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AZADI स्वतंत्रता दिवस : संस्मरण एवं सृमृतियां

स्वतंत्रता दिवस : संस्मरण एवं सृमृतियां
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आज स्वतंत्रता दिवस के शुभ अवसर पर मैं अपनी ओर से और बी. एन. मंडल विश्वविद्यालय, लालूनगर, मधेपुरा परिवार की ओर से आप सबों को बधाई एवं शुभकामनाएँ देता हूँ। साथ ही अपने कुछ संस्मरण एवं स्मृतियां ‘शेयर’ कर रहा हूँ।

स्वतंत्रता सेनानी नाना जी की यादें
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मुझे इस बात का गर्व है कि मैं भी स्वतंत्रता सेनानियों के वंशजों में शामिल हूं। इसलिए आज मैं सर्वप्रथम अपने नाना जी स्वतंत्रता सेनानी श्री राम नारायण सिंह (1910-1997) को सादर नमन करता हूँ।

मेरा जन्म मेरे नानी गांव माधवपुर (खगड़िया) में हुआ है और मैंने अपना स्वर्णिम बचपन (शुरुआती चौदह वर्ष) अपने स्वतंत्रता सेनानी नानाजी और धर्मपरायण नानीजी के प्यार की छांव तले बीताया है। मेरे जीवन पर नानीजी एवं नानाजी का अमिट प्रभाव पड़ा है।

नानाजी आजादी के आंदोलन में काफी सक्रिय थे और की बार जेल गए थे। उनमें शारीरिक बल एवं मानसिक क्षमता दोनों का मणि-कांचन संयोग था। यही कारण है कि जहां वे एक तरफ कुश्ती के चैंपियन थे, तो दूसरी ओर शतरंज के कप्तान भी थे। इतना ही नहीं वे एक मंजे हुए रंगकर्मी भी थे। वे प्रायः अपनी अभिनय कला का कौशल दिखाते हुए अंग्रेज आफीसरों को चकमा दे देते थे और ने वेश में पकड़े जाने पर अपना नाम बदल लेते थे। उनमें कहानियां सुनाने की भी अद्भुत कला थी और वे जेल में भी रामायण एवं महाभारत आदि की धार्मिक कहानियों के बहाने अपने साथियों का मनोबल बढ़ाने और उनमें देशभक्ति की भावना भरने का काम करते थे। नानाजी से सुनी हुई कहानियों के माध्यम से ही मुझे स्वतंत्रता स़ंग्राम के बारे में प्रारंभिक जानकारी मिली।

नानाजी महात्मा गाँधी और जयप्रकाश नारायण से प्रभावित थे। उनके क्षेत्रीय नेता थे श्री सुरेशचंद्र मिश्र, जो स्वतंत्रता के बाद विधायक भी बने थे। यूं तो मेरे पुरे नानी गांव में घर-घर स्वतंत्रता सेनानी थे और सभी स्वाभाविक रूप से नानाजी के मित्र थे। लेकिन उनके दो सबसे करीबी मित्र थे स्वतंत्रता सेनानी मो. सादिक नदाब और स्वतंत्रता सेनानी श्री भूमी मंडल। ये दोनों प्रायः प्रतिदिन सुबह नाना जी से मिलने हमारे घर आते थे। इन लोगों में घंटों सहृदयतापूर्वक बातचीत होती थी। ये लोग गाँव-समाज एवं देश-दुनिया के मौजूदा हालातों पर बात करते थे और पुराने दिनों को भी याद करते थे। बीच-बीच में स्वतंत्रता संग्राम की कहानियाँ भी चलती रहती थी। मैंने इन लोगों से गाँधीजी के बिहार आगमन, असहयोग आंदोलन आदि से जुड़े संस्मरण सुने थे।

नाना जी आंदोलन के दिनों के कुछ गीत भी गाते थे। उनका एक गीत “कहमां के दाल-चाऊर, कहमां के लकड़ी और कहमां में खिचड़ी पकैभो हे धनेसड़ी” मुझे आज भी याद है।

धर्मपरायण एवं देशभक्त नानीजी
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यहां मैं अपनी धर्मपरायण एवं देशभक्त नानीजी (माय) को भी याद करना चाहता हूं, जिन्होंने अपने एक हाथ में ‘सिताराम’ और दूसरे हाथ में ‘जय हिन्द’ का गोदना (टैटू) बनवाया था। यह इस बात का भी प्रतीक है कि धार्मिक होना एवं राष्ट्रभक्त होना एक-दूसरे का विरोधाभासी नहीं, बल्कि पूरक हैं। इसी की बानगी है कि नानीजी तमाम धार्मिक कर्मकांडों से ऊपर अपने देशभक्त पति की सेवा को प्राथमिकता देती थीं, जो उनके लिए देशसेवा का एक माध्यम था। वे उपवास के दिनों में भी नानाजी के खानपान आदि का ख्याल रखती थीं और उनके मित्रों के लिए खुद चाय-नास्ता आदि तैयार करती थीं। वे सादगी-पसंद थीं और उनका छूआछूत, भेदभाव एवं आडंबर आदि से कोई वास्ता नहीं था।

