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Gandhi गहरे चिंतन से प्रसूत पुस्तक है ‘गाँधी-विमर्श’

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गहरे चिंतन से प्रसूत पुस्तक है ‘गाँधी-विमर्श’
-प्रो. (डॉ.) लखन लाल सिंह आरोही’
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गाँधी-दर्शन पर डॉ. सुधांशु शेखर की पुस्तक ‘गाँधी-विमर्श’ तेरह महत्त्वपूर्ण निबंधों का संग्रह है। मैंने हर निबंध को दत्तचित्त से पढ़ा है। हर निबंध में अध्ययनशील लेखक के मौलिक चिंतन का विस्फोट अनुगुंजित हो रहा है। लेखक ने हर विषय को पूरे विश्लेषण के साथ प्रस्तुत किया है। लेखक के अध्ययन-अध्यवशाय का ‘रेंज’ बहुत विस्तृत है।

गाँधी- दर्शन पर यह पुस्तक विश्वकोष के स्तर की है। मनीषी लेखक ने समकालीन भूमंडलीकरण के परिप्रेक्ष्य में भी गाँधी-दर्शन की प्रासंगिकता को रेखांकित किया है। इस संग्रह के राष्ट्र, सभ्यता, धर्म और भूमंडलीकरण समकालीन संदर्भ में विशेष ध्यान आकृष्ट करते हैं और प्रासंगिक हैं। डॉ. सुधांशु का गाँधी-दर्शन पर ‘गाँधी-विमर्श’ समकालीन विमर्शो के परिसर में एक विस्फोटक खबर है और हिन्दी के निबंध साहित्य को ऐतिहासिक महत्त्व का सारस्वत अवदान!

आज के कठिन दौर में विशेष महत्व रखनेवाली इस पुस्तक को बोडक धरातल पर आस्वाद के प्रेमी पाठकों को पढ़ने के लिए मैं हार्दिक रूप से आमंत्रित करता हूँ।

डॉ. सुधांशु शेखर को भावभीनी हार्दिक बधाई!

-प्रो. (डॉ.) लखन लाल सिंह आरोही’

उपर्युक्त आशीर्वचन के लिए
परम आदरणीय अभिभावक प्रो. (डॉ.) लखनलाल सिंह ‘आरोही’ साहेब, प्रथम (निवर्तमान) अध्यक्ष,
अंगिका अकादमी, पटना (बिहार) एवं वरिष्ठ उपाध्यक्ष, बुद्धिजीवी प्रकोष्ठ, जनता दल (यूनाइटेड), बिहार के प्रति बहुत-बहुत आभार। आपने कृपापूर्वक मेरी पुस्तक ‘गाँधी-विमर्श’ पढ़ने के लिए समय निकाला और मुझे अपना आशीर्वचन प्रेषित कर उपकृत किया है। आपका यह ‘मन्तव्य’ एक वरिष्ठतम साहित्यकार के द्वारा एक नवोदित लेखक के लिए आशीर्वाद का अक्षत की तरह है। इसे एक बच्चे की ‘तुतलाहट’ पर उसके माता-पिता की ‘वाहवाही’ की तरह देखना चाहिए, जो आगे बच्चे को ठीक ढंग से बोलने को प्रेरित करती है।

पुनः प्रो. (डॉ.) लखनलाल सिंह ‘आरोही’ साहेब के प्रति बहुत-बहुत आभार और उनके श्रीचरणों में अपना सादर प्रणाम निवेदित करता हूँ। साथ ही परम प्रिय मित्र डॉ. मिथिलेश कुमार जी के प्रति भी हार्दिक साधुवाद व्यक्त करता हूँ, जिन्होंने मेरी ओर से उन्हें यह पुस्तक भेंट की।

