Universal Human Rights Declaration मानवाधिकारों का सार्वभौम घोषणा-पत्र

मानवाधिकारों का सार्वभौम घोषणा-पत्र

मानव अधिकारों की इस सार्वभौम घोषणा सभी लोगों और सभी राष्ट्रों के लिए इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए एक सामान्य मानक के रूप में उद्धोषित करती है कि प्रत्येक व्यक्ति और समाज का प्रत्येक अंग, इस घोषणा को निरंतर ध्यान में रखते हुए, शिक्षा और संस्कार द्वारा इन अधिकारों और स्वतंत्राताओं के प्रति सम्मान जाग्रत करेगा और राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय प्रगामी उपायों के द्वारा, सदस्य राज्यों के लोगों के बीच और उनकी अधिकारिता के अधीन राज्यक्षेत्रों के लोगों के बीच इन अधिकारों की विश्वव्यापी और प्रभावी मान्यता और उनके पालन को सुनिश्चित करने के लिए प्रयास करेगा।

अनुच्छेद-1: सभी मनुष्य जन्म से ही गरिमा और अधिकारों की दृष्टि से स्वतंत्रा और समान हैं। उन्हें बुद्धि और अंतःश्चेतना प्रदान की गई है और उन्हें परस्पर भ्रातृत्व की भावना से कार्य करना चाहिए।

अनुच्छेद-2: प्रत्येक व्यक्ति इस घोषणा में उपवर्णित सभी अधिकारों और स्वतंत्राताओं का हकदार है, इसमें मूलवंश, वर्ण, लिंग, भाषा, धर्म, राजनीतिक या अन्य विचार, राष्ट्रीयता, सामाजिक उद्भव, सम्पत्ति, जन्म या अन्य प्रास्थिति के आधार पर कोई विभेद नहीं किया जायेगा। इसके अतिरिक्त किसी देश या राज्य क्षेत्रा की चाहे वह स्वाधीन हो, न्यास के अधीन हो, अस्वशासी हो या प्रभुत्ता पर किसी मर्यादा के अधीन हो राजनीतिक, अधिकारिता-विषयक या अंतरराष्ट्रीय प्रास्थिति के आधार पर उस देश या राज्यक्षेत्रा के किसी व्यक्ति से कोई विभेद नहीं किया जाएगा।

अनुच्छेद-3: प्रत्येक व्यक्ति को प्राण, स्वतंत्राता और दैहिक सुरक्षा का अधिकार है।

अनुच्छेद-4: किसी भी व्यक्ति को दास या गुलाम नहीं रखा जाएगा। सभी प्रकार की दासता और दास-व्यापार प्रतिषिद्ध होगा।

अनुच्छेद-5: किसी भी व्यक्ति को यंत्राणा नहीं दी जाएगी या उसके साथ क्रूर, अमानवीय या अपमानजनक व्यवहार नहीं किया जाएगा या उसे ऐसा दंड नहीं दिया जाएगा।

अनुच्छेद-6: प्रत्येक व्यक्ति को सर्वत्रा विधि के समक्ष व्यक्ति के रूप में मान्यता का अधिकार है।

अनुच्छेद-7: सभी व्यक्ति विधि के समक्ष समान है और किसी विभेद के बिना विधि के समान संरक्षण के हकदार है। सभी व्यक्ति इस घोषणा के अतिक्रमण में विभेद के विरूद्ध और ऐसे विभेद के द्दीपन के विरूद्ध समान संरक्षण के हकदार हैं।

अनुच्छेद-8: प्रत्येक व्यक्ति को संविधान या विधि द्वारा प्रदत्त मूल अधिकारों का अतिक्रमण करने वाले कार्यों के विरूद्ध राष्ट्रीय अधिकरणों द्वारा प्रभावी उपचारों का अधिकार है।

अनुच्छेद-9: किसी भी व्यक्ति को मनमाने ढंग से गिरफ्तार, निरूद्ध या निर्वासित नहीं किया जाएगा।

