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BNMU भारतीय दर्शन में प्रस्थानत्रयी का काफी महत्व है*

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*भारतीय दर्शन में प्रस्थानत्रयी का काफी महत्व है*

भारतीय दर्शन में श्रीमद्भगवद्गीता, ब्रह्मसूत्र तथा उपनिषदों को सामूहिक रूप से प्रस्थानत्रयी कहा जाता है। ये तीनों वेदान्त के तीन मुख्य स्तम्भ माने जाते हैं।

यह बात विभिन्न वक्ताओं ने कही। सभी वक्ता भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद्, शैक्षणिक केंद्र, लखनऊ द्वारा आयोजित स्टडी सर्कल कार्यक्रम में बोल रहे थे। इसका मुख्य विषय “प्रस्थानत्रयी में भगवतगीता की भूमिका” था।

वक्ताओं ने बताया कि प्रस्थानत्रयी में सभी मनुष्यों की मुक्ति के रास्ते बताए गए हैं। इनमें प्रवृत्ति और निवृत्तदोनों मार्गों का तात्त्विक विवेचन है।

वक्ताओं ने कहा कि उपनिषदों को श्रुति प्रस्थान, भगवद्गीता को स्मृति प्रस्थान और ब्रह्मसूत्रों को न्याय प्रस्थान कहा जाता है। प्राचीन काल में भारतवर्ष में जब कोई गुरू अथवा आचार्य अपने मत का प्रतिपादन एवं उसकी प्रतिष्ठा करना चाहता था, तो उसके लिए सर्वप्रथम वह इन तीनों पर भाष्य लिखते थे।

वक्ताओं ने कहा कि आदि शंकराचार्य,  रामानुजाचार्य, मध्वाचार्य, निम्बार्काचार्य आदि आदि बड़े-बड़े गुरुओं ने ऐसा कर के ही अपने मत का प्रतिपादन किया।

कार्यक्रम की अध्यक्षता आईसीपीआर के अध्यक्ष प्रो. आर. सी. सिन्हा, अध्यक्ष ने की। अतिथियों का स्वागत सदस्य-सचिव प्रो. सच्चिदानंद मिश्र और विषय प्रवर्तन निदेशक (शैक्षणिक) डॉ. पूजा व्यास ने किया। धन्यवाद ज्ञापन वरिष्ठ सलाहकार डॉ. जयशंकर सिंह द्वारा किया गया।

इस अवसर पर मुख्य वक्ता भगवानदीन आर्य कन्या स्नातकोत्तर महाविद्यालय, लखीमपुर में दर्शन विभाग की सहायक प्रोफेसर डॉ. क्षमा तिवारी थीं।

कार्यक्रम में अखिल भारतीय दर्शन परिषद् के अध्यक्ष प्रोफेसर डाॅ. जटाशंकर, पटना विश्वविद्यालय, पटना में दर्शनशास्त्र विभाग की पूर्व अध्यक्ष प्रोफेसर डाॅ. पूनम सिंह, सम्मानित अतिथि प्रो. बी. के. अग्रवाल (लखनऊ), भूपेंद्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय, मधेपुरा के जनसंपर्क पदाधिकारी डॉ. सुधांशु शेखर, डॉ. आभा झा, डॉ. बिमल अग्रवाल, डॉ. धनंजय त्रिवेदी, डॉ. रेखा पांडेय, डॉ. सुधीर सिंह, डॉ. सुशीला सिंह, डॉ. उषा शुक्ला आदि ने शिरकत किया।

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