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NMM दार्शनिक विरासत के कारण ही विश्वगुरु था भारत

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*दार्शनिक विरासत के कारण ही विश्वगुरु था भारत*

भारत की प्राचीन दार्शनिक विरासत काफी समृद्ध रही है और इसके कारण ही भारत विश्वगुरु के रूप में प्रतिष्ठित रहा है। अतः यदि हमें पुनः विश्वगुरु बनना है, तो हमें अपने प्राचीन ज्ञान-विज्ञान को संरक्षित करना होगा। इस दिशा में पांडुलिपि विज्ञान एवं लिपि विज्ञान का शिक्षण एवं प्रशिक्षण एक महत्वपूर्ण कदम है।

यह बात पूर्व कुलपति डॉ. ज्ञानंजय द्विवेदी ने कही। वे सोमवार को तीस दिवसीय (18 मई से 16 जून तक) उच्चस्तरीय राष्ट्रीय कार्यशाला में व्याख्यान दे रहे थे। संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार के अंतर्गत संचालित इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र की राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन योजना के तहत यह कार्यशाला केंद्रीय पुस्तकालय, भूपेंद्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय, मधेपुरा में आयोजित हो रही है।

*प्राचीन पांडुलिपियों में है ज्ञान का खजाना*
उन्होंने कहा कि हमारे प्राचीन पांडुलिपियों में ज्ञान का खजाना है। इसमें दर्शन, योग, आयुर्वेद, साहित्य, संस्कृति, राजनीति, अर्थशास्त्र आदि विषयों पर प्रचुर मात्रा में ज्ञान भरा पड़ा है। हमें भारतीय ग्रंथों में उपलब्ध ज्ञान पर विशेष शोध की आवश्यकता है। युवाओं को हमारी समृद्ध संस्कृति एवं ज्ञान परंपरा से जोड़ने की जरूरत है। हम ऐसा कर सकेंगे, तो पुनः दुनिया में हमारे ज्ञान-विज्ञान की विजय पताका फहरेगी और हम पुनः विश्वगुरु बनकर उभरेंगे।


*पारलौकिक जीवन को भी संवार सकते हैं*
उन्होंने कहा कि हमारी प्राचीन पांडुलिपियों में जो ज्ञान भरे पड़े हैं, उनके माध्यम से हम वर्तमान लौकिक जीवन के साथ-साथ अपने पारलौकिक जीवन को भी संवार सकते हैं। हमारी ज्ञान परंपरा में धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष को पुरुषार्थ माना गया है। इन चार पुरुषार्थों में जीवन के सभी लौकिक एवं पारलौकिक मूल्य मौजूद हैं।
*भावों की अभिव्यक्ति के लिए हुआ है भाषा का निर्माण*
ठाकुर प्रसाद महाविद्यालय, मधेपुरा में हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. वीणा कुमारी ने भारत में लिपियों का उद्भव एवं विकास विषय पर व्याख्यान दिया। उन्होंने बताया कि पहले भावों की अभिव्यक्ति के लिए भाषा का निर्माण हुआ। फिर वाचिक या ध्वन्यात्मक भाषा, जो क्षणिक स्थायी होती है को स्थायित्व देने के लिए लिपि का आविर्भाव हुआ। लिपि से भाषा, देश एवं काल की सीमाओं से मुक्ति पाने की कोशिश करती है और स्थायित्व की ओर बढ़ती है।


*लिपि की उत्पत्ति के विषय में है अनेक मत*
उन्होंने बताया कि लिपि की उत्पत्ति के विषय में अनेक विद्वानों के मत प्रचलित हैं। एक विचार के अनुसार लिपि ईश्वर या ब्रह्म द्वारा निर्मित है। दूसरे मतानुसार मनुष्य ने अपनी आवश्यकतानुसार लिपि का विकास किया। आरंभ में रेखाएँ खींची गईं, चित्र आदि बनाए गए, जिसमें देवता आदि के चित्र होते थे। फिर रस्सी आदि में गाँठ लगाकर विचारों की अभिव्यक्ति होने लगीं। धीरे- धीरे विभिन्न लिपियों का विकास हुआ।
*ध्वनि की प्रत्येक इकाई के लिए है अलग चिह्न*
उन्होंने बताया कि वर्णात्मक लिपि में ध्वनि की प्रत्येक इकाई के लिए अलग चिह्न होते हैं और उनके आधार पर सरलता से किसी भी भाषा का कोई भी शब्द लिखा जा सकता है।
*ब्राह्मी एवं खरोष्ठी है प्राचीन लिपि*
उन्होंने बताया कि भारत की प्राचीन सिन्धु घाटी सभ्यता की लिपि का अभी तक पता नहीं चल पाया है। इसके बाद भारत में प्राचीन काल की दो लिपियां प्रमुख हैं-ब्राह्मी एवं खरोष्ठी।

सामाजिक विज्ञान संकायाध्यक्ष डॉ. राजकुमार सिंह ने प्रतिभागियों से अपील की कि वे कार्यशाला के ज्ञान को अपने जीवन में आत्मसात करें।

इसके पूर्व दोनों विशेषज्ञ वक्ताओं का अंगवस्त्रम्, पुष्पगुच्छ एवं स्मृतिचिह्न देकर सम्मानित किया गया।