अनुच्छेद-10: प्रत्येक व्यक्ति अपने अधिकारों और बाध्यताओं के और उसके विरूद्ध आपराधिक आरोप के अवधारणा में पूर्णतया रूप से स्वतंत्रा और निष्पक्ष अधिकारण द्वारा ऋजु ओर सार्वजनिक सुनवाई का हकदार है।

अनुच्छेद-11: ऐसे प्रत्येक व्यक्ति को जिस पर दांडिक अपराध का आरोप है, यह अधिकार है कि उसे तब तक निपराध माना जाएगा, तब तक कि उसे लोक विचारण में, जिसमें उसे अपनी प्रतिरक्षा के लिए आवश्यक सभी गारंटियाँ प्राप्त हों, विधि के अनुसार दोषी साबित नहीं कर दिया जाता। किसी भी व्यक्ति को किसी ऐसे कार्य या लोप के कारण, जो किए जाने के समय राष्ट्रीय या अंतरराष्ट्रीय विधि के अधीन दंडनीय अपराध नहीं था, किसी दंडनीय अपराध का दोषी अभिनिर्धारित नहीं किया जाएगा। उस शास्ति से अधिक शास्ति अधिरोपित नहीं की जाएगी, जो उस समय लागू थी, जब अपराध किया गया था। किसी के भी एकांतता, कुटुम्ब-घर या पत्रा-व्यवहार के साथ मनमाना हस्तक्षेप नहीं किया जाएगा और उसके सम्मान और ख्याति पर प्रहार नहीं किया जाएगा। सभी को ऐसे हस्तक्षेप या प्रहार के विरूद्ध विधि के संरक्षण का अधिकार है।

अनुच्छेद-13: प्रत्येक व्यक्ति को प्रत्येक राज्य की सीमाओं के भीतर संचरण और निवास की स्वतंत्राता का अधिकार है। प्रत्येक व्यक्ति को किसी भी देश को या अपने देश को छोड़ने और अपने देश में वापस आने का अधिकार है। इस अधिकार का अवलंब अराजनैतिक अपराधों या संयुक्त राष्ट्र के प्रयोजनों और सिद्धांतों के प्रतिकूल कार्यों से वास्तविक रूप से उद्भूत अभियोजनों की दशा में नहीं लिया जा सकेगा।

अनुच्छेद-14: प्रत्येक व्यक्ति को प्रताड़ना से बचने के लिए किसी भी देश में शरण लेने और सुख से रहने का अधिकार है। अराजनीतिक अपराधों अथवा संयुक्त राष्ट्र के उद्देश्यों एवं सिद्धांतों के विरूद्ध होने वाले कार्यों के फलस्वरूप मूलतः दंडित व्यक्ति अधिकार से वंचित रहेंगे।

अनुच्छेद-15: प्रत्येक व्यक्ति को राष्ट्रीयता का अधिकार है। अराजनीतिक अपराधों अथवा संयुक्त राष्ट्र के उद्देश्यों एवं सिद्धांतों के विरूद्ध होने वाले कार्यों के फलस्वरूप मूलतः दंडित व्यक्ति अधिकार से वंचित रहेंगे।

अनुच्छेद-16: व्यस्क पुरूषों और स्त्रिायों को मूलवंश, राष्ट्रियता या धर्म के कारण किसी भी सीमा के बिना, विवाह करने और कुटुम्ब स्थापित करने का अधिकार है। वे विवाह के विषय में, विवाहित जीवनकाल में और उसके विघटन पर समान अधिकारों के हकदार है। विवाह के इच्छुक पक्षकारों से स्वतंत्रा ओर पूर्ण सम्मति से ही विवाह किया जाएगा। कुटुम्ब समाज की नैसर्गिक और सामाजिक इकाई है और इसे समाज और राज्य द्वारा संरक्षण का हकदार है।

अनुच्छेद-17: प्रत्येक व्यक्ति को अकेले या अन्य व्यक्तियों के साथ मिलकर संपत्ति का स्वामी बनने का अधिकार है। किसी को भी उसकी संपत्ति से मनमाने ढंग से वंचित नहीं किया जाएगा।