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बिहार के लाल कमलेश कमल आईटीबीपी में पदोन्नत, हिंदी के क्षेत्र में भी राष्ट्रीय पहचान अर्धसैनिक बल भारत -तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP) में कार्यरत बिहार के कमलेश कमल को सेकंड-इन-कमांड पद पर पदोन्नति मिली है। अभी वे आईटीबीपी के राष्ट्रीय जनसंपर्क अधिकारी हैं। साथ ही ITBP प्रकाशन विभाग की भी जिम्मेदारी है। पूर्णिया के सरसी गांव निवासी कमलेश कमल हिंदी भाषा-विज्ञान और व्याकरण के प्रतिष्ठित विद्वान हैं। उनके पिता श्री लंबोदर झा, राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित शिक्षक हैं और उनकी धर्मपत्नी दीप्ति झा केंद्रीय विद्यालय में हिंदी की शिक्षिका हैं। कमलेश कमल को मुख्यतः हिंदी भाषा -विज्ञान, व्याकरण और साहित्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान के लिए देश भर में जाना जाता है। वे भारतीय शिक्षा बोर्ड के भी भाषा सलाहकार हैं। हिंदी के विभिन्न शब्दकोशों के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुके हैं। उनकी पुस्तकों ‘भाषा संशय-शोधन’, ‘शब्द-संधान’ और ‘ऑपरेशन बस्तर: प्रेम और जंग’ ने राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति अर्जित की है। गृह मंत्रालय ने ‘भाषा संशय-शोधन’ को अपने अधीनस्थ कार्यालयों में उपयोग के लिए अनुशंसित किया है। उनकी अद्यतन कृति शब्द-संधान को भी देशभर के हिंदी प्रेमियों का भरपूर प्यार मिल रहा है। यूपीएससी 2007 बैच के अधिकारी कमलेश कमल की साहित्यिक एवं भाषाई विशेषज्ञता को देखते हुए टायकून इंटरनेशनल ने उन्हें देश के 25 चर्चित ब्यूरोक्रेट्स में शामिल किया था। वे दैनिक जागरण में ‘भाषा की पाठशाला’ लोकप्रिय स्तंभ लिखते हैं। बीते 15 वर्षों से शब्दों की व्युत्पत्ति एवं शुद्ध-प्रयोग पर शोधपूर्ण लेखन कर रहे हैं। सम्मान एवं योगदान : गोस्वामी तुलसीदास सम्मान (2023) विष्णु प्रभाकर राष्ट्रीय साहित्य सम्मान (2023) 2000 से अधिक आलेख, कविताएँ, कहानियाँ, संपादकीय, समीक्षाएँ प्रकाशित देशभर के विश्वविद्यालयों में ‘भाषा संवाद: कमलेश कमल के साथ’ कार्यक्रम का संचालन यूपीएससी मुख्य परीक्षा के लिए हिंदी एवं निबंध की निःशुल्क कक्षाओं का संचालन उनका फेसबुक पेज ‘कमल की कलम’ हर महीने 6-7 लाख पाठकों द्वारा पढ़ा जाता है, जिससे वे भाषा और साहित्य के प्रति जागरूकता बढ़ाने का कार्य कर रहे हैं। बिहार के लिए गर्व का विषय : आईटीबीपी में उनकी इस उपलब्धि और हिंदी के प्रति उनके योगदान पर पूर्णिया सहित बिहारवासियों में हर्ष का माहौल है। उनकी इस सफलता ने यह साबित कर दिया है कि बिहार की प्रतिभाएँ राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी छाप छोड़ रही हैं। वरिष्ठ पत्रकार स्वयं प्रकाश के फेसबुक वॉल से साभार।

भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली द्वारा प्रायोजित दिनाँक 2 से 12 फरवरी, 2025 तक भोगीलाल लहेरचंद इंस्टीट्यूट ऑफ इंडोलॉजी, दिल्ली में “जैन परम्परा में सर्वमान्य ग्रन्थ-तत्त्वार्थसूत्र” विषयक दस दिवसीय कार्यशाला का सुभारम्भ।

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