Jharkhand। युवा शहीद भगवान् बिरसा मुंडा की 145 वीं जयंती

आज दिनांक 15 नवम्बर, 2020 को भारत के मूलनिवासी समाज के महानायक, महान योद्धा,बहुजन समाज के महान समाज सुधारक एवं युवा शहीद भगवान् बिरसा मुंडा की 145 वीं जयंती के शुभ अवसर पर सभी देशवासियों और विशेषकर बहुजन समाज के भाई एवं बहनों की ओर से उनके प्रति शत-शत नमन और हार्दिक श्रद्धांजलि।
महानायक बिरसा मुंडा का जन्म छोटानागपुर के उलीहातु या चालकाद के बंबा गांव में 15 नवम्बर 1875 ई को हुआ था।12 वर्ष की उम्र में सिंहभूम के चाईबासा के लूथरन मिशन चर्च में 1886ई में ईसाई धर्म में उन्हें दीक्षा दी गई थी। उनके माता के नाम करमी और पिता का नाम सुगना मुंडा था। उनके दो भाई कोन्ता मुंडा एवं कन्हू मुंडा थे और दो बहनें दस्कीर एवं चंपा थीं। चाईबासा के बुरजू छात्रावास में रहकर उन्होंने प्रारंभिक शिक्षा हासिल की।1886से 1890तक उन्होंने पादरियों के उपदेशों को सुनकर और समझ कर अपने चरित्र एवं व्यक्तित्व का विकास किया| 1890 के बाद उन्होंने पढ़ना- लिखना छोड़ दिया और वे पूरे परिवार के साथ बंदगांव चले गए, जो खूंटी और चक्रधरपुर के बीच में है।
जुलाई,1894 ई में अंग्रेजों ने एक नया कानून बनाया जिसके द्वारा जंगल के अधिकार जमींदारों के हाथ में सौंप दिया गया। उसके कारण मुंडाओं में भारी आक्रोश की लहर दौड़ गई।क्षेत्र में सभी मुंडा संस्थाओं ने जगह- जगह बैठकें कर जंगल पर अपने पूर्वजों की भांति अधिकारों को पुनः बहाल करने के लिए आवेदन दिए। पूरे क्षेत्र में फैलती हुई इस अशांति के बीच बिरसा अपने गांव चालकाद चले गए। वहां उन्हें अपने पूर्वजों के आदिधर्म के बारे में सोचने और चिंतन करने के अवसर प्राप्त हुआ। उन्होंने मुंडाओं के सर्वोच्च देवता सिंगबोंगा की शक्ति पर विश्वास करने, रोगियों की सेवा करने, जंगल पर अपने अधिकार रखने, चुटिया -नागपुर को अपने पूर्वजों के धरोहर मानने और किसी भी सरकार की कोई आज्ञा न मानने एवं मालगुजारी नहीं देने ,बेगार सेवाएं नहीं देने,आदि के आह्वान के साथ उलगुलान की घोषणा की।वे गांव- गांव जाकर मुंडाओं को संगठित करने लगे और रोगियों की सेवा करने लगे। बिरसा के उपदेश सुनने के लिए अपार जनसमूह उमड़ने लगी।लोग उन्हें अब धरती आबा या धरती के पिता के नाम से पुकारने लगे।
जमींदार के द्वारा थाना में राजद्रोह की शिकायत दर्ज कराई गई और कहा गया कि बिरसा ने घोषणा की है कि सरकार का राज्य खत्म हो गया है। उनकी गिरफ्तारी के लिए 24अगस्त,1895को पुलिस दल चालकाद भेजा गया और 26 अगस्त को उन्हें गिरफ्तार कर रांची लाया गया। गिरफ्तारी के समय हजारों लोग उनके साथ- साथ चल रहे थे।18 नवंबर 1895 को उन्हें पचास रूपए जुर्माना और दो वर्ष की कैद की सजा सुनाई गई। 1897 ई में जब महानायक जेल से रिहा हुए तो भीषण अकाल के चपेट में पूरा क्षेत्र था ।वे अकाल पीड़ितों की सेवा में लग गए। उनकी सेवाओं के कारण लोग अब लड़ने मरने के लिए उनके साथ खड़े हो गए। उन्होंने अत्याचार,अन्याय के विरुद्ध संघर्ष और आदिधर्म के प्रति आस्था के पर्यायवाची शब्द उलगुलान को पुनः धार देना शुरू कर दिया।24 दिसम्बर,1899 ई को जगह जगह शाम के समय विद्रोह हो गया। तीन फरवरी,1900 को कुछ पैसे की लालच में एक क़ौम के गद्दार ने पुलिस को सूचना देकर उन्हें गिरफ्तार कराने का कार्य किया। 400 से अधिक आदिवासी मुंडा क्रांतिकारियों को जगह -जगह मार दिया गया और 300 से अधिक लोगों को कारावासों में डाल दिए गए।9 जून,1900ई के सुबह में उन्हें ख़ून की उल्टी हुई और 9 बजे जेल में ही उन्होंने अंग्रेजों की साजिश का शिकार होकर अपनी शहादत दे दी।
इस प्रकार उन्होंने भारत के मूलनिवासियों को जल ,जमीन और जंगल के अधिकार तथा मूलनिवासी संस्कृति की रक्षा के लिए महान शहीद तिलका मांझी, प्रथम स्वतंत्रता सेनानी और महान शहीद सिद्धु, कांदू, चांद, भैरव सहित तमाम शहीदों के संघर्षों को आगे बढ़ाए और क्रांतिकारी मुहिम को अग्रगति दी। उन्होंने अपनी शहादत से यहां के मूलनिवासियों को अधिकारों के प्रति जागरूक बनाया और सम्मान के लिए उन्हें जीना सिखाया। इस अवसर पर हम अपने महानायक को पुनः शत् शत् नमन और श्रंद्धाजलि अर्पित करते हैं।
जय भीम ! जय भारत!!
विलक्षण रविदास
संरक्षक
बिहार फुले अम्बेडकर युवा मंच
बहुजन स्टूडेंट्स यूनियन, बिहार