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कीर्ति बाबू का कृतित्व सदैव स्वर्णाक्षरों में होगा वर्णित

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*कीर्ति बाबू के जयंती ( 7 अगस्त) पर डॉ. राठौर की कलम से……*

 

कीर्ति बाबू का कृतित्व सदैव स्वर्णाक्षरों में होगा वर्णित

 

किसी समाज की मिट्टी अपनी संस्कृति की संपूर्णता की अभिव्यक्ति के लिए अपने समाज में ही समय समय पर ऐसे लोगों को उत्पन करती है जिनके कर्मयोग की क्षमता देख मानव समाज उसे अपना आदरणीय नायक बना लेता है। सांस्कृतिक ,सामाजिक,दार्शनिक,धार्मिक,और राजनीतिक पुनर्जागरण के प्रस्फुटन की धरा मधेपुरा भी इससे अछूता नहीं रहा।अलग अलग क्षेत्रों में कई नामचीन हस्तियां इस उर्वरा भूमि की जीवंत अमिट हस्ताक्षर हैं।शिक्षा के क्षेत्र में दर्जनों शिक्षण संस्थाओं के संस्थापक कीर्ति नारायण मंडल इस कड़ी में अग्रिम पंक्ति के नाम हैं।7 अगस्त 1916 को मनहरा, सुखासन में जन्में कीर्ति नारायण मंडल यूं तो लालाजी प्रसाद मंडल व दयावती देवी के पौत्र एवं पार्वती देवी और ठाकुर प्रसाद के तृतीय पुत्र थे लेकिन कर्म के मार्ग पर वो इतने आगे निकले कि तत्कालीन जमींदार परिवार से उनकी पहचान न होकर उनसे परिवार की पहचान होने लगी।

 

*छात्र जीवन में ही ज्ञान और शांति की तलाश में निकले*

 

प्राइमरी स्कूल मनहरा से प्राथमिक शिक्षा , तत्कालीन सीरीज इंस्टीचूट वर्तमान के शिव नंदन प्रसाद मंडल +2 विद्यालय से नवमी तक शिक्षा ग्रहण करने वाले कीर्ति नारायण मंडल युवा अवस्था में प्रवेश करते करते जीवन से उदासीन रहने लगे।फलस्वरूप शिक्षा ग्रहण का मार्ग मध्य में ही छोड़ वो ज्ञान और शांति की तलाश में भ्रमण पर निकल पड़े।उन्नीस साल की अवस्था में गांव में सात बीघा जमीन दान देकर ठाकुरवाड़ी का निर्माण करवाया और अनुज कृष्ण प्रसाद को वहां का पुजारी बना दिया।

 

*मधेपुरा को उच्च शिक्षा का केंद्र बनाने की ललक ने टी. पी. कॉलेज के स्थापना की रखी नींव*

 

मधेपुरा भी उच्च शिक्षा का केंद्र बनें इसी उम्मीद के साथ उन्होंने मधेपुरा में महाविद्यालय स्थापना की कवायद तेज की।लेकिन पिता ठाकुर प्रसाद जमीन देने को तैयार नहीं थे फिर क्या था राष्ट्रीय छात्रावास में ही उन्होंने भूख हड़ताल आरंभ कर दिया ।अपनी पत्नी के समझाने पर आखिरकार ठाकुर प्रसाद ने पुत्र कीर्ति नारायण की बात मान ली और महाविद्यालय के लिए 52 एकड़ जमीन दान कर दिया।जो कीर्ति बाबू द्वारा अपने पिता के ही नाम पर ठाकुर प्रसाद महाविद्यालय के स्थापना का आधार बना।जो आज टीपी कॉलेज के रूप में आज इस क्षेत्र का गौरव ही नहीं है बल्कि वर्तमान के भूपेंद्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय स्थापना का आधार भी बना।वहीं कीर्ति बाबू आधी आबादी के शिक्षा को लेकर भी गंभीर रहे। शुरू में बालिका विद्यालय जो समय के साथ आज उनकी माता पार्वती देवी के नाम पर पार्वती विज्ञान महाविद्यालय के रूप में अपनी पहचान रखता है।

 

*आधे दर्जन जिलों में शिक्षण संस्थाओं की स्थापना का मिशाल कायम की*

 

इसके बाद तो मानों कीर्ति बाबू ने शिक्षण संस्थानों के स्थापना की लंबी लाइन ही खींच दी विभिन्न प्रकार के उतार चढ़ाव के बीच मधेपुरा,सहरसा,सुपौल,अररिया,कटिहार में अलग अलग प्रारूपों में दर्जनों शिक्षण संस्थानों की स्थापना की जो लगातार इस क्षेत्र की प्रतिभाओं को तराशने का काम कर रही है।यह कहना गलत न होगा कि कीर्ति बाबू ने सच्चे अर्थों में ईश्वर की सर्वोत्म कीर्ति *मानव* की वो परिभाषा दी जो खुद के लिए नहीं समाज के लिए कार्यरत है।उनके सामाजिक देन सदैव उन्हें समाज में उस प्रकाशपुंज के रूप में जगह देगा जो अंधेरे के बीच रौशनी का पर्याय बन चुका है।

 

*अलग अलग उपमाओं से विभूषित हुए कीर्ति बाबू*

 

अपने अनमोल अवदानों के कारण तत्कालीन लोकसभाध्यक्ष बलराम जाखड़ ने कोसी का मालवीय,मुख्यमंत्री दारोगा प्रसाद राय ने साबरमती के संत गांधी जी के तर्ज पर कोसी का संत,मुख्यमंत्री डॉक्टर जगरन्नाथ मिश्र ने महान तपस्वी कह कर कीर्ति नारायण मंडल का मान बढ़ाया।कारवां यहीं नहीं रुका सूबे के विभिन्न विश्वविद्यालयों के कुलपतियों,विद्वान हस्तियों ने कीर्ति बाबू को एक विचारधारा,महान सपूत,शिक्षा जगत के विश्वकर्मा,विद्या मंदिर का पुजारी, शिक्षा दधीचि जैसी अनेकानेक उपमाओं से विभूषित किया।यद्यपि 7 मार्च 1997 को इस महामना ने इस दुनिया से विदा ली तथापि इसमें कोई शक नहीं कि कीर्ति बाबू का कृतित्व सदैव समाज के आईने में उन्हें अमर रखेगा।शिक्षा जगत के सजग सारथी कीर्ति बाबू के लिए बस यही कि…..

 

*मीठी सी खुशबू उड़ती है उसके घर के रोशनदानों में l*

 

*अब भी हवा बसंती है उन खेतों में खलिहानों में।।*

 

*जिस मिट्टी में यह लाल पला,वो रोली से भी पावन है।*

*उसके जीवन की अमित कथा ,मनभावन और सुहावन है ll*

 

*गांवों की गलियां पूछ रही हैं,उस मदमस्त दीवाने को ।*

 

*राठौर की कलम नमन करती है, उस मौजी मस्ताने को ।।*

*डॉक्टर हर्ष वर्धन सिंह राठौर*

प्रधान संपादक, युवा सृजन

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