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Vivekananda भारतीयता की प्रतिमूर्ति थे विवेकानंद : नरेंद्र श्रीवास्तव

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भारतीयता की प्रतिमूर्ति थे विवेकानंद : नरेंद्र श्रीवास्तव


स्वामी विवेकानंद ने केवल भारतीय दर्शन एवं धर्म अथवा समाज को ही नहीं, बल्कि जीवन के सभी आयामों को प्रभावित किया है। वास्तव में वे भारतीयता की प्रतिमूर्ति थे और आज भी भारतीय जनमानस पर उनकी अमिट छाप है।


यह बीएनएमयू, मधेपुरा के पूर्व कुलसचिव एवं पूर्व डीएसडब्ल्यू डॉ. नरेंद्र श्रीवास्तव ने कही।

वे गुरूवार को नेहरू युवा केन्द्र संगठन के तत्वावधान में आयोजित स्वामी विवेकानंद जयंती सह राष्ट्रीय युवा दिवस समारोह में मुख्य वक्ता के रूप में बोल रहे थे। कार्यक्रम का आयोजन नार्थ कैम्पस स्थित विज्ञान संकाय सभागार में किया गया।

डॉ. श्रीवास्तव ने कहा कि जब स्वामी विवेकानंद इस धरती पर थे (1863-1902), वह भारत के लिए संक्रमण का काल था। उस दौरान भारत बाह्य एवं आंतरिक दोनों तरह के संकटों से ग्रसित था। उन्होंने इन दोनों संकटों को पहचान और इससे मुक्ति का रास्ता सुझाया।

उन्होंने कहा कि विवेकानंद ने भारतीयों को उसके खोए हुए आत्मगौरव का बोध कराया और आम जनमानस को अंग्रेजों के खिलाफ आजादी की लड़ाई में शामिल होने की प्रेरणा दी। साथ ही सबों को यह संदेश दिया कि वे जाति, धर्म, संप्रदाय आदि से ऊपर उठकर भारतीय बनें।

कार्यक्रम का संचालन करते हुए उपकुलसचिव (स्थापना) डॉ. सुधांशु शेखर ने कहा कि विवेकानंद ने दुनिया को विश्वगुरु भारत के मूल स्वरूप एवं उसकी वास्तविक शक्ति से परिचित कराया। उन्होंने दुनिया को यह बताया कि भारत न केवल धर्म एवं दर्शन, वरन् साहित्य एवं विज्ञान आदि क्षेत्रों में भी दुनिया को दिशा दिखाने में सक्षम है।

मुख्य अतिथि विज्ञान संकायाध्यक्ष डॉ. नवीन कुमार ने कहा कि विवेकानंद ने युवाओं को सत्यनिष्ठा एवं ईमानदार के साथ कर्म करने का संदेश दिया है। यदि हम ऐसा करेंगे, तो हमें मंजिल जरूर मिलेगी।

जंतु विज्ञान विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. बीबी मिश्र ने कहा कि किसी भी समाज एवं राष्ट्र को आगे बढ़ाने की मुख्य जिम्मेदारी युवाओं की ही है। युवाओं को इस जिम्मेदारी को उठाने के लिए आगे आने की जरूरत है।

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए नेहरू युवा केन्द्र संगठन की जिला युवा समन्वयक हुस्न जहां ने बताया कि केंद्र के माध्यम से राष्ट्रीय युवा सप्ताह के उपलक्ष्य में कई कार्यक्रमों का निर्धारण किया गया है।


पूरे सप्ताह भर विभिन्न प्रखंडों में कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे। 19 जनवरी को समापन समारोह आयोजित किया जाएगा।

इसके पूर्व अतिथियों ने दीप प्रज्ज्वलित कर कार्यक्रम की शुरुआत की। अतिथियों का अंगवस्त्रम् एवं कलम भेंट कर सम्मानित किया गया। सभी उपस्थित लोगों ने स्वामी विवेकानंद के चित्र पर माल्यार्पण एवं पुष्पांजलि अर्पित कर उन्हें श्रद्धांजलि दी।