स्कूल में समारोह
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मैं भी अपने मीडिल स्कूल के दिनों में स्वतंत्रता दिवस कार्यक्रम में बढ़चढ़ कर भाग लेता था। स्वतंत्रता दिवस के दिन नानीजी मुझे सुबह-सबेरे जगाकर तैयार कर देती थीं और नाना जी मुझे अपने से बांस की बड़ी छड़ी में झंडा लगाकर देते थे। मैं हाथ में झंडा लिए दौड़कर अपने विद्यालय (दूरन सिंह मध्य विद्यालय, माधवपुर) चला जाता था, जो मेरे घर में बिल्कुल सटा हुआ है। फिर हम सभी विद्यार्थियों एवं शिक्षकों के साथ ‘प्रभात फेरी’ करते थे। प्रभात फेरी में हम राष्ट्रपिता महात्मा गांधी एवं शहीद-ए-आजम भगत सिंह आदि स्वतंत्रता सेनानियों का जयघोष करते थे। साथ ही कई नारे लगाते थे। हमारा दो प्रमुख नारा था। एक, “आज क्या है ?” -“पंद्रह अगस्त” और दो, “पंद्रह अगस्त मनाएंगे”- “घर-घर झंडा फहराएंगे”। ये दोनों नारे आज भी मेरे मन-मस्तिष्क में बसे हुए हैं। अभी भी कोई अन्य दिनों में भी “आज क्या है ?” प्रश्न का मेरे मन में सहज उत्तर आता है, “पंद्रह अगस्त।” … और आज भी मैं घर झंडा फहराने अर्थात् सभी घरों तक आजादी की रोशनी पहुंचाने में योगदान देना अपना परम कर्तव्य समझता हूं।

हमारे विद्यालय में स्वतंत्रता दिवस पर कई प्रतियोगिताएं होती थीं। मैं सिर्फ एक प्रतियोगिता में भाग लेता था, ‘गणित-दौड़’ में और उसमें हमेशा प्रथम आता था। दरअसल इस प्रतियोगिता में पहले एक ही सवाल को अलग-अलग पर्चे पर लिखकर कुछ दूरी पर रख दिया जाता था। फिर हमें दौड़कर किसी एक पर्चे के पास जाकर उसे खोलना होता था और उसे हल कर वापस अपनी जगह पर आना होता था। जो सबसे पहले सही हल (उत्तर) के साथ आता था, वह विजेता घोषित किया जाता था।

नौजवानों भारत की तकदीर बना दो…
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बाद में अपने उच्च विद्यालय (श्रीकृष्ण उच्च विद्यालय, नयागांव, खगड़िया) में भी मैं हमेशा स्वतंत्रता दिवस समारोह में शामिल होते रहा। यहां के एक शिक्षक का एक श्री धीरेन्द्र नारायण सिंह उर्फ धीर प्रशांत का एक गीत आज भी मैं हमेशा गुनगुनाते रहता हूं, “नौजवानों भारत की तकदीर बना दो फूलों के इस गुलशन से कांटों को हटा दो।”

आलेखों का संग्रह
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मैं पंद्रह अगस्त के दिन के अखबारों को बहुत गौर से पढ़ता था और स्वतंत्रता दिवस से संबंधित महत्वपूर्ण आलेखों को संग्रहित करता था। साथ ही अपने नोटबुक में अन्य पर्व-त्योहारों की तरह ही पंद्रह अगस्त को भी इस दिन के संबंध में अपने विचारों को दर्ज करता था।
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काॅलेज और स्नातकोत्तर विभाग
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मैंने टी. एन. बी. काॅलेज, भागलपुर से स्नातक और तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय के दर्शनशास्त्र विभाग से स्नातकोत्तर की डिग्री प्राप्त की है। लेकिन स्नातक एवं स्नातकोत्तर की पढ़ाई के दौरान भी मैं इन दोनों संस्थानों से भी अधिक स्नातकोत्तर गांधी विचार विभाग से जुड़ा रहा। मैं टी. एन. बी. काॅलेज और विश्वविद्यालय के ध्वजारोहण कार्यक्रमों में कई बार जानबूझकर भी नहीं भी जाता था। लेकिन मैं अपने गाँधी विचार विभाग में आयोजित ध्वजारोहण कार्यक्रम में अनिवार्य रूप से शिरकत करता था। मैं भागलपुर में आखिरी बार वर्ष 2017 के गणतंत्र दिवस (स्वतंत्रता दिवस नहीं) के अवसर पर गांधी विचार विभाग के साथ-साथ ओल्ड पीजी कैम्पस स्थित भुष्टा कार्यालय में आयोजित झंडोत्तोलन कार्यक्रम में भी गया था; जहाँ भुस्टा के तत्कालीन महासचिव एवं दर्शनशास्त्र विभाग के अध्यक्ष गुरुवर प्रोफेसर डाॅ. शंभु प्रसाद सिंह ने झंडोत्तोलन किया था।
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बीएनएमयू में स्वतंत्रता दिवस

