GUJRAT पोरबंदर के गांधी ( गुजरात डायरी) 

पोरबंदर के गांधी

( गुजरात डायरी)

तीसरी या चौथी कक्षा में कोर्स की किताब में गांधी पर एक लेख था जो मैंने रट लिया था। उसका पहला पैराग्राफ अब भी याद है कि ‘महात्मा गांधी का जन्म गुजरात के पोरबंदर में हुआ था । उनकी माता का नाम पुतली बाई और पिता का नाम कर्मचंद गांधी था । उनके पिता कर्मचंद गांधी राजकोट की रियासत के दीवान थे। …’

सोमनाथ से द्वारका जाने के लिए मैंने सड़क मार्ग से जाने की योजना इसलिए बनायी ताकि पोरबंदर में गांधी का जन्मस्थान देख सकूं। मेरी गाड़ी के ड्राइवर को सोमनाथ के आसपास के तमाम पर्यटन स्थलों की जानकारी थी। सोमनाथ से निकलने के बाद चौड़ी सड़क के दोनों तरफ नारियल के बागानों का सिलसिला काफी दूर तक चला। समुद्र तटीय इलाके में पहुंचे तो उसने गाड़ी रोक दी। यह माधोपुर बीच था। प्रदीप ने बताया कि यहां भी लोग घूमने आते हैं। समुद्र तट की रेत पर एक शामियाना लगा था। जिसके नीचे कुर्सियां लगी थीं। नारियल पानी के कुछ ठेले और एक आउटलेट भी था जिसमें खाने पीने की चीजें थीं। हालांकि हम उस शामियाने के पास नहीं गये और सड़क की रेलिंग के ही नीचे वाले ठेले से नारियल पानी पीया। प्रदीप ने नारियल पानी नहीं पिया और बिसलेरी का एक बोतल लिया। इतना बढ़िया नारियल पानी मैंने शायद ही कभी पीया हो। वह भी महज तीस रुपए प्रति नारियल। हम उसे एक खाली नारियल के ढेर पर फेंकने ही जा रहे थे कि बेचने वाले ने उसे अपने हाथ में ले लिया और उसे काटकर बहुत नफासत से उसकी मलाई निकाल कर श्रीमती जी को खाने दिया। हालांकि मेरे मेरे वाले नारियल में मलाई नहीं निकली। अपना-अपना भाग्य !

जिस सड़क पर हमारी गाड़ी चल रही थी उस पर अधिक ट्रैफिक नहीं थी । सड़क एकदम साफ सुथरी। कहीं धूल-धक्कड़ नहीं। प्रदीप ने जब मुख्य सड़क निकलती, अपेक्षाकृत कम चौड़ी सड़क पर गाड़ी को मोड़ा, तभी मुझे अनुमान हो गया कि पोरबंदर आ गया है। फिर कुछ दूकानों के साइन बोर्ड पर गुजराती और अंग्रेजी में पोरबंदर लिखा देखा तो आश्वस्त हो गया।

प्रदीप ने जिस तिराहे पर गाड़ी साइड किया वहां से कीर्ति मंदिर ( गांधी जी की जन्मस्थली के पास बना गांधी संग्रहालय) मुश्किल से पचास कदम की दूरी पर था। प्रदीप ने बताया कि आगे वन वे ट्रैफिक है वहां तक गाड़ी नहीं जायेगी। हमलोग गाड़ी से उतर गये। प्रदीप ने हाथ के इशारे से बताया कि गाड़ी वहां पार्क करते हैं। आपलोग घुम कर आइए।

कीर्ति मंदिर हवेलीनुमा भवन है। बीच में चौकोर बड़ा सा आंगन। हमने गेट के पास ही अपने जूते उतार दिए। आंगन में बांस-बल्ले खोले जा रहे थे। याद आया कल तीस जनवरी था, कोई कार्यक्रम रहा होगा। मेरी नज़र उस दरवाजे पर गयी जिसके ऊपर लिखा था ‘पूज्य महात्मा गांधी जी का जन्मस्थान ‘ हम सबसे पहले उसी दरवाजे की तरफ बढ़े लेकिन सिक्युरिटी गार्ड ने रोक दिया कि अभी इधर काम चल रहा है। ऊपर निगाह गई तो देखा कुछ मजदूर काम कर रहे थे। हम दूसरे कक्षों में घुमने लगे । जहां गांधी से जुड़ी हुई स्मृतियां प्रदर्शित थी। हर कक्ष में एक कर्मचारी जरुर था जिसे विजिटर्स में कोई रुचि नहीं थी। वे अपनी कुर्सियों पर बैठे ऊंघ रहे थे। नीचले तल पर घुमने के बाद हम पहली मंजिल पर भी गये। वापसी के पहले मैं लघुशंका से निपटना चाहता था। अनुमान से ही पीछे की तरफ गया। जहां तीन शौचालय थे जो बेहद गंदे थे। खैर, किसी तरह फारिग हुआ। कोफ्त हुई कि जिस गांधी को स्वच्छता मिशन का इतना बड़ा अग्रदूत माना जाता है । उन्हीं की स्मृति में बने मंदिर में इतनी गन्दगी?

कीर्ति मंदिर से बाहर निकल उसी तिराहे के पास आया जहां हमारी गाड़ी खड़ी थी। मुझे चाय पीने की इच्छा हुई । वहीं बगल में एक दूकान में चाय पीया। यह चाय सिर्फ पांच रुपए की थी।

हमारी गाड़ी फिर हाई-वे पर थी जहां से द्वारका की दूरी सौ किलोमीटर थी ।

(दिनांक : 31.1.2024)

रामदेव सिंह