“ज्ञानमीमांसा : सवालों के पीछे से सवाल”
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प्रोफेसर दयाकृष्ण का नाम 20वीं सदी के मौलिक भारतीय चिंतकों में अग्रगण्य है। मैंने स्नातक में अध्ययन के दौरान ही कहीं पढ़ा था कि बहुचर्चित दार्शनिक ओशो रजनीश भी आपके विद्यार्थी रहे थे। इसके कारण मेरी प्रो. दयाकृष्ण जी में उत्सुकता जगी।
फिर बाद के दिनों में जब मैं प्रो. रामजी सिंह साहेब के सानिध्य में आया, तो मैंने जाना कि प्रो. दयाकृष्ण एवं श्री यशदेव शल्य दो बड़े मौलिक चिंतक हैं।
भारत के सभी विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रमों में स्वातंत्र्योत्तर भारतीय दार्शनिक नामक एक पत्र शामिल करने की जरूरत है, जिससे नई पीढ़ी को प्रो. दयाकृष्ण एवं श्री यशदेव शल्य आदि दार्शनिकों को पढ़ने-समझने का अवसर मिल सके।
आज की शाम प्रो. दयाकृष्ण जी के नाम रहा। प्रो. आशा मुखर्जी, शांतिनिकेतन (पश्चिम बंगाल) तथा प्रो. अम्बिकादत्त शर्मा, सागर (मध्यप्रदेश) के प्रति बहुत-बहुत आभार।
नोट : यदि समय हो, तो कुछ देर इस विडियो को सुन सकते हैं। विषय काफी रोचक है- “ज्ञान मीमांसा : सवालों के पीछे से सवाल”।
कुछ तकनीकी कारणों से बीच में कट गया था। इसलिए व्याख्यान दो भागों में है –
प्रथम भाग -30 मिनट
द्वितीय भाग- 01 घंटा 40 मिनट
संबंधित पुस्तक का पीडीएफ लिंक-Daya Krishna_jnana mimamsa