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BNMU प्रौद्योगिकी और समाज विषय पर संवाद। प्रौद्योगिकी का है मानव-जीवन में महत्वपूर्ण स्थान : डॉ. आलोक टंडन

*प्रौद्योगिकी और समाज विषय पर संवाद*

प्रौद्योगिकी का है मानव-जीवन में महत्वपूर्ण स्थान : डॉ. आलोक टंडन

मधेपुरा। प्रौद्योगिकी का मानव-जीवन में महत्वपूर्ण स्थान है। यह हमारे जीवन के सभी क्षेत्रों से जुड़ा हुआ है।

यह बात चर्चित दार्शनिक डॉ. आलोक टंडन (उत्तर प्रदेश) ने बुधवार को कही। वे ‘प्रौद्योगिकी और समाज’ विषयक ऑनलाइन- ऑफलाइन संवाद में मुख्य वक्ता थे। कार्यक्रम का आयोजन भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली की स्टडी सर्किल योजनान्तर्गत दर्शनशास्त्र विभाग, बीएनएमयू, मधेपुरा के तत्वावधान में किया गया।

*मानव-समाज का एक अभिन्न हिस्सा है प्रौद्योगिकी*
उन्होंने कहा कि प्रौद्योगिकी मानव-समाज का एक अभिन्न हिस्सा है। आज मनुष्य एवं मनुष्य के बीच का संबंध और मनुष्य एवं प्रकृति के बीच का संबंध भी प्रौद्योगिकी द्वारा तय हो रहा है।

उन्होंने कहा कि प्रौद्योगिकी के विकास ने मनुष्य की क्षमताओं को अविश्वसनीय सीमाओं तक बढ़ा दिया है। नए-नए उत्पादों एवं सेवाओं के सृजन से मनुष्य-जीवन को दीर्घायु, सुखी एवं पूर्ण बनाने की संभावनाओं के द्वार खुलने लगे हैं। लेकिन प्रौद्योगिकी की क्षमताओं, संभावनाओं एवं वास्तविकता के बीच मेल नहीं है। प्रौद्योगिकी का लाभ आम लोगों को नहीं मिल पा रहा है।

*निरपेक्ष विधा नहीं है प्रौद्योगिकी*
उन्होंने कहा कि प्रौद्योगिकी अपने-आपमें निरपेक्ष विधा नहीं है। इसका भी वर्ग-चरित्र होता है। इस संदर्भ में यह महत्वपूर्ण है कि प्रौद्योगिकी का विकास, प्रयोग, उपभोग कौन, किसके हितों के लिए कर रहा है और उसके क्या परिणाम निकल रहे हैं? इसके लिए प्रौद्योगिकी के बाजार, सत्ता, आर्थिक उपनिवेशवाद और उपभोक्तावाद से रिश्तों की पड़ताल जरूरी
है।

उन्होंने कहा कि मानव इतिहास में प्रौद्योगिकी की भूमिका हितैषी भी रही है और विनाशकारी भी। आज प्रौद्योगिकी का मुख्य इस्तेमाल सैनिक उद्देश्यों एवं आर्थिक लाभ के लिए किया जा रहा है। इससे मानव-जीवन एवं प्राकृति-पर्यावरण पर भी संकट के बादल छाए हैं।

*प्रौद्योगिकी का सामाजिक एवं सांस्कृतिक आयाम काफी महत्वपूर्ण*
उन्होंने कहा कि प्रौद्योगिकी का सामाजिक एवं सांस्कृतिक आयाम काफी महत्वपूर्ण है। हम तकनीकी विकास को विभिन्न समूहों की सामाजिक एवं सांस्कृतिक स्थिति से अलग
करके नहीं समझ सकते हैं।

*समाज एवं राष्ट्र के लिए उपयोगी हो प्रौद्योगिकी*
मुख्य अतिथि अखिल भारतीय दर्शन परिषद् के अध्यक्ष प्रो. जटाशंकर (प्रयागराज) ने कहा कि प्रौद्योगिकी और समाज एक-दूसरे से गहरे जुड़ा हुआ है। प्रौद्योगिकी प्रत्येक युग में रही है और उससे समाज का गहरा संबंध रहा है।

उन्होंने कहा कि भारतीय परंपरा में सभी मनुष्यों एवं संपूर्ण चराचर जगत के कल्याण की कामना की गई है। सत्यम्, शिवम्-सुंदरम् ही हमारा आदर्श है। हमने वैसी प्रौद्योगिकी को बढ़ावा दिया, जो हमारे समाज, राष्ट्र एवं संपूर्ण मानवता के लिए उपयोगी हो।

*हमारे जीवन का अभिन्न अंग है प्रौद्योगिकी*
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए आईसीपीआर के पूर्व अध्यक्ष डॉ. रमेशचंद्र सिन्हा‌ ने कहा कि आज प्रौद्योगिकी मानव जीवन एवं समाज का अभिन्न अंग है। हम जन्म से लेकर मृत्युपर्यंत प्रौद्योगिकी पर निर्भर हैं। आज हम प्रौद्योगिकी के बिना सभ्य समाज की कल्पना भी नहीं कर सकते हैं।
*मनुष्य पर निर्भर है प्रौद्योगिकी*