अनुच्छेद-18: प्रत्येक व्यक्ति को विचार अंतःकरण और धर्म की स्वतंत्राता का अधिकार है। इस अधिकार के अंतर्गत अपने धर्म या विश्वास को परिवर्तित करने की स्वतंत्राता और अकेले या अन्य व्यक्तियों के साथ मिलकर तथा सार्वजनिक रूप से या अकेले शिक्षा, व्यवहार, पूजा और पालन में अपने धर्म या विश्वास को प्रकट करने की स्वतंत्राता भी है।

अनुच्छेद-19: प्रत्येक व्यक्ति को अभिमत और अभिव्यक्ति की स्वतंत्राता का अधिकार है, इस अधिकार के अंतर्गत हस्तक्षेप के बिना अभिमत रखने और किसी भी संचार माध्यम से और सीमाओं का विचार किए बिना जानकारी माँगने, प्राप्त करने और देने की स्वतंत्राता भी है।

अनुच्छेद-20: प्रत्येक व्यक्ति को शांतिपूर्वक सम्मेलन और संगम की स्वतंत्राता है। किसी भी व्यक्ति को किसी संगम में सम्मिलित होने के लिए विवश नहीं किया जाएगा।

अनुच्छेद-21: प्रत्येक व्यक्ति को अपने देश की सरकार में सीधे या स्वतंत्राता पूर्वक चुने गए प्रतिनिधियों के माध्यम से भाग लेने का अधिकार है। प्रत्येक व्यक्ति को अपने देश की लोक सेवा में समान पहुँच का अधिकार है। लोकमत सरकार के प्रधिकार का आधार होगा, इसकी अभिव्यक्ति आवधिक और वास्तविक निर्वाचनों में होगी, जो सार्वभौम और समान मताधिकार द्वारा होंगे और गुप्त मतदान द्वारा या समतुल्य स्वतंत्रा मतदान की प्रक्रिया द्वारा किए जाएँगे।

अनुच्छेद-22: प्रत्येक व्यक्ति को समाज के सदस्य के रूप में, सामाजिक सुरक्षा का अधिकार है और राष्ट्रीय प्रयास और अंतरराष्ट्रीय सहयोग के माध्यम से और प्रत्येक राज्य के गठन और संसाधनों के अनुसार ऐसे आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों को प्राप्त करने का हकदार है, जो उसकी गरिमा और उसके व्यक्तित्व के उन्मुक्त विकास के लिए अनिवार्य है।

अनुच्छेद-23: प्रत्येक व्यक्ति को काम करने, नियोजन के स्वतंत्रा चयन का, कार्य की न्यायोचित और अनुकूल दिशाओं का और बेरोजगारी के विरूद्ध संरक्षण का अधिकार है। प्रत्येक व्यक्ति को किसी विभेद के बिना, समान कार्य के लिए समान वेतन का अधिकार है। प्रत्येक व्यक्ति को जो कार्य करता है, ऐसे न्यायोचित और अनुकूल पारिश्रमिक का अधिकार है, जिससे स्वयं उसका और उसके कुटुम्ब का मानव गरिमा के अनुरूप जीवन सुनिश्चित हो जाए और यदि आवश्यक हो, तो सामाजिक संरक्षण के अन्य साधनों द्वारा उसे अनुपूरित किया जाए। प्रत्येक व्यक्ति को अपने हितों के संरक्षण के लिए व्यवसाय संघ बनाने और उनमें सम्मिलित होने का अधिकार है।

अनुच्छेद-24: प्रत्येक व्यक्ति को विश्राम और अवकाश का अधिकार है। इसके अंतर्गत कार्य के घंटों की युक्तियुक्त सीमा और वेतन सहित आवधिक छुट्टियाँ भी हैं।

अनुच्छेद-25: प्रत्येक व्यक्ति को एक ऐसा जीवन स्तर का अधिकार है, जो स्वयं उसके और उसके कुटुम्ब के स्वास्थ्य और कल्याण के लिए पर्याप्त है। इसके अंतर्गत भोजन, वस्त्रा, निवास स्थान, चिकित्सा तथा आवश्यक सेवाएँ भी हैं और बेरोजगारी, रूग्णता, आशक्तता, वैधव्य, वृद्धावस्था या अभाव की दशा में सुरक्षा का अधिकार है। सभी व्यक्ति मातृत्व और बाल्यकाल विशेष देखभाल और सहायता के हकदार हंै। सभी बच्चे, चाहे उनका जन्म विवाहित जीवनकाल में हुआ हो या अन्यथा समान सामाजिक संरक्षण प्राप्त करेंगे।

