कविता / मुझे अँधेरों में रखा / डॉ. कविता भट्ट ‘शैलपुत्री’ श्रीनगर-गढ़वाल, उत्तराखंड
मुझे अँधेरों में रखा
डॉ कविता भट्ट 'शैलपुत्री'
श्रीनगर-गढ़वाल, उत्तराखंड
मेरी सरलता ने मुझे अंधेरों में रखा,
वरना, कोई कमी न थी मुझे उजालों की।
उसके मोह ने इस शहर के फेरों में रखा,
हवा न लगी मुझे मशहूर होने के ख्यालों की।
झिर्रियों की रोशनी को बाँह के डेरों में रखा,
जिससे घबरायी वो परछाईं थी मेरे ही बालों की।
उसने हमराज़-हमदर्द शब्दों के ढेरों में रखा,
नैनों की भाषा हारी, लिपि भावों के उबालों की।
चाँद ने उस रात प्यार के घेरों में रखा,
सूरज ने हमेशा गवाही दी मेरे पैरों के छालों की।
दूर के पर्वत की चोटी को मैंने पैरों में रखा,
जानकर 'कविता' अनदेखी करती रही चालों की
डॉ. कविता भट्ट लेखिका/साहित्यकार, सम्पादिका तथा योग-दर्शन विशेषज्ञ हैं। आप 'उन्मेष' की राष्ट्रीय महासचिव के रूप में समाज सेवा में निरन्तर निरत हैं। शैक्षणिक एवं साहित्यिक लेखन हेतु आपको अनेक प्रत...