राखी : कर्मकांड या  परंपरा ? / रामशरण                                                          अध्यक्ष, गाँधी शांति प्रतिष्ठान केंद्र, भागलपुर, बिहार

राखी : कर्मकांड या  परंपरा ?
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आम तौर पर प्रगतिशील लोग सभी पुरानी परंपराओं का विरोध करते हैं, जो गलत बात है। नयी परंपराओं मे भी दोष होते हैं। हमारा जीवन कानून से ज्यादा परंपराओं से संचालित होता है। जैसे दहेज जैसी गलत परंपरा कानून के बावजूद प्रचलित है।
राखी या रक्षाबंधन मूलतः भाईबहन के निश्छल प्रेम का त्योहार है, जो अभी भी लोगों को भावुक बना देता है। यह और बात है कि इसे ब्राह्मण समुदाय ने कमाई का माध्यम बना लिया है जो बिल्कुल गलत है। मेरी जानकारी मे हिंदू धर्म में राखी बंधाने से पुण्य होने का कोई उल्लेख नहीं है न पूजापाठ का। अनेक ब्राह्मण जाति के लोग भी राखी बांधकर पैसा लेना शर्मनाक मानते हैं।
राखीबांधने के दौरान जिस मंत्र का उपयोग ब्राह्मण लोग करते हैं वह अनार्य राजा बलि को दीनबन्धु घोषित करती है। दक्षिण भारत मे आज भी बलि अत्यंत सम्मान से याद किये जाते हैं और उनका कार्यकाल समृद्धि का काल माना जाता है। लगता है उनका साम्राज्य इडोनेशिया आदि मे था। क्योंकि उसके परदादा का नाम हिरण्याक्ष था, यानि सोने जैसी पीली आंखों वाला। लगता है कि राजा बलि ने केरल को अपने कब्जे मे लेलिया था पर एक अत्यंत बुद्धिमान पर बौने (वामन) व्यक्ति के समझाने पर संधि कर ली और अपने को समुद्र के पार समेट लिया। यह रक्षाबंधन उसी महान रक्षा समझौते क की याद दिलाता है।
आज जब बच्चियां घर मे ही सुरक्षित नहीं हैं तब इस रक्षाबंधन का महत्व और बढ जाता है। यह वेलेंटाइन डे से काफी अलग है। पर यह जरूरी नहीं है कि भाई ही बहन की रक्षा करें। अनेक बहनें भाइयों की रक्षा और मदद करती हैं। इसमें धर्म का बंधन भी नहीं है। पुरुष भी पुरुष को बाधते रहे हैं। महिला भी महिलाओं को बांध सकती हैं। बल्कि हर सक्षम व्यक्ति को कमजोरों की रक्षा का , मदद का संकल्प करना चाहिए। बिहार के भागलपुर में एक संस्था मैत्री (विश्व मधुर) अन्य संगठनों से मिलकर कई वर्षों से ऐसा कर रही है, जिसकी शरुआत जाहिद भाई ने हिन्दू मुस्लिम भाईचारे के लिए की थी।।।
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  • रामशरण                                                          अध्यक्ष, गाँधी शांति प्रतिष्ठान केंद्र, भागलपुर, बिहार