सेहत संवाद संपन्न
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एक सामाजिक जिम्मेदारी है स्वच्छता : प्रो. परमानंद
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स्वच्छता एवं स्वास्थ्य : भारतीय संदर्भ में विषयक संवाद संपन्न
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स्वच्छता को देवत्व के समान है और यह स्वस्थ जीवन की पहली शर्त भी है। स्वच्छता का पालन करना केवल ना केवल एक व्यक्तिगत व्रत, वरन् एक सामाजिक जिम्मेदारी भी है।
यह बात गांधी विचार विभाग, तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय, भागलपुर के पूर्व अध्यक्ष प्रो. (डॉ.) परमानंद सिंह ने कही। वे शुक्रवार को विश्व स्वास्थ्य दिवस पर आयोजित स्वच्छता एवं स्वास्थ्य : भारतीय संदर्भ विषयक सेहत-संवाद की अध्यक्षता कर रहे थे।
प्रो. सिंह ने कहा कि महात्मा गांधी ने हमें औद्योगिकरण के ख़तरों के प्रति सचेत किया है और हमें प्राचीन भारतीय जीवन शैली को अपनाने की प्रेरणा दी है। हम उनके सत्य, अहिंसा, सादगी, संयम एवं शारीरिक श्रम आदि सिद्धांतों को अपने जीवन में उतारकर स्वच्छता एवं स्वास्थ्य की समस्याओं का समाधान कर सकते हैं।
कार्यक्रम का आयोजन ठाकुर प्रसाद महाविद्यालय, मधेपुरा में बिहार राज्य एड्स नियंत्रण समिति, पटना द्वारा संचालित सेहत केंद्र के तत्वावधान में किया गया।
*समेकित प्रयास की जरूरत : प्रो. फारूक*
कार्यक्रम का उद्घाटन करते हुए जयप्रकाश विश्वविद्यालय, छपरा के कुलपति प्रो. (डॉ.) फारूक अली ने कहा कि केंद्र एवं राज्य सरकार स्वच्छता एवं स्वास्थ्य को लेकर कई कार्यक्रम चला रही है। इन कार्यक्रमों के समुचित क्रियान्वयन के लिए इसमें जन भागीदारी बढ़ाने की जरूरत है। सभी लोगों के समेकित प्रयास से ही सबों के लिए स्वास्थ्य का सपना साकार हो सकेगा।
उन्होंने कहा कि कोरोना ने हमें स्वच्छता एवं स्वास्थ्य के महत्व को समझा दिया है। साथ ही यह भी साबित हो गया है कि शहरी संस्कृति विभिन्न महामारियों की जननी है। इसके विपरित जो लोग प्रकृति से जुड़े हुए हैं, वे महामारियों के प्रकोप से बचे हुए हैं और उनका जीवन ज्यादा सुखी है।
*आधुनिक सभ्यता ने बढ़ाई है समस्याएं : प्रो. मनोज*
इस अवसर पर मुख्य अतिथि महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा के पूर्व कुलपति प्रो. (डॉ.) मनोज कुमार ने कहा कि आज भारत औद्योगिकीकरण पर आधारित आधुनिक सभ्यता के मोहपाश में फंस गया है। इसके कारण स्वच्छता एवं स्वास्थ्य की समस्याएं बिकराल रुप धारण कर चुकी हैं। इससे हमारे मूलभूत मानवाधिकारों का भी हनन हो रहा है।
उन्होंने कहा कि हमारे प्रकृति-पर्यावरण एवं स्वास्थ्य को बिगाड़ने के लिए व्यवस्था जिम्मेदार है। इसलिए इसे ठीक करने की जिम्मेदारी भी उसे ही लेनी होगी। आज औद्योगिक अवशिष्टों एवं चिकित्सीय कचरों का प्रबंधन व्यवस्था का प्रश्न है। ऐसे सवालों को सिर्फ अपने आपमें बदलाव लाकर हल नहीं किया जा सकता है।
उन्होंने कहा कि कारण स्वच्छता एवं स्वास्थ्य जैसी जनसरोकार के क्षेत्रों का भी निजीकरण हो रहा है और सरकार सबों को स्वच्छ वातावरण एवं स्वास्थ्य उपलब्ध कराने की प्राथमिक जिम्मेदारियों से भाग रही है। ऐसे में सार्वजनिक स्वच्छता एवं जन स्वास्थ्य को लेकर व्यापक जनांदोलन की जरूरत है।
कार्यक्रम का संचालन उपकुलसचिव स्थापना डॉ. सुधांशु शेखर और धन्यवाद ज्ञापन मनोविज्ञान विभागाध्यक्ष डॉ. शंकर कुमार मिश्र ने किया। तकनीकी पक्ष शोधार्थी द्वय सौरभ कुमार चौहान एवं सारंग तनय ने संभाला। डॉ. अमित राय, डॉ. राजीव रंजन, श्याम प्रिया आदि ने की प्रासंगिकता प्रश्न उठाए।
इस अवसर पर प्रो. अविनाश कुमार श्रीवास्तव (नालंदा), प्रो. एन. के. अग्रवाल (दरभंगा), डॉ. कृष्णा चौधरी, डॉ. अनिता गुप्ता, डॉ. सीमा कुमारी, अभाष घानी, आलोक रंजन, बिजेंदर सौरभ, डॉ. मीना सिंह, पूनम कुमारी रामानुज रवि, पूनम यादव, सौरभ सिंह, सीमा कुमारी, शशि कुमार, सिंपल कुमारी, बंटकेश्वर प्रभात कुमार भारती, डेविड यादव, सिद्दु कुमार, मनोज कुमार, हिना परवेज डॉ. राम कुमार झा, सुतापा चक्रवर्ती विजय प्रकाश, देशराज वर्मा, डॉ. कौशल किशोर चौधरी, मो. हामिद, इन्द्रजीत कुमार, मेघा कुमारी सोनजीत कुमार, बलराम सिंह, डॉ. हिमांशु शेखर सिंह, गौरव कुमार सिंह, अमित, धीरेंद्र कुमार, दिलिप कुमार दिल, रंजन यादव, सनोज चौधरी आदि उपस्थित थे।