BNMU। गाँव एवं किसान को केंद्र में रखकर बने कानून

गाँधी के चिंतन का केंद्र बिन्दु ‘गाँव’ और किसान है। उन्होंने बार-बार यह दुहराया है कि भारत अपने चंद शहरों में नहीं, बल्कि सात लाख गाँवों में बसा हुआ है। इसलिए यदि गाँव का नाश होगा, तो भारत का भी नाश हो जाएगा। यह बात गाँधी विचार विभाग, तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय, भागलपुर के अध्यक्ष प्रोफेसर डॉ. विजय कुमार ने कही। वे यू-ट्यूब चैनल बीएनएमयू संवाद पर ‘वर्तमान कृषि कानून और किसान’ विषयक व्याख्यान दे रहे थे।

उन्होंने कहा कि वर्तमान कृषि कानून को लेकर कई दिनों से किसानों का आंदोलन चल रहा है। इस मामले में सरकार और किसान-संगठनों के बीच वार्ता भी हो रही है। आशा की जानी चाहिए कि इस शीघ्र ही इस मामले का समुचित समाधान होगा।

उन्होंने कहा कि गाँधी के सपनों का स्वराज्य ग्राम-स्वराज ही है। इसमें किसानों, कामगारों एवं श्रमिकों का महत्वपूर्ण स्थान है। गाँधी-विचार का तकाजा है कि गाँव, कृषि और किसानों को केंद्र में रखकर योजनाएँ बनाई जाएँ।

उन्होंने कहा कि आजादी के बाद देश को गाँव की ओर ले जाने की जरूरत थी। लेकिन हम उस दिशा में नहीं गए। पूरी दुनिया में और भारत में भी विकास का जो चेहरा सामने आया है, वह गाँव विरोधी है। पूंजीपतियों ने खेती-किसानी एवं पशुपालन पर नजर डाली है। कच्चे माल के दोहन का नया रास्ता निकाला है। इसीलिए अनाज पैदा करने वाले, फल पैदा करने वाले, साग-सब्जी पैदा करने वाले, बाग बगीचा लगाने वाले, दूध पैदा करने वाले, मछली पैदा करने वाले आदि उत्पादक औद्योगिक नहीं माने गए हैं।
उन्होंने कहा कि गाँधी के सपनों की ग्राम-इकाई मजबूत-से-मजबूत होगी और यह कृषि पर आधारित होगी। एक हजार आदमी का एक गाँव होगा। ऐसे गाँव को अगर स्वावलंबन के आधार पर अच्छी तरह संगठित किया जाए, तो वह बहुत कुछ कर सकता है। ऐसा समाज अनगिनत गाँवों का बना होगा। इसका फैलाव एक के ऊपर एक के ढंग पर नहीं, बल्कि लहरों की तरह एक के बाद एक की शकल में होगा। जिंदगी मीनार जैसी नहीं होगी, जहाँ ऊपर की तंग चोटी को नीचे के चैड़े पाए पर खड़ा होना पड़ता है। यहाँ तो समुद्र की लहरों की तरह जिंदगी एक के बाद एक घेरे की शक्ल में होगी।
उन्होंने बताया कि गाँधी के ग्राम-स्वराज में आजादी नीचे से शुरू होगी। हर एक गाँव में पंचायत-राज होगा। उसके पास पूरी सत्ता और ताकत हो। इसके आलोक में सत्ता के विकेद्रीकरण की जरूरत थी, लेकिन यह सही अर्थों में नहीं हो सका।

उन्होंने कहा कि वर्तमान पंचायती राज गाँधी को पर्याप्त अधिकार नहीं दिए गए हैं और यह गाँधी के सपनों के अनुकूल भी नहीं है। कुल मिलाकर स्थिति संतोषजनक नहीं है और यह कहना कोई अतिश्योक्ति नहीं है कि गाँधी का सपना अधूरा है। ‘स्वाराज’ एवं ‘सुराज’ दोनों अभी बाकी है।
उन्होंने कहा कि आज यह जरूरी है कि हमारी सरकार महानगरों एवं पूंजीपतियों की बजाय गाँव और किसानों को केंद्र में रखकर सोचे। गाँव और किसान के हित में कानून बनाए जाएँ।