक कोर्स वर्क की समय-सारणी के साथ अपने-अपने संस्थाओं में आवंटित वर्ग संपादन के साथ ताल-मेल स्थपित कर कोर्स वर्क एवं शोधकार्य को सामान्य शोधार्थी की तरह संपादित कर सकते हैं। संबंधन प्राप्त महाविद्यालयों के शिक्षक संबंधित महाविद्यालय के शासी निकाय की अनुशंसा पर सचिव/प्रधानाचार्य द्वारा निर्गत अनापत्ति प्रमाणपत्र के आधार पर पीएच. डी. कार्य संपादित कर सकते हैं। ऐसे शोधार्थियों को सामान्य शोधार्थियों की तरह पीएच. डी. से संबंधित सभी नियमों का पालन करना होगा।

डाॅ. शेखर ने बताया कि विश्वविद्यालय के इस निर्णय से नवनियुक्त शिक्षक, अतिथि शिक्षक एवं संबद्ध महाविद्यालय के शिक्षकों को पी-एच. डी. करने में सुविधा होगी। इससे विश्वविद्यालय में शोध को बढ़ावा मिलेगा।