BNMU हमेशा प्रासंगिक हैं गाँधी : कुलपति।

*हमेशा प्रासंगिक हैं गाँधी : कुलपति*

 

महात्मा गाँधी सत्य एवं अहिंसा के पुजारी थे।‌ उन्होंने हमें एक बेहतर दुनिया बनाने का रास्ता दिखाया है। उनके बताए रास्ते पर चलकर ही हम दुनिया को महाविनाश से बचा सकते हैं। उनके विचार हमेशा के लिए प्रासंगिक हैं।

 

यह बात बीएनएमयू, मधेपुरा के कुलपति प्रो. बी. एस. झा ने कही। वे मंगलवार को प्रशासनिक परिसर अवस्थित गाँधी प्रतिमा स्थल पर आयोजित श्रद्धांजलि सभा की अध्यक्षता कर रहे थे। कार्यक्रम का आयोजन गाँधी के 77वें शहादत दिवस के अवसर पर किया गया।

 

कुलपति ने कहा कि

गाँधी युगदृष्टा थे। उन्होंने समाज, राजनीति, धर्म, अर्थव्यवस्था, पर्यावरण सभी आयामों पर विचार किया है। उनके जीवन-दर्शन में जीवन एवं जगत की सभी समस्याओं का समाधान मौजूद है।

 

कुलपति ने कहा कि मोहनदास करमचंद गाँधी का जन्म 02 अक्तूबर 1869ई. को पोरबंदर (गुजरात) में हुआ। उनकी शिक्षा-दीक्षा, प्रारंभिक शिक्षा गुजरात एवं बम्बई से हुई। इसके बाद वे बैरिस्टरी की पढ़ाई के लिए लंदन चले गए। गाँधी सन् 1893 ई .में दक्षिण अफ्रीका गए और तब तक वे मोहनदास करमचंद गाँधी ही थे।

 

उन्होंने बताया कि एक बार दक्षिण अफ्रीका जाने के बाद वे एक दिन रेलगाड़ी में सफर कर रहे थे। उस दौरान उन्हें अश्वेत होने के कारण श्वेत अंग्रेज अधिकारी ने रेलगाड़ी से उतारकर प्लेटफार्म पर फेंक दिया। उसी दिन से गाँधी ने पूरी दुनिया से भेदभाव को मिटाने का संकल्प ले लिया और यही मोहनदास के महात्मा बनने का टर्निंग प्वाइंट साबित हुआ।

 

उन्होंने कहा कि हिन्दुस्तान में जो व्यक्ति दक्षिण अफ्रीका गए थे, वे मोहनदास थे। वे वहां बैरिस्टरी करने के लिए और धनार्जन के लिए गए थे। लेकिन वहाँ उन्होंने काले लोगों की जहालत भरी जिंदगी देखी और गोरों का अत्याचार देखा,‌ तो उन्हें लगा कि इसका विरोध होना चाहिए।‌ मोहनदास ने जिस दिन से अन्याय के खिलाफ आवाज उठाई, उसी दिन से वे महात्मा बन गए।

 

उन्होंने कहा कि गांधी सन् 1916 ई. में दक्षिण अफ्रीका से लौटकर हिन्दुस्तान आए। यहां उन्होंने सबसे पहले अपने बिहार के चंपारण की धरती से सत्याग्रह आंदोलन की शुरुआत की। इसका हमें गर्व है।

 

उन्होंने कहा कि महात्मा गाँधी‌के नेतृत्व में बिहार के चम्पारण जिले में सन् 1917ई. को एक आंदोलन हुआ, इसे चम्पारण सत्याग्रह के नाम से जाना जाता है। महात्मा गाँधी जी के नेतृत्व में भारत में किया गया यह पहला सत्याग्रह था। इसमें बिहार के राजकुमार शुक्ल ने महती भूमिका निभाई थी।

इसके बाद उनके द्वारा बहुत सारे आंदोलन हुए। इनमें सविनय अवज्ञा आन्दोलन, भारत छोड़ो आंदोलन आदि प्रमुख हैं। खासकर भारत छोड़ो आंदोलन‌ के बाद अंग्रेज हमें आजादी देने को मजबूर हुए।

 

उन्होंने कहा कि महात्मा गाँधी जी 79 वर्षों की आयु तक सशरीर हमारे बीच रहे। लेकिन उनके विचार एवं कार्य हमेशा हमारे साथ हैं। उनका जीवन ही उनका संदेश है।

 

 

कुलपति ने सभी लोगों से आह्वान किया कि सभी व्यक्ति गांधी के दिखाए मार्ग पर चलें। सभी अपना-अपना कर्तव्य निभाएं। हम स्वयं बदलेंगे, तो समाज एवं राष्ट्र भी अपने आप बदल जाएगा।

 

इसके पूर्व कुलपति सहित सभी उपस्थित लोगों ने गांधी प्रतिमा पर माल्यार्पण एवं पुष्पांजलि की। कार्यक्रम का संचालन उपकुलसचिव (स्थापना) डॉ. सुधांशु शेखर ने की। धन्यवाद ज्ञापन कुलसचिव प्रो. मिहिर कुमार ठाकुर ने किया।

इस अवसर पर डीएसडब्ल्यू प्रो. नवीन कुमार, कुलानुशासक डॉ. बी. एन. विवेका, सीसीडीसी डॉ. इम्तियाज अंजूम, कुलपति के निजी सहायक शंभू नारायण यादव, परिसंपदा पदाधिकारी डॉ. शंकर कुमार मिश्र, यूभीके कालेज, कडामा के प्रधानाचार्य डॉ. माधवेंद्र झा, डॉ. संजीव कुमार, डॉ. गोपाल प्रसाद सिंह आदि उपस्थित थे।