WPD विश्व दर्शन दिवस पर वेबिनार का आयोजन

*व्याख्यान माला आयोजन*

दर्शन यथार्थ की परख के लिए एक दृष्टिकोण है और यह दृष्टिकोण सभी व्यक्तियों में पाया जाता है। सिर्फ दर्शन पढ़ाने वाले दार्शनिक नहीं हैं, बल्कि सभी व्यक्ति दार्शनिक हैं।

यह बात आईसीपीआर,  नई दिल्ली के अध्यक्ष *प्रो. (डाॅ.) रमेशचन्द्र सिन्हा* ने कही। वे विश्व दर्शन दिवस के उपलक्ष्य में आयोजित वेबिनार का उद्घाटन कर रहे थे।

कार्यक्रम शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार की स्वायत्त संस्था भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद् द्वारा प्रायोजित था।

उन्होंने कहा कि दर्शन प्राचीनतम विषय है और यह आधुनिक जीवन में भी प्रासंगिक है। कोई भी संस्कृति दर्शन के बगैर जीवित नहीं रह सकती है।

उन्होंने कहा कि दार्शनिक चिन्तन मूलतः जीवन की अर्थवत्ता की खोज का पर्याय है। अतः विश्व दर्शन दिवस हमारे लिए कर्तव्यबोध का दिवस है। इसका संदेश है कि हम दर्शन के प्रति प्रतिबद्ध हों और दर्शन को समाज के अंतिम व्यक्ति से जोड़ें।

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए *कुलपति प्रो. (डाॅ.) आर. के. पी. रमण* ने कहा कि आज जितनी भी चुनौतियाँ एवं समस्याएं है, उसका समाधान भारतीय दर्शन में है। यह दर्शन “वसुधैव कुटुंबकम” का संदेश देता है। आज संयुक्त परिवार समाप्त हो गया है और हमारा समाज विखंडित हो रहा है। हम लोग संकीर्ण हो गए हैं। भाई-भाई,  पिता-बेटा एवं पति-पत्नि में विवाद है।  आज हम विज्ञान के क्षेत्र में बहुत आगे बढ़ गए हैं, लेकिन नैतिकता के क्षेत्र में काफी पीछे हो गए हैं।

उन्होंने कहा कि आज प्रत्येक व्यक्ति अंतद्वंद में जी रहा है और वह सही-गलत का निर्णय नहीं ले पा रहा है। हमें नैतिक मूल्य ही सही- गलत का बोध करा सकते हैं। इसके लिए हमें भारतीय नैतिक दर्शन को अपने जीवन में आत्मसात करने की जरूरत है।

उन्होंने कहा कि भारतीय दर्शन नैतिकता पर आधारित है। इसके आधार पर हम अपने और संपूर्ण चराचर जगत का कल्याण कर सकते हैं।

उन्होंने कहा कि अपने लिए तो सब जीते हैं, लेकिन जो दूसरों के लिए जीते हैं, उनका ही जीवन सार्थक होता है।

उन्होंने कहा कि अंतर्मन की शक्ति को जागृत करना दर्शन का उद्देश्य है। जब भी हमारे जीवन में द्वंद आए हमें अंतर्मन की पुकार के आधार पर ही कार्य करना चाहिए।

कार्यक्रम के दौरान दर्शनशास्त्र के विभिन्न पहलुओं से संबंधित चार व्याख्यान हुआ।

*प्रति कुलपति प्रो. (डाॅ.) आभा सिंह* ने उत्तर कोरोनाकालीन जीवन दर्शन विषय पर व्याख्यान दिया। उन्होंने कहा कि कोरोना महामारी से पूरी दुनिया त्रस्त है। इस महामारी ने किसी को भी नहीं छोड़ा है। इसने हमारे जीवन में भूचाल ला दिया है। कोरोना ने न केवल स्वास्थ्य, शिक्षा एवं अर्थशास्त्र को प्रभावित किया है, बल्कि यह शांति एवं सहअस्तित्व के लिए भी बड़ा खतरा बनकर सामने आया है।

