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“प्राचीन भारतीय इतिहास के स्रोत : महत्व एवं सीमा” विषय पर एकदिवसीय विचार-संगोष्ठी का आयोजन

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भूपेन्द्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय , उतरी परिसर,मधेपुरा में स्थित स्नातकोत्तर प्राचीन भारतीय इतिहास एवं संस्कृति विभाग के सेमिनार हॉल मे 20 दिसम्बर 2025 को “प्राचीन भारतीय इतिहास के स्रोत : महत्व एवं सीमा” विषय पर एकदिवसीय विचार-संगोष्ठी का आयोजन प्रोफ़ेसर डॉ. अशोक कुमार सिंह( विभागाध्यक्ष )के अध्यक्षता में की गई।मंच का संचालन डॉ सरफराज आलम( सहायक प्रध्यापक)
ने किया। विचार संगोष्ठी को संबोधित करते हुए विभागाध्यक्ष प्रोफेसर डॉक्टर अशोक कुमार सिंह ने कहा कि इतिहास के स्त्रोत बहुत मूल्यवान होते है। स्रोतों हमे समाज, गांव ,परिवार, परिवर्तनों व देश के अतीत को जानने में मदद करती है।

इन्ही स्रोतों के माध्यम से अतित के गर्भ में दबे हुए मानवीय संस्कृति को जानने का प्रयास करते है। इसलिए इन स्त्रोतों का महत्व है। जीवन में इतिहास की जानकारी अहम है । सोलहवीं सदी के फ्रांसिस बेकन की प्रसिद्ध उक्ति की”History make man wise ” का जिक्र करते हुए इतिहास का आम जीवन में महत्व को बताया। उन्होंने आगे यह भी कहा कि इसके लिए स्त्रोतों का होना जरूरी है। इतिहास की जानकारी के लिए स्रोतों की समझ होना चाहिए।

प्रोफेसर सिंह ने सभी छात्रों से यह भी कहा कि सभी को नियमित रूप से क्लास में उपस्थिति होना है।75./. (पचहतर प्रतिशत) उपस्थित सभी छात्रों के लिए अनिवार्य है। विश्व विद्यालय के गाइडलाइन हवाला देते हुए विभागध्यक्ष ने छात्रो से ये बातें कही।

डॉ० सरफराज आलम (सहायक प्राध्यापक), प्राचीन भारतीय इतिहास एवं संस्कृति विभाग ने विचार संगोष्ठी को पाठ्यक्रम से जोड़ कर एवं उसके अन्य महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि यह विचार संगोष्ठी पाठयक्रम का’अभिन्न अंग है। सभी छात्रों को संगोष्ठी में भाग लेना चाहिये। इसे तर्क शक्ति, और ज्ञान क्षमता में विकास होता है।

इस संगोष्ठी में प्राचीन भारतीय इतिहास एवं संस्कृति विभाग ,उत्तरी परिसर के सभी शिक्षकगणों में डाँ कुमारी प्रीति सिंह, डॉ, शानू आनन्द, डॉ०, मुकेश कुमार, डॉ प्रोफेसर मदन मोहन सिंह (विभागाध्यक्ष, भूगर्भ विज्ञान), डॉ ललिता (संस्कृत विभाग), डॉ नीतीश कुमार आर्य (अर्थशास्त्र विभाग), डॉ संदीप कुमार (नृतत्व विज्ञान विभाग), एवं प्राचीन भारतीय इतिहास एवं संस्कृति विभाग के समस्त विद्यार्थी शामिल हुए।

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