BNMU समावेशी है भारतीय ज्ञान परंपरा : प्रति कुलपति

समावेशी है भारतीय ज्ञान परंपरा : प्रति कुलपति
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भारतीय ज्ञान परंपरा समावेशी है। इसमें व्यावहारिक एवं पारमार्थिक दोनों ज्ञानों का समावेश है। यह बात भूपेंद्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय, मधेपुरा की प्रति कुलपति प्रोफेसर डाॅ. आभा सिंह ने कही।

वे अखिल भारतीय दर्शन परिषद् का चार दिवसीय 65वें अधिवेशन के दूसरे दिन बुधवार को ‘भारतीय परंपरा और विज्ञान’ विषयक संगोष्ठी की अध्यक्षता कर रही थीं।

यह अधिवेशन दर्शन एवं संस्कृति विभाग, महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा के तत्त्वावधान में ऑनलाइन पद्धति से आयोजित हो रहा है।

प्रति कुलपति ने कहा कि भारतीय परंपरा में पारमार्थिक ज्ञान को काफी महत्व दिया गया है। लेकिन यहाँ व्यावहारिक ज्ञान (विज्ञान आदि) की उपेक्षा नहीं की गई है। भारत में अभियंत्रिकी, धातु विज्ञान, शिल्प, चिकित्सा आदि विज्ञान की सभी शाखाओं का विकास हुआ है।

प्रति कुलपति ने कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा में व्यक्ति को समग्रता में स्वीकार किया गया है। इसमें शिक्षा का उद्देश्य व्यक्ति का समग्र विकास है। इसके अंतर्गत व्यक्ति के शरीर, मन एवं आत्मा सभी आयामों का विकास अपेक्षित है।

प्रति कुलपति ने कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा सतत प्रवाहमान है। यह निरंतर विकसित एवं परिष्कृत होती रही है। हमारा अन्य देशों की ज्ञान परंपराओं से भी निरंतर जीवंत संपर्क और सार्थक संवाद भी रहा है।

प्रति कुलपति ने बताया कि भर्तृहरि ने अन्य परंपराओं को भी जानने की जरूरत बताई है और कहा है कि वह जानना क्या है, जो सिर्फ अपनी परंपरा को जानता है। लेकिन आज अपनी परंपरा को नकारने का एक फैशन चल पड़ा है। ऐसे में आज यह कहा जा सकता है कि वह जानना ही क्या है, जो अपनी परंपरा को भी नहीं जानता है!

संगोष्ठी के स्थानीय संयोजक डॉ. रामानुज अस्थाना एवं स्थानीय सह संयोजक डॉ. मीरा निचले थे। इसमें प्रोफेसर राजीव रज्जन सिंह (वाराणसी) एवं डाॅ. आलोक टंडन (हरदोई) का भी व्याख्यान हुआ।

इनमें पूर्व कुलपति प्रोफेसर डाॅ. ज्ञानंजय द्विवेदी, जनसंपर्क पदाधिकारी डाॅ. सुधांशु शेखर, शोधार्थी सौरभ कुमार चौहान सहित कई शिक्षक, शोधार्थी एवं विद्यार्थियों भाग ले रहे हैं।