वर्ष 2017 का मेरे जीवन में खास स्थान है और जाहिर सी बात है कि इस वर्ष का स्वतंत्रता दिवस समारोह भी मेरे लिए काफी खास रहा। दरअसल इसी वर्ष जून में मैंने असिस्टेंट प्रोफ़ेसर (दर्शनशास्त्र) के रूप में ठाकुर प्रसाद महाविद्यालय, मधेपुरा में योगदान दिया था और स्वतंत्रता दिवस समारोह के महज दो दिन पूर्व तत्कालीन माननीय कुलपति गुरुवर प्रोफेसर डॉ. अवध किशोर राय साहेब ने मुझे विश्वविद्यालय के जनसंपर्क पदाधिकारी का दायित्व भी दे दिया। इस तरह मैंने अपने महाविद्यालय में एक नए शिक्षक और विश्वविद्यालय में एक कनीय पदाधिकारी के रूप में स्वतंत्रता दिवस समारोह में शिरकत किया। तब से आज तक दोनों कार्यक्रमों में भाग ले रहा हूं और महाविद्यालय प्रशासन एवं विश्वविद्यालय प्रशासन दोनों द्वारा दी गई जिम्मेदारियों को को निभाने का हरसंभव प्रयास करता हूं।

महाविद्यालय एवं विश्वविद्यालय के ध्वजारोहण कार्यक्रमों के पूर्व मेरी उपस्थिति राजकीय अंबेडकर कल्याण छात्रावास में होती है, जो मेरे लिए खास स्थान रखता है। इसके अलावा नार्थ कैम्पस के प्रशासनिक भवन, शिक्षक संघ कार्यालय, शिक्षकेत्तर कर्मचारी कार्यालय, छात्र संघ कार्यालय और सेवानिवृत्त शिक्षक संघ कार्यालय आदि के झंडोत्तोलन कार्यक्रम में भी शामिल होता रहा हूं।

वर्ष 2017 से लगातार यह क्रम जारी है। यह एक नागरिक के रूप में मेरे मूलभूत कर्तव्य का हिस्सा है और एक शिक्षक के रूप में हमारी सेवा का एक अनिवार्य दायित्व भी।

आजादी के अमृत महोत्सव
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आजादी के अमृत महोत्सव के कारण 2022 तो और भी खास है। हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी कई कार्यक्रमों में शामिल होना है। इसकी शुरुआत सुबह सात बजे राजकीय अंबेडकर कल्याण छात्रावास से होगी और वह करीब बारह बजे नार्थ कैम्पस के तिरंगा पार्क में संपूर्ण होगी।

बीच में अन्य वर्षों की तरह ही इस वर्ष भी महाविद्यालय एवं विश्वविद्यालय के कई कार्यक्रमों में भाग लेना है। इसमें सेवानिवृत्त शिक्षक संघ कार्यालय का विशेष रूप से जिक्र करना चाहूंगा, जहां संघ के सचिव एवं हमारे टी. पी. कॉलेज, मधेपुरा के पूर्व प्रधानाचार्य डॉ. परमानंद यादव ने ध्वजारोहण कार्यक्रम में उपस्थित होने का विशेष रूप से अनुरोध किया है, जो मेरे लिए एक अभिभावक का अकाट्य आदेश है।

स्वतंत्रता दिवस की बहुत-बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं।

-सुधांशु शेखर, असिस्टेंट प्रोफेसर (दर्शनशास्त्र), ठाकुर प्रसाद महाविद्यालय, मधेपुरा (बिहार)

(बीएनएमयू संवाद के लिए आपकी रचनाएं एवं विचार सादर आमंत्रित हैं। आप हमें अपना आलेख, कहानी, कविताएं आदि भेज सकते हैं।
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