उन्होंने कहा कि प्रौद्योगिकी मनुष्य के लिए है। मनुष्य ही इसका प्रयोग करता है। प्रौद्योगिकी का मूल्य भी उसके उपयोग पर ही निर्भर है। अस्त्र-शस्त्र का प्रयोग हम रक्षा एवं हत्या दोनों के लिए करते हैं। अस्त्र- शस्त्र रक्षा उपयोग रूप में मूल्यवान और हत्या रूप में मूल्यहीन हो गई।

इस अवसर पर हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय, श्रीनगर-गढ़वाल में दर्शनशास्त्र विभागाध्यक्ष डॉ. इंदू पांडेय खंडूड़ी ने प्रौद्योगिकी की सार्वभौमिकता के संबंध में महत्वपूर्ण प्रश्न उठाया।

इसके पूर्व अतिथियों का अंगवस्त्रम् एवं पाग से स्वागत किया गया। प्रांगण रंगमंच के कलाकारों ने अपनी प्रस्तुति दी। अतिथियों का स्वागत ठाकुर प्रसाद महाविद्यालय, मधेपुरा के प्रधानाचार्य डॉ. कैलाश प्रसाद यादव ने किया। संचालन आयोजन सचिव डॉ. सुधांशु शेखर ने की। धन्यवाद ज्ञापन दर्शनशास्त्र विभागाध्यक्ष शोभाकांत कुमार ने किया।

इस अवसर पर डॉ. अनिल कुमार तिवारी (जम्मू- कश्मीर), डॉ. मुकेश कुमार चौरसिया (पटना), डॉ. शंकर कुमार मिश्र, डॉ. राकेश कुमार, डॉ. आदेश प्रताप सिंह, आलोक रंजन, अंजुम, रॉकी यादव, अनिल कुमार ठाकुर, डॉ. नीतू सिंह, डॉ. पूजा रानी, जूही कुमारी, नंदकिशोर सिंह, नीतू कुमारी, पंकज सिंह, सारंग तनय, सौरभ कुमार चौहान, मौलाना आजाद, अभिषेक पांडे, प्रियंका सिंह, सिद्दू कुमार, आकाश कुमार, सुनयना कुमारी, काजल कुमारी, मनिषा भारती, माधव कुमार, राजकुमार चौबे, राम सिंह यादव, शाहबाज बेगम, डॉ. शिवेंद्र प्रताप सिंह, सुमन पौद्दार, सुनील कुमार, भगत विजय कुमार, विनय कुमार, गौरव कुमार, सौरव कुमार चौहान, एकता कुमारी, रिंकी कुमारी, प्रियंका कुमारी, मनिषा कुमारी, कुमारी रंगीली, कुमारी बुलबुल, खुशबू कुमारी, ममता, अंचल कुमार आनंद आदि उपस्थित थे।

*आईसीपीआर की है महत्वपूर्ण योजना*
डॉ. शेखर ने बताया कि ‘स्टडी सर्किल’ के तहत लोगों का एक छोटा समूह नियमित रूप से एक वर्ष तक प्रत्येक माह एक पूर्व निर्धारित विषय पर संवाद और चर्चा-परिचर्चा करते हैं। इसमें सर्वप्रथम एक विशेषज्ञ वक्ता अपना व्यक्त देते हैं। तदुपरांत उनके वक्तव्य एवं विषय के विभिन्न पहलुओं पर टिप्पणी एवं प्रश्नोत्तर होगा।

*सफलतापूर्वक संपन्न हो चुके हैं पांच संवाद*
बीएनएमयू, मधेपुरा में स्टडी सर्किल अप्रैल 2022 से मार्च 2023 तक चलेगा। प्रथम संवाद (अप्रैल 2022) में आईसीपीआर के पूर्व अध्यक्ष डॉ. रमेशचन्द्र सिन्हा ने ‘सांस्कृतिक स्वराज’ विषय पर मार्गदर्शन‌ दिया था। दूसरे संवाद में ‘गीता का दर्शन’ विषय पर अखिल भारतीय दर्शन परिषद् के अध्यक्ष प्रो. जटाशंकर मुख्य वक्ता थे। जून में तीसरा संवाद ‘मानवता के लिए योग’ विषय पर हुआ, जिसके मुख्य वक्ता पटना विश्वविद्यालय पटना के सेवानिवृत्त प्रोफेसर डॉ. एन. पी. तिवारी और जुलाई में चौथे संवाद (भारतीय दर्शन में जीवन-प्रबंधन) के मुख्य वक्ता डॉ. इंदु पांडेय खंडुरी, श्रीनगर-गढ़वाल (उत्तराखंड) थीं। बुधवार को पांचवां संवाद आयोजित हुआ।

*आगे के विषय भी निर्धारित*
आगे वेदांत दर्शन : एक विमर्श (डाॅ. राजकुमारी सिन्हा, रांची), बौद्ध दर्शन की प्रासंगिकता (डॉ. वैद्यनाथ लाभ), नव वेदांत की प्रासंगिकता (स्वामी भवात्मानंद महाराज), समाज-परिवर्तन का दर्शन (डॉ. पूनम सिंह) एवं राष्ट्र-निर्माण में आधुनिक भारतीय चिंतकों का योगदान (डॉ. नरेश कुमार अम्बष्ट), टैगोर का मानववाद (डॉ. सिराजुल इस्लाम), गांधी-दर्शन की प्रासंगिकता (डॉ. विजय कुमार) एवं सर्वोदय-दर्शन की प्रासंगिकता (डॉ. विजय कुमार) विषयक संवाद का आयोजन किया जाएगा।