Art.‌। आलेख। वैचारिक द्वंद। आशीष कुमार झा ‘माधव’

वैचारिक द्वंद

मानव जीवन केवल ब्लैक एंड व्हाइट नहीं होता है। बीच मे ग्रे भी आता है जो इसकी लोचपूर्णता को बख़ूबी दर्शाता है।और बदलते परिवेश मे हम बहुत सारी समस्याओं से प्रतिदिन उलझते है व सामना करते रहते है और यही हमें आगे की प्रेरणा भी देता है जिसमे हम इतिहास के विविध घटनाओं को पढते है एवं दर्शन की सहायता लेते है और उससे सीख प्राप्त करते हुये अपनी समस्या का हल ढूंढ़ते है। अब सवाल ये है कि आखिर जीवन के इतनी सारी समस्याओं का समाधान किसी एक विचार व दर्शन से संभव है?

चूंकि एक योजनाबद्ध तरीका नहीं होता है दिन प्रतिदिन के समय मे और जब जो समस्या सामने होता है हम तत्काल उसका हल निकालने के लिए जो नीति उपयुक्त मालूम पङता है उसका अनुसरण कर लेते है और ये होना भी चाहिए। मगर क्या ये सर्वथा उचित है? क्या हम किसी खास विचार को मानते हुए जीवन के सभी समस्या का हल ढूंढ़ सकते है? ऐसा संभव नही हो सकता है क्योंकि विचार व्यक्ति के खुद के अनुभव और ज्ञान पर आधारित होता है एवं समस्या प्रत्येक व्यक्ति का अलग-अलग होता है तो जरूरी नहीं है की किसी एक विचार व दर्शन से आपके सारे समस्या हल हो जायें।
अब आप दूनियाँ के तमाम दर्शन और विचार को पढ़े तो मालूम होगा की सभी विचार पर — स्थान, समय, समस्या बदलते गया है तथा उसका प्रभाव उसके वैचारिक दृष्टिकोण पर स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है तो ये समय के साथ सर्वथा उपयोगी हो ऐसा कतई जरूरी नहीं है। चाहे गांधी हो या अंबेडकर हो या लेनिन हो या मार्क्स हो या विवेकानंद हो आदि…
तो जब हम किसी खास लोगों के विचारों को पढ़ते हैं एवं उसका अनुसरण कर लेते है तो दूसरा विचार मुझे पसंद नही पङता है और बिना पढ़े, जानें, समझे हम दूसरे तमाम विचारों को गलत सिद्ध करने लगते है तथा उसकी तुलना हम पसंदीदा विचार से करते हुये उसे निचा दिखाना शुरू कर देते है जिससे एक तरह की मानसिकता पैदा होती है जो हमे यथार्थ से दूर लेकर चला जाता है और हम धीरे- धीरे अपने ही पसंद के विचारों के इर्द-गिर्द जीवन समाप्त कर लेते है और परिणाम ये होता है कि खुद के तमाम समस्याओं का हल जीवन रहते नही ढूंढ़ पाते है।
आज के इस बदलते परिवेश मे इंसान को चाहिए कि वो समय व समस्या के प्रकार को देखते हुए चिन्हित कर उसे वर्गीकृत करे तथा जहां गांधी की जरूरत हो वहां उसको लागू करे जहां अंबेडकर की जरूरत हो वहां उसे लागू करे जहां मार्क्स की जरूरत हो वहां उसे लागू करे तथा जहां विवेकानंद का ज़रूरत हो वहां उसे लागू करे तभी हम सारी समस्याओं का हल कर सकते हैं अन्यथा मानसिक गुलामी मे बंध कर उलझते चले जायेंगे।
लोकतांत्रिक प्रक्रिया केवल सत्ता के लिए नहीं होता है यह आपके व्यक्तिगत जीवन के लिए भी उतना ही उपयोगी है। जरूरत है अपने सोच के दायरा को आप कितना बढ़ा सकते है? और इसके लिए तमाम विचारों को पढ़ना और समझना जरूरी है तभी आप वैकल्पिक विचार को ढूंढ़ सकते है।

आशीष कुमार झा ‘माधव’
प्राचार्य
सरस्वती विद्या मंदिर
रोसड़ा, समस्तीपुर