प्रखर स्वतंत्रता सेनानी रासबिहारी मंडल की पुण्यतिथि ( 26 अगस्त)पर डॉ .राठौर की कलम से…..
*गुलाम भारत में आजाद सपने के सारथी थे रासबिहारी मंडल*
स्वतंत्रता आंदोलन में बिहार की भूमिका अग्रिम पंक्ति वाली थी यहां से जुड़े कई नायकों ने स्वतंत्रता आंदोलन गति ही नहीं बल्कि धार भी दी।ऐसे ही कड़ी के एक अहम नाम थे रासबिहारी लाल मण्डल जिनके संबंध में ओजस्वी वक्ता,विभिन्न भाषाओं के ज्ञाता,शब्दों के जादूगर जैसी उपमाओं का प्रयोग जन जन में था ।1866 में मुरहो निवासी रघुवर दयाल मण्डल के यहां जन्मे रासबिहारी लाल मण्डल को जन्म के कुछ दिनों बाद ही मां के आंचल से वंचित होना पड़ा ।ननिहाल में जन्में रासबिहारी का बाल्यकाल में लालन पालन दयावती देवी और प्रथमों ओझाईन के द्वारा होता है।आगे चलकर स्वतंत्रता संग्राम के सेनानी के रूप में इतिहास में स्थापित हो गए। उस समय की चर्चित पत्रिका अमृत बाजार पत्रिका में उनसे जुड़ी खबरें प्रकाशित होती रहती।समय समय पर इसी पत्रिका में उन्हें *मिथिला का शेर ,यादव सम्राट,निडर योद्धाओं का नायक* जैसी उपमाओं से विभूषित करते हुए खबर भी छपी थी।
वहीं लोग उन्हें *तिरहुत के राजा* कह कर भी मान बढ़ाते थे। *भारत माता का संदेश* की रचना कर स्वतंत्रता के महत्व से लोगों को अंग्रेजों के खिलाफ मुखर भी किया।
*स्वतंत्रता आंदोलन में अग्रिम जमानत पाने वाले पहले सेनानी थे रासबिहारी मंडल*
शिक्षा बेशक बारहवीं तक न रही हो लेकिन रासबिहारी बाबू को हिंदी,उर्दू,मैथिली,फारसी,संस्कृत,अंग्रेजी और फ्रेंच भाषा पर मजबूत पकड़ थी। मुरहो एस्टेट के जमींदार रहे रासबिहारी बाबू उम्र के चौथे दशक में प्रवेश करते करते प्रांतीय और राष्ट्रीय गतिविधि से जुड़ चुके थे उनकी सक्रियता का ही प्रमाण था की मधेपुरा राष्ट्रीय आंदोलन के मुख्य धारा से जुड़ चुका था।इनका तेवर का आलम कुछ यूं था की तत्कालीन भागलपुर कलक्टर लॉयल और मधेपुरा एसडीओ सीरीज के कोपभाजन का इन्हे शिकार भी होना पड़ा।शायद यही कारण था की अंग्रेजों ने इनपर अनगिनत केस लाद दिए।ऐसे विषम दौर में राष्ट्रवादी मुख्तार बाबू और गोवर्धन प्रसाद ने उनके सारे मुकदमों की पैरवी की और जीत दिलाई।ये ब्रिटिश सरकार के लिए किसी तमाचे से कम नहीं था।कई तथ्यों सहित चर्चित पत्रकार डॉक्टर देवाशीष की माने तो रास बिहारी बाबू भारत में अग्रिम जमानत पाने वाले पहले शख्स थे।तत्कालीन विभिन्न पत्र – पत्रिकाओं में उनके बारे में प्रमुखता से प्रकाशित किया। 1911 में इन्होंने गोप जातीय महासभा की स्थापना की जिसका इन्हें व्यापक सहयोग मिला।इसका मूल उद्देश्य यादव समाज का उत्थान और उत्रोतर विकास था।”भारत माता ” नामक पुस्तक की रचना कर उन्होंने अपनी राष्ट्रीय भावना को प्रस्तुत करने का काम किया।
*वायसराय को दिए जाने वाले मांगपत्र के प्रारूप को तैयार करने वाली टीम के थे सदस्य*
