Search
Close this search box.

BNMU : हरित प्रौद्यौगिकी की प्रासंगिकता विषयक वेबीनार का आयोजन

👇खबर सुनने के लिए प्ले बटन दबाएं

भारतीय सभ्यता-संस्कृति एवं दर्शन में समग्र जीवन एवं संपूर्ण विश्व की चिंता है। हमारे ॠषि-मुनियों ने न केवल मनुष्य, बल्कि समस्त जीव-जंतु, पशु-पक्षी, प्रकृति-पर्यावरण आदि के बीच मानव जीवन की समरसता स्थापित करने वाली जीवन-दृष्टि विकसित की थी।

यह बात बीएनएमयू, मधेपुरा के कुलपति प्रोफेसर डाॅ. ज्ञानंजय द्विवेदी ने कही। वे आर. एम. काॅलेज, सहरसा के तत्वावधान में आयोजित राष्ट्रीय वेबीनार में उद्घाटनकर्ता के रूप में बोल रहे थे। यह वेबिनार कोविड-19 के दौर में हरित प्रौद्यौगिकी की प्रासंगिकता था।

उन्होंने कहा कि प्रकृति में सामान्यतः इसके सभी तत्त्व एक संतुलित अनुपात में रहते हैं। ये तत्त्व एक-दूसरे पर इस तरह निर्भर हैं कि यदि किसी एक तत्व को छेड़ा जाए, तो प्रकृति संतुलन में व्यवधान आ जाएगा।

उन्होंने कहा कि हम चराचर जगत की एकता में विश्वास करते हैं। यही वह दृष्टि है, जो हमें पशु-पक्षियों, जानवरों, वृक्षों, पहाड़ों, नदियों की पूजा को प्रेरित करती है।

उन्होंने कहा कि आज का मानव भोगवादी एवं उपभोक्तावादी जीवन जी रहा है। वह खुद को प्रकृति का सर्वश्रेष्ठ प्राणी समझता है। अपने अहंकार के कारण वह प्रकृति-पर्यावरण का अनुचित शोषण कर रहा है। मनुष्य की यही सुखवादी एवं उपभोक्तावादी प्रवृत्ति प्रवृति सभी समस्याओं की जननी है।

उन्होंने कहा कि महात्मा गांधी का कहना है कि प्रकृति के पास मनुष्य को देने के लिए बहुत कुछ है, वह प्रत्येक मनुष्य की आवश्यक आवश्यकताओं को पूरा कर सकती है, लेकिन वह उसके लालच को कभी पूरा नहीं कर सकती।

उन्होंने कहा कि यदि हम अपरिग्रह एवं ट्रस्टीशिप को अपने व्यवहार में लाएँ, तो प्राकृतिक संसाधनों का अनावश्यक दोहन नहीं होगा। प्राकृतिक संसाधनों का अतिदोहन रूक जाएगा और इन संसाधनों के संरक्षण का मार्ग प्रशस्त हो जाएगा।

उन्होंने कहा कि आज हमें हरित प्रौद्यौगिकी की आवश्यकता है। हम अपने को विकसित करें, लेकिन प्रकृति- पर्यावरण का ख्याल रखें। यदि प्रकृति का अस्तित्व नहीं बचेगा, तो हमारे लिए आत्मघाती होगा। हमारा अस्तित्व अन्य जीवों और वनों की रक्षा से जुड़ा है। यह मानव-प्रजाति के स्वयं जीवित रहने की अनिवार्य शर्त दिखाई देने लगी है।

मुख्य वक्ता मुंगेर विश्वविद्यालय, मुंगेर के कुलपति प्रो. रंजीत कुमार वर्मा ने वर्तमान परिप्रेक्ष्य में हरित प्रोद्योगिकी आवश्यकता को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि प्रयोगशालाओं में कम से कम हानिकारक रासायनिक पदार्थों का उपयोग होना चाहिए। उप उत्पाद को भी चक्रण पद्धति के द्वारा फिर से उपयोग में लाने की कोशिश होनी चाहिए।

आमंत्रित वक्तता पंजाब विश्वविद्यालय, पंजाब के प्रो. रजत संधीर ने कहा कि भारत के वैज्ञानिक जल्द ही कोविड-19 से बचाव के टिके का इजाद करेगें। उन्होंने कहा कि अधिकतर मरीजों में ये संक्रमण बिना किसी लक्षण के होते हैं।

दिल्ली विश्वविद्यालय, नई दिल्ली के प्रो. ए. एम. खान ने कोविद आपदा को एक चेतावनी बताया।

टीएमबीयू, भागलपुर के प्रो. अशोक कुमार झा ने ठोस अपशिष्ट पदार्थों के कार्बनिक एवं अकार्बनिक वर्गीकरण की आवश्यकता को बताया और इसके पुनः चक्रण तकनीक को अपनाने की सलाह दी।

प्राचार्य प्रो. अनिल कांत मिश्रा ने अतिथियों, प्रतिभागियों का स्वागत किया।

वेबीनार संचालन डॉ. घनश्याम चौधरी तथा धन्यवाद ज्ञापन विभागाध्यक्ष डॉ. सुमन कुमार झा ने किया।

कार्यक्रम में प्रो. अमरनाथ चौधरी, डॉ. बृजेन्द्र मिश्रा, डॉ. राजीव कुमार झा, डॉ. पी. सी. पाठक, डॉ. संजीव कुमार झा, जनसंपर्क पदाधिकारी डाॅ. सुधांशु शेखर, एमएड विभागाध्यक्ष डॉ. बुद्धप्रिय, शोधार्थी सौरभ कुमार चौहान, डेविड यादव, सुमित कुमार आदि उपस्थित थे।

-रिपोर्ट – गौरब कुमार सिंह

READ MORE

[the_ad id="32069"]

READ MORE