उन्होंने कहा कि  सभी व्यक्ति एक-दूसरे से जुड़े हैं- सभी संपूर्ण सृष्टि से जुड़े हैं। प्रत्येक मानव प्रकृति-पर्यावरण और चराचर जगत से जुड़ा हुआ है। मानव ब्रह्मांड में होने वाली सभी घटनाओं से प्रभावित होता है और मानव का हर कर्म भी संपूर्ण संसार को प्रभावित करता है। मानव का अच्छा कर्म संसार को विकास के मार्ग पर ले जाता है, जबकि उसका बुरा कर्म संपूर्ण चराचर जगत के विनाश का कारण बनता है।

उन्होंने कहा कि हमारा स्वास्थ्य भी वैश्विक संतुलन पर निर्भर है। यदि प्रकृति-पर्यावरण संतुलित एवं सामंजस्यपूर्ण स्थिति में रहेगा, तभी हम सही मायने में स्वस्थ रह सकेंगे। अतः हमें अपने अलावा दूसरों का भी ख्याल रखना चाहिए।

रामकृष्ण मिशन, मुजफ्फरपुर के सचिव *स्वामी भावात्मानंद जी महाराज* नव वेदांत समसामयिक संदर्भ विषय पर व्याख्यान दिया।

उन्होंने कहा कि वेदांत एक सनातन जीवन-दर्शन है। इसमें प्राचीन ऋषियों की अनुभूतियाँ हैं। विवेकानंद ने वेदांत के इस युगांतकारी विचारों को आधुनिक संदर्भों में व्याख्यायित किया और इसे जन-जन से जोड़ने की कोशिश की।

उन्होंने कहा कि विवेकानंद के विचारों में राष्ट्रीय एकता एवं विश्वबंधुता के सूत्र निहित हैं। यदि हम विवेकानंद की तरह सभी धर्मों की मूल भावनाओं को समझें और उसे मानवता के व्यापक हित के संदर्भों में व्याख्यायित करें, तो धार्मिक वैमनस्य एवं आतंकवाद का अंत हो जाएगा। हमें यह याद रहे कि स्वीकार्यता, सहिष्णुता एवं समभाव की भावना से ही न्याय, शांति एवं विकास का मार्ग प्रशस्त होगा।

उन्होंने लोगों में जनकल्याण की भावना जागृत करने और विवेकानंद के विचारों को जन-जन तक पहुँचाने पर बल दिया।

भारतीय महिला दार्शनिक परिषद् की अध्यक्ष *प्रो (डाॅ.) राजकुमारी सिन्हा (राँची)* के व्याख्यान का विषय मानव शास्त्रीय दार्शनिक अध्ययन समय की मांग था उन्होंने कहा कि दर्शन को आम लोगों से जोड़ने की जरूरत है।

उन्होंने दार्शनिकों का आह्वान किया कि वे अपने आंचलिक समाज एवं संस्कृति को अपने अध्ययन का विषय बनाएँ और हाशिए पर खड़े लोगों को भी दर्शन से जोड़ने का प्रयास करें।

अखिल भारतीय दर्शन परिषद् के अध्यक्ष *प्रो. (डाॅ.) जटाशंकर* (प्रयागराज) ने समसामयिक समस्याएं : वेदांती समाधान विषय पर व्याख्यान दिया।


उन्होंने कहा कि आज मानव स्वार्थी हो गया है। वह भोगवाद के वशीभूत होकर कर्तव्य-अकर्तव्य को भूल गया है। अपने अस्तित्व पर मंडरा रहे संकटों के बावजूद वह अपनी जिद छोड़ने को तैयार नहीं है।

उन्होंने कहा कि वेदांत विश्व में एकत्व की दृष्टि का प्रतिपादन करता है । इसी दृष्टि में में विश्व की सभी समस्याओं का समाधान निहित है। यदि हम वेदांती जीवन दृष्टि को आत्मसात करेंगे, तो हम सभी समस्याओं से मुक्त हो सकते हैं ।

उन्होंने कहा कि समाज के अंतिम व्यक्ति का विकास ही दर्शन का मुख्य उद्देश्य है। हमें जीवन में उतना ही संग्रह करना चाहिए, जिससे हमारा जीवन सुचारू रूप से संचालित हो सके। आवश्यकता से अधिक संग्रह करना पाप है।