अनुच्छेद-26: प्रत्येक व्यक्ति को शिक्षा का अधिकार हे। कम से कम प्रारंभिक और मौलिक अवस्था में निःशुल्क होगी। प्रारम्भिक शिक्षा अनिवार्य हांेगी तकनीकी और वृत्तिक शिक्षा साधारणतः उपलब्ध कराई जाएगी और उच्च शिक्षा, सभी व्यक्तियों को गुणागुण के आधार पर समान रूप से प्राप्य होगी। शिक्षा का लक्ष्य मानव व्यक्ति का पूर्ण विकास और मानवाधिकारों और मूल स्वतंत्राताओं के प्रति आदर की वृद्धि होगा। यह सभी राष्ट्रों, मूलवंश विषयक या धार्मिक समूहों के बीच समादर सहिष्णुता और मैत्राी की अनुवृद्धि के लिए उद्दिष्ट होगी और शांति बनाए रखने के लिए ‘संयुक्त राष्ट्र संघ’ के कार्यकलापों को अग्रसर करेगी। माता-पिता का यह चयन करने का पूर्णाधिकार है, कि उनकी संतान को किस प्रकार की शिक्षा दी जाएगी।

अनुच्छेद-27: प्रत्येक व्यक्ति को समुदाय के सांस्कृतिक जीवन में मुक्त रूप से भाग लेने, कलाओं का आनंद लेने और वैज्ञानिक प्रगति और उसके फायदों में हिस्सा प्राप्त कर सकने का अधिकार है। प्रत्येक व्यक्ति को स्वनिर्मित वैज्ञानिक, साहित्यिक अथवा कलात्मक कृति के परिणामस्वरूप होने वाले नैतिक और भौतिक हितों के संरक्षण का अधिकार है।

अनुच्छेद-28: प्रत्येक व्यक्ति ऐसी सामाजिक और अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था का हकदार है, जिसमें इस घोषणा में वर्णित अधिकारों और स्वतंत्राताओं को पूर्ण रूप से प्राप्त किया जा सकता है।

अनुच्छेद-29: समाज के प्रति प्रत्येक व्यक्ति के कुछ ऐसे कर्तव्य हैं, जिनसे उसके व्यक्तित्व का उन्मुक्त और पूण्र विकास संभव है। प्रत्येक व्यक्ति पर अपने अधिकारों और स्वतंत्राताओं के प्रयोग में वहीं मर्यादाएँ लगाई जाएंगी, जो अन्य व्यक्तियों के अधिकारों एवं स्वतंत्राताओं की सम्यक् मान्यता और सम्मान सुनिश्चित करने और प्रजातंत्रात्मक समाज में नैतिकता, लोक व्यवस्था और साधारण कल्याण की न्यायोचित अपेक्षाओं को पूरा करने के प्रयोजन के लिए विधि द्वारा अवधारित की गई है। किसी भी दशा में इन अधिकारों स्वतंत्राताओं का ‘संयुक्त राष्ट्र संघ’ के प्रयोजनों और सिद्धांतों के प्रतिकूल प्रयोग नहीं किया जाएगा।

अनुच्छेद-30: इस घोषणा की किसी बात का यह निर्वचन नहीं किया जाएगा कि उसमें किसी राज्य, समूह या व्यक्ति के लिए कोई ऐसा कार्यकलाप या कोई ऐसा कार्य करने का अधिकार विवक्षित है, जिसका लक्ष्य इसमें उपवर्णित अधिकारों और स्वतंत्राताओं में से किसी का विनाश करना है।

-डॉ. सुधांशु शेखर की पुस्तक ‘भूमंडलीकरण और मानवाधिकार’ से साभार।