Gandhi। आधुनिक सभ्यता का संकट और गाँधी

आधुनिक सभ्यता का संकट और गाँधी
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नोट : बीएनएमयू संवाद के अंतर्गत हम अतीत की कुछ यादों को भी आप सबों से शेयर करेंगे। इसकी पहली कड़ी में हम 31 जुलाई, 2017 को आयोजित एक कार्यक्रम का विवरण शेयर कर रहे हैं।

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मोहन दास ने लंदन से बैरिस्टरी की डिग्री प्राप्त की थी और उन्होंने आधुनिक पश्चिमी सभ्यता को काफी करीब से देखा था। वे इसे मानवता के लिए विनाशकारी मानते थे। इसलिए उन्होंने आधुनिक सभ्यता को त्यागकर प्राचीन भारतीय सभ्यता-संस्कृति को आत्मसात किया। सूट-बूट छोड़ी और आधी धोती धारण कर लिया। यहीं से मोहनदास महात्मा बने। मोहनदास का महात्मा में रूपांतरण प्रेरणादायी है। यह बात बी. एन. मंडल विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर डॉ. अवध किशोर राय ने कही। वे 31 जुलाई, 2017 को टी. पी. कालेज, मधेपुरा में ‘आधुनिक सभ्यता का संकट और गाँधी’ विषयक व्याख्यान में मुख्य अतिथि के रूप में बोल रहे थे।

कुलपति ने कहा कि हम आधुनिक सभ्यता की ओर जाकर अपना सर्वनाश नहीं करें। भारतीय सभ्यता-संस्कृति में निहित ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ एवं ‘सर्वे भवनतु सुखिनः’ के आदर्शों को अपनाएं। हमें आधुनिक पश्चिमी सभ्यता की अंधदौड़ में फंसकर अपनी प्राचीन भारतीय सभ्यता-संस्कृति को नहीं भूलना चाहिए।

कुलपति ने कहा कि गाँधी की दृष्टि में सभ्यता वह आचरण है, जिससे व्यक्ति अपना फर्ज यदा करता है। इसका मतलब है नीति का पालन करना। अतः हमें अपने अधिकारों की बात करते हुए कभी भी कर्तव्य को नहीं भूलना चाहिए। उन्होंने कहा कि गाँधी ने सादगी एवं संयम का पाठ पढाया है। हम प्रकृति-पर्यावरण से उतना ही लें जितना आवश्यक है। यह प्रकृति हम सबकी आवश्यक आवश्यकताओं को पूरा कर सकती है। लेकिन इसमें हमारे असीमित लोभ-लालच को पूरा करने का सामर्थ्य नहीं है। उन्होंने कहा कि गाँधी सभी सभी यंत्रों के विरोधी नहीं थे। वे वैसे यंत्रों के विरोधी थे, जिससे बेरोजगारी बढती है। वे चाहते थे कि हम मशीनों का कम से कम उपयोग करें। हम मशीनों के गुलाम नहीं बनें।असीमित लोभ-लालच को पूरा करने का सामर्थ्य नहीं है।

कुलपति ने कहा कि गाँधी के विचार आज भी प्रासंगिक हैं। हम गाँधी को जानें-समझें और उनके बताए रास्ते पर चलने का प्रयास करें। उन्होंने कहा कि स्किल डेभलपमेन्ट, मेक इन इन्डिया, स्वच्छ भारत अभियान, अर्न ह्वाइल लर्न आदि प्रोग्राम गाँधी के स्वदेशी एवं स्वाबलंबन के विचारों से प्रेरित हैं। ऐसे कार्यक्रमों को सही रूप में लागू करने की जरूरत है।

मुख्य वक्ता पूर्व सांसद, पूर्व कुलपति एवं सुप्रसिद्ध गाँधीवादी विचारक प्रोफेसर डॉ. रामजी सिंह ने कहा कि आधुनिक सभ्यता भौतिक विकास के चरमोत्कर्ष पर है, लेकिन इसकी दिशा विनाशकारी है। हम अंतरिक्ष में जा रहे हैं, लेकिन पड़ोसी का घर दूर हो रहा है। गंभीर पर्यावरणीय संकट से सृष्टि के सर्वनाश का खतरा उत्पन्न हो गया है। चारों ओर हिंसा को बढावा दिया जा रहा है। इन तमाम समस्याओं से बचने का एक मात्र उपाय है गाँधी को अपनाना।

उन्होंने का कि गाँधी के सत्य एवं अहिंसा के रास्ते पर चलकर ही दुनिया को बचाया जा सकता है। हम लाठी एवं बंदुक से किसी का सर फोर सकते हैं, लेकिन सर फेर नहीं सकते हैं। अहिंसा के रास्ते ही हृदय परिवर्तन होगा और इसी से आधुनिक सभ्यता के संकटों का समाधान होगा।

उन्होंने कहा कि आज राजनीति में नैतिकता का ह्रास हो रहा है। हमें राजनीति को सात्विक बनाना होगा।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए प्रधानाचार्य प्रोफेसर डॉ. एच. एल. एस. जौहरी ने कहा कि आगे भी ऐसे कार्यक्रमों का आयोजन किया जाएगा।

व्याख्यान में सिडिकेट सदस्य द्वय डॉ. परमानंद यादव एवं डॉ. जवाहर पासवान ने भी अपने विचार व्यक्त किया।

इसके पूर्व कार्यक्रम की शुरूआत आगत अतिथियों ने दीप प्रज्जवलित कर किया।

स्वागत मैथिली विभाग के अध्यक्ष डॉ. अमोल राय ने किया।

संयोजन एवं संचालन की जिम्मेदारी दर्शनशास्त्र विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. सुधांशु शेखर ने निभायी। धन्यवाद ज्ञापन लेखापाल डॉ. कपिलदेव प्रसाद ने किया।

इस अवसर पर डॉ. राजीव रंजन, डॉ. शिवशंकर कुमार, डॉ. ए. के. मल्लिक, डॉ. रतनदीप, डॉ. वीणा कुमारी, विजया, शंकर सुमन, राजकुमार रजक, मनीष कुमार, तरूण कुमार, रौशन, मुकेश कुमार, नीतीश कुमार, सुभाष, अनिल, राजीब आदि दर्जनों शिक्षक एवं छात्र-छात्राए उपस्थित थे।