कार्यक्रम का संचालन असिस्टेंट प्रोफेसर डाॅ. सुधांशु शेखर (आयोजन सचिव) और धन्यवाद ज्ञापन विभागाध्यक्ष शोभाकांत कुमार ने किया। अतिथियों का स्वागत स्वागत मोमेंटो एवं पुष्पगुच्छ से किया गया। प्रांगण रंगमंच की तनुजा सोनी ने स्वागत गीत एवं गणेश वंदना प्रस्तुत किया। कार्यक्रम का समापन राष्ट्रगान के सामूहिक गायन के साथ हुआ

कार्यक्रम में उत्तर भारत दर्शन परिषद् के अध्यक्ष डाॅ. सभाजीत मिश्र, पटना विश्वविद्यालय, पटना की डाॅ. पूनम सिंह, कुलसचिव डॉ. मिहिर कुमार ठाकुर, सिंडिकेट सदस्य डाॅ. जवाहर पासवान, विकास पदाधिकारी डाॅ. ललन प्रसाद अद्री, उप खेल सचिव डाॅ. शंकर कुमार मिश्र, के. पी.  काॅलेज, मुरलीगंज के डाॅ. अमरेन्द्र कुमार, कुलपति के निजी सहायक शंभु नारायण यादव, केंद्रीय पुस्तकालय के सिद्दु कुमार, माया के अध्यक्ष राहुल यादव, सीनेटर रंजन यादव, शोधार्थी सारंग तनय, माधव कुमार, दिलीप कुमार दिल,  सौरभ कुमार चौहान, लक्ष्मण कुमार, शशि कुमार, राजहंस राज, बिमल कुमार, नीतीश कुमार, सुधांशु कुमार, फिरोज मंसूरी, डाॅ. आर. एस. यादव, उज्ज्वल कुमार, मो. अलमान अली, आशीष कुमार, संगीत कुमार, एम. एस. भास्कर, लव कुमार, रोशन कुमार, चंदन कुमार, सुमन कुमार, सुभाष कुमार सुमन, सुधीर कुमार विद्यार्थी, विकास कुमार, रुसी कुमारी, रूचि, स्नेहा, रवीन्द्र कुमार पासवान, अमरनाथ कुमार साह, दीपक कुमार, धीरज कुमार, लक्ष्मण कुमार,  निखिल कुमार, अभिमन्यु कुमार, रूपेश कुमार, फूल कुमारी, वंदना कुमारी, प्रियंका कुमारी, रचना भारती, ओम ज्योति, स्मृति कुमारी, आयसा खातुन, प्रियंका राज, नीतू कुमारी, गुरूदेव कुमार, पिंटू कुमार, राजकुमार, बिरबल कुमार, विकास कुमार, प्रभाकर कुमार, निधि कुमारी, प्रियंका कुमारी, जगन राम आदि ने भाग लिया।

मालूम हो कि विश्व दर्शन दिवस के आयोजन हेतु शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार के अंतर्गत संचालित भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद् से अनुदान भी प्राप्त हुआ है।

विश्व दर्शन दिवस के आयोजन हेतु शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार के अंतर्गत संचालित भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद् से अनुदान भी प्राप्त हुआ है। परिषद् के निदेशानुसार यह आयोजन सुप्रसिद्ध दार्शनिक सुकरात के जन्मदिवस के उपलक्ष्य में नवंबर 2020 के तीसरे गुरूवार को ही होना था। लेकिन कोरोना संक्रमण के खतरों के कारण आयोजन में विलंब हुआ।

विश्व दर्शन दिवस मनाने की शुरुआत संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) द्वारा वर्ष 2002 से की गई है।

विश्व दर्शन दिवस मनाने का मुख्य उद्देश्य दार्शनिक विरासत का संरक्षण एवं संवर्धन है। इसके अंतर्गत दार्शनिक विरासत को साझा करने के लिए विश्व के सभी लोगों को प्रोत्साहित करना और विभिन्न विचारों के लिए खुलापन लाना तथा समकालीन चुनौतियों से लड़ने के लिए विचार-विमर्श को प्रेरित करना शामिल है।