इस अवसर पर कार्यक्रम के संयोजक सौरभ कुमार, शोधार्थी द्वय दिलिप कुमार दिल एवं सौरभ कुमार चौहान, आमोद आनंद, मनीष कुमार, अंशु कुमारी, बाबू साहेब कुमार, ललन कुमार, विष्णु कुमार, राम कुमार, नीतीश कुमार, बंटी कुमार, आशुतोष कुमार, आशीष कुमार, मो. अरशद वारशी, आकाश कुमार, अनमोल कुमार आदि उपस्थित थे।

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बिहार के लाल कमलेश कमल आईटीबीपी में पदोन्नत, हिंदी के क्षेत्र में भी राष्ट्रीय पहचान अर्धसैनिक बल भारत -तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP) में कार्यरत बिहार के कमलेश कमल को सेकंड-इन-कमांड पद पर पदोन्नति मिली है। अभी वे आईटीबीपी के राष्ट्रीय जनसंपर्क अधिकारी हैं। साथ ही ITBP प्रकाशन विभाग की भी जिम्मेदारी है। पूर्णिया के सरसी गांव निवासी कमलेश कमल हिंदी भाषा-विज्ञान और व्याकरण के प्रतिष्ठित विद्वान हैं। उनके पिता श्री लंबोदर झा, राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित शिक्षक हैं और उनकी धर्मपत्नी दीप्ति झा केंद्रीय विद्यालय में हिंदी की शिक्षिका हैं। कमलेश कमल को मुख्यतः हिंदी भाषा -विज्ञान, व्याकरण और साहित्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान के लिए देश भर में जाना जाता है। वे भारतीय शिक्षा बोर्ड के भी भाषा सलाहकार हैं। हिंदी के विभिन्न शब्दकोशों के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुके हैं। उनकी पुस्तकों ‘भाषा संशय-शोधन’, ‘शब्द-संधान’ और ‘ऑपरेशन बस्तर: प्रेम और जंग’ ने राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति अर्जित की है। गृह मंत्रालय ने ‘भाषा संशय-शोधन’ को अपने अधीनस्थ कार्यालयों में उपयोग के लिए अनुशंसित किया है। उनकी अद्यतन कृति शब्द-संधान को भी देशभर के हिंदी प्रेमियों का भरपूर प्यार मिल रहा है। यूपीएससी 2007 बैच के अधिकारी कमलेश कमल की साहित्यिक एवं भाषाई विशेषज्ञता को देखते हुए टायकून इंटरनेशनल ने उन्हें देश के 25 चर्चित ब्यूरोक्रेट्स में शामिल किया था। वे दैनिक जागरण में ‘भाषा की पाठशाला’ लोकप्रिय स्तंभ लिखते हैं। बीते 15 वर्षों से शब्दों की व्युत्पत्ति एवं शुद्ध-प्रयोग पर शोधपूर्ण लेखन कर रहे हैं। सम्मान एवं योगदान : गोस्वामी तुलसीदास सम्मान (2023) विष्णु प्रभाकर राष्ट्रीय साहित्य सम्मान (2023) 2000 से अधिक आलेख, कविताएँ, कहानियाँ, संपादकीय, समीक्षाएँ प्रकाशित देशभर के विश्वविद्यालयों में ‘भाषा संवाद: कमलेश कमल के साथ’ कार्यक्रम का संचालन यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए हिंदी एवं निबंध की निःशुल्क कक्षाओं का संचालन उनका फेसबुक पेज ‘कमल की कलम’ हर महीने 6-7 लाख पाठकों द्वारा पढ़ा जाता है, जिससे वे भाषा और साहित्य के प्रति जागरूकता बढ़ाने का कार्य कर रहे हैं। बिहार के लिए गर्व का विषय : आईटीबीपी में उनकी इस उपलब्धि और हिंदी के प्रति उनके योगदान पर पूर्णिया सहित बिहारवासियों में हर्ष का माहौल है। उनकी इस सफलता ने यह साबित कर दिया है कि बिहार की प्रतिभाएँ राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी छाप छोड़ रही हैं। वरिष्ठ पत्रकार स्वयं प्रकाश के फेसबुक वॉल से साभार।

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भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली द्वारा प्रायोजित दिनाँक 2 से 12 फरवरी, 2025 तक भोगीलाल लहेरचंद इंस्टीट्यूट ऑफ इंडोलॉजी, दिल्ली में “जैन परम्परा में सर्वमान्य ग्रन्थ-तत्त्वार्थसूत्र” विषयक दस दिवसीय कार्यशाला का सुभारम्भ।