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Universal Human Rights Declaration  मानवाधिकारों का सार्वभौम घोषणा-पत्र
SRIJAN.AALEKH

Universal Human Rights Declaration मानवाधिकारों का सार्वभौम घोषणा-पत्र

मानवाधिकारों का सार्वभौम घोषणा-पत्र मानव अधिकारों की इस सार्वभौम घोषणा सभी लोगों और सभी राष्ट्रों के लिए इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए एक सामान्य मानक के रूप में उद्धोषित करती है कि प्रत्येक व्यक्ति और समाज का प्रत्येक अंग, इस घोषणा को निरंतर ध्यान में रखते हुए, शिक्षा और संस्कार द्वारा इन अधिकारों और स्वतंत्राताओं के प्रति सम्मान जाग्रत करेगा और राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय प्रगामी उपायों के द्वारा, सदस्य राज्यों के लोगों के बीच और उनकी अधिकारिता के अधीन राज्यक्षेत्रों के लोगों के बीच इन अधिकारों की विश्वव्यापी और प्रभावी मान्यता और उनके पालन को सुनिश्चित करने के लिए प्रयास करेगा। अनुच्छेद-1: सभी मनुष्य जन्म से ही गरिमा और अधिकारों की दृष्टि से स्वतंत्रा और समान हैं। उन्हें बुद्धि और अंतःश्चेतना प्रदान की गई है और उन्हें परस्पर भ्रातृत्व की भावना से कार्य करना चाहिए। अनुच्छेद-2: ...
Vivekanand। विवेकानंद : सार्वभौम धर्म
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Vivekanand। विवेकानंद : सार्वभौम धर्म

विवेकानंद : सार्वभौम धर्म साधारणतः ‘धर्म’ शब्द से हिंदू धर्म, बौद्ध धर्म, इस्लाम धर्म, ईसाई धर्म, यहूदी धर्म आदि का बोध होता है अथवा इन प्रचलित धर्मों के उपासना-स्थलों में जाकर विशेष प्रकार से प्रार्थना या पूजा-पाठ करना धर्म माना जाता है। लेकिन, स्वामी विवेकानंद ‘धर्म’ को इस प्रचलित अर्थ में नहीं लेते हैं। धर्म से मतलब किसी औपचारिक या प्रचलित धर्म से नहीं है, वरन् इससे अभिप्राय उस धर्म से है, जो सभी धर्मों को रेखांकित करता है और जो हमें अपने सृष्टिकर्ता (रचयिता) के सम्मुख खड़ा करता है।“ उनके अनुसार धर्म तत्वमीमांसीय एवं नैतिक जगत के सत्यों से संबद्ध है। धर्म का अर्थ है, एक वैश्विक सत्ता के नैतिक सुशासन में विश्वास। जाहिर है कि उनके लिए धर्म और नैतिकता एक दूसरे के पूरक हैं। धर्म के संदर्भ के बिना नैतिक जीवन ऐसा ही है, जैसे बालू के आधार पर बना भवन। यदि धर्म को नैतिकता से अलग कर दिया जाए, त...