पूर्ण स्वराज की मांग करने वाले अग्रणी नेताओं में शुमार रासबिहारी बाबू का सुरेन्द्र नाथ बनर्जी,बिपिन चन्द्र पाल जैसे शीर्ष नेताओं से नजदीकी संपर्क था।उस दौर की चर्चित पत्रिकाओं में उनके लेख छपा करते थे।वायसराय को दिए जाने वाले मांगपत्र के प्रारूप को तैयार करने हेतु सर सैयद हसन इमाम की अध्यक्षता में 19 अक्टूबर 1917 की बैठक में जिन उन्नीस लोगों का चयन हुआ उनमें से एक नाम रासबिहारी बाबू का भी था। सनद रहे इस टीम में सच्चिदानंद सिन्हा जैसे नेता थे। ये उनके राजनीतिक संघर्ष की ऊंचाई का पैमाना रहा।
*कोसी से काशी की यात्रा*
1918 में कांग्रेस अधिवेशन के दौरान उनकी तबियत बिगड़ी जो लगातार प्रयास के बाद भी नहीं सुधरी।ताउम्र भारत माता की आजादी के लिए संघर्षरत रासबिहारी लाल मण्डल ने बावन वर्ष की उम्र में अपने कनिष्ठ पुत्र बी पी मण्डल के जन्म के अगले दिन 26 अगस्त 1918 को दुनिया से विदा ली।जीवन सफर में सिर्फ़ पांच वसंत का सफर तय करने वाले रासबिहारी मंडल के जीवन का एक अहम अध्याय यह भी रहा कि जन्म कोशी में हुई और देहांत काशी में ।
*उचित सम्मान की है और दरकरार*
यह निर्विवाद सत्य है कि रासबिहारी मंडल स्वतंत्रता आंदोलन में इस क्षेत्र के बड़े हस्ताक्षर रहे जिसे हर वर्ग के लोग एक स्वर में स्वीकार करते हैं।उनके नाम पर स्थापित *रासबिहारी हाई स्कूल,रासबिहारी मैदान* आज भी उनके नाम को चर्चा में जिंदा रखे हुए है। लेकिन दुखद है कि उनके संघर्षों,योगदानों से वर्तमान और भावी पीढ़ी को जोड़ने के लिए कोई कारगर योजनाएं कभी मूर्त रूप साकार रूप नहीं ले सकी।उनकी जयंती,पुण्यतिथि पर एक दो जगहों पर पुष्पांजलि,परिचर्चा की औपचारिकताएं ही होती हैं लेकिन बड़े आयोजन का प्रारूप मूर्त रूप नहीं ले पाता।उनके नाम पर बने मधेपुरा के जिला बनने सहित कई बड़े राजनीतिक हस्तियों,प्रधानमंत्री,मुख्यमंत्रियों के संघर्षों को देखने वाला रासबिहारी मैदान आज भी उपेक्षा का शिकार है इसको जिले का आदर्श एवं उपयोगी मैदान बनाने पर प्रशासनिक, राजनीतिक, सामाजिक कभी मुहिम भी नहीं चली,सर्वाधिक दुखद यह भी रहा कि हर प्रकार से सक्षम,सबल पारिवारिक स्तर पर भी कभी प्रयास नजर नहीं आए।स्वतंत्रता आंदोलन में मधेपुरा के सबसे बड़े हस्ताक्षर रासबिहारी मंडल के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि यही होगी कि उनके कृतित्व और व्यक्तित्व को संग्रहित कर वर्तमान पीढ़ी से जोड़ा जाए और अपने अतीत को जानने और गर्व का अवसर दिया जाए साथ ही उनके नाम पर स्थापित संस्थान और मैदान को सच्चे अर्थों में उपयोगी बनाया जाए।यकीनन यही उनके प्रति सच्ची मुच्ची की श्रद्धांजलि होगी।,,,,पुण्यतिथि पर नमन।
*डॉ. हर्ष वर्धन सिंह राठौर*
_प्रधान संपादक,युवा सृजन_
_सचिव,आजाद पुस्तकालय