BNMU। मानसिक स्वास्थ्य एवं युवा वर्ग विषयक परिचर्चा का आयोजन

मानसिक स्वास्थ्य एवं युवा वर्ग विषयक परिचर्चा का आयोजन

स्वास्थ्य मात्र बीमारियों के अभाव का नाम नहीं है और यह शारीरिक तंदरुस्ती तक सीमित भी नहीं है। स्वास्थ्य का अर्थ काफी व्यापक है और इसमें मानव व्यक्तित्व के सभी पक्षों का समावेश हो जाता है।

यह बात भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली के अध्यक्ष प्रो. (डाॅ.) रमेशचन्द्र सिन्हा ने कही। वे बुधवार को मानसिक स्वास्थ्य एवं युवा वर्ग विषयक ऑनलाइन परिचर्चा में उद्घाटन वक्तव्य दे रहे थे। यह परिचर्चा ठाकुर प्रसाद महाविद्यालय, मधेपुरा की राष्ट्रीय सेवा योजना इकाई-I के तत्वावधान में आयोजित सात दिवसीय विशेष शिविर के छठे दिन आयोजित की गई।

उन्होंने कहा कि मनुष्य मात्र शरीर, मात्र मन या मात्र आत्मा नहीं है। मनुष्य तीनों का समेकित रूप है। अतः जब शरीर, मन एवं आत्मा तीनों की उन्नति होगी, तभी मनुष्य की समग्र उन्नति होती है।

उन्होंने कहा कि जब मनुष्य मानसिक रूप से स्वस्थ होगा, तभी वह समाज एवं राष्ट्र की उन्नति में अपना सर्वोत्तम योगदान दे सकेगा। मनुष्य के साथ-साथ समाज एवं राष्ट्र को भी मानसिक रूप से सबल एवं सक्षम बनाने की जरूरत है। समाज एवं राष्ट्र की आर्थिक उन्नति के साथ-साथ उसके मानसिक एवं आध्यात्मिक उन्नति की ओर भी ध्यान देना जरूरी है।

उन्होंने कहा कि भारतीय समाज एवं राष्ट्र वर्षों से औपनिवेशिक मानसिकता से ग्रसित रहा है। हमारे देश में लंबे काल तक विदेशियों का शासन रहा और उस दौरान हमारे सोच-विचार पर काफी नकारात्मक प्रभाव पड़ा। हमें अपने आपको और अपने समाज एवं राष्ट्र को औपनिवेशिक मानसिक दासता से उबरना होगा।

उन्होंने कहा कि हम 1947 में राजनैतिक रूप से स्वतंत्र हो गए हैं। लेकिन हमें वैचारिक स्वराज के लिए प्रयास करने की जरूरत है। युवाओं को मानसिक दास्ता से उबरना है। जीवन की सार्थकता की पहचान करनी है और उदात्त मूल्यों को आगे बढ़ाना है।

उन्होंने कहा कि यवाओं को सेवा जैसे सकारात्मक कार्यक्