इस अवसर पर केंद्रीय पुस्तकालय के प्रोफेसर इंचार्ज डॉ. अशोक कुमार, उप कुलसचिव (शै.) डॉ. सुधांशु शेखर, शोधार्थी सारंग तनय, सिड्डु कुमार, त्रिलोकनाथ झा, सौरभ कुमार चौहान, ईश्वरचंद विद्यासागर, निधि, अरविंद विश्वास, अमोल यादव,‌ नताशा राज, रश्मि, शंकर कुमार सिंह, इशानी, मधु कुमारी, प्रियंका, ब्यूटी कुमारी, जयश्री, खुशबू, डेजी, लूसी कुमारी, श्वेता कुमारी, डॉ. राजीव रंजन, डॉ. सोनम सिंह, नीरज कुमार सिंह, बालकृष्ण कुमार सिंह, जयप्रकाश भारती आदि उपस्थित थे।

*गुरुवार को होगा समापन समारोह*
उप कुलसचिव (शै.) डॉ. सुधांशु शेखर ने बताया कि संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार के अंतर्गत संचालित इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र की राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन योजना के तहत आयोजित यह 18 मई से 16 जून तक आयोजित है। इसका समापन समारोह 16 जून को कुलपति डॉ. आर. के. पी. रमण की अध्यक्षता में सुनिश्चित है। इस अवसर पर जयप्रकाश विश्वविद्यालय, छपरा के कुलपति डॉ. फारूक अली मुख्य अतिथि होंगे। प्रति कुलपति डॉ. आभा सिंह विशिष्ट अतिथि और वित्तीय परामर्शी नरेंद्र प्रसाद सिन्हा एवं कुलसचिव डॉ. मिहिर कुमार ठाकुर सम्मानित अतिथि होंगे।
उन्होंने बताया कि समापन के पूर्व अभी तीन दिनों तक और कक्षाओं का संचालन होगा। इनमें मुख्य रूप से मंगलवार को भूपेंद्र नारायण यादव मधेपुरी और बुधवार को हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. उषा सिन्हा का व्याख्यान निर्धारित है।

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बिहार के लाल कमलेश कमल आईटीबीपी में पदोन्नत, हिंदी के क्षेत्र में भी राष्ट्रीय पहचान अर्धसैनिक बल भारत -तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP) में कार्यरत बिहार के कमलेश कमल को सेकंड-इन-कमांड पद पर पदोन्नति मिली है। अभी वे आईटीबीपी के राष्ट्रीय जनसंपर्क अधिकारी हैं। साथ ही ITBP प्रकाशन विभाग की भी जिम्मेदारी है। पूर्णिया के सरसी गांव निवासी कमलेश कमल हिंदी भाषा-विज्ञान और व्याकरण के प्रतिष्ठित विद्वान हैं। उनके पिता श्री लंबोदर झा, राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित शिक्षक हैं और उनकी धर्मपत्नी दीप्ति झा केंद्रीय विद्यालय में हिंदी की शिक्षिका हैं। कमलेश कमल को मुख्यतः हिंदी भाषा -विज्ञान, व्याकरण और साहित्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान के लिए देश भर में जाना जाता है। वे भारतीय शिक्षा बोर्ड के भी भाषा सलाहकार हैं। हिंदी के विभिन्न शब्दकोशों के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुके हैं। उनकी पुस्तकों ‘भाषा संशय-शोधन’, ‘शब्द-संधान’ और ‘ऑपरेशन बस्तर: प्रेम और जंग’ ने राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति अर्जित की है। गृह मंत्रालय ने ‘भाषा संशय-शोधन’ को अपने अधीनस्थ कार्यालयों में उपयोग के लिए अनुशंसित किया है। उनकी अद्यतन कृति शब्द-संधान को भी देशभर के हिंदी प्रेमियों का भरपूर प्यार मिल रहा है। यूपीएससी 2007 बैच के अधिकारी कमलेश कमल की साहित्यिक एवं भाषाई विशेषज्ञता को देखते हुए टायकून इंटरनेशनल ने उन्हें देश के 25 चर्चित ब्यूरोक्रेट्स में शामिल किया था। वे दैनिक जागरण में ‘भाषा की पाठशाला’ लोकप्रिय स्तंभ लिखते हैं। बीते 15 वर्षों से शब्दों की व्युत्पत्ति एवं शुद्ध-प्रयोग पर शोधपूर्ण लेखन कर रहे हैं। सम्मान एवं योगदान : गोस्वामी तुलसीदास सम्मान (2023) विष्णु प्रभाकर राष्ट्रीय साहित्य सम्मान (2023) 2000 से अधिक आलेख, कविताएँ, कहानियाँ, संपादकीय, समीक्षाएँ प्रकाशित देशभर के विश्वविद्यालयों में ‘भाषा संवाद: कमलेश कमल के साथ’ कार्यक्रम का संचालन यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए हिंदी एवं निबंध की निःशुल्क कक्षाओं का संचालन उनका फेसबुक पेज ‘कमल की कलम’ हर महीने 6-7 लाख पाठकों द्वारा पढ़ा जाता है, जिससे वे भाषा और साहित्य के प्रति जागरूकता बढ़ाने का कार्य कर रहे हैं। बिहार के लिए गर्व का विषय : आईटीबीपी में उनकी इस उपलब्धि और हिंदी के प्रति उनके योगदान पर पूर्णिया सहित बिहारवासियों में हर्ष का माहौल है। उनकी इस सफलता ने यह साबित कर दिया है कि बिहार की प्रतिभाएँ राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी छाप छोड़ रही हैं। वरिष्ठ पत्रकार स्वयं प्रकाश के फेसबुक वॉल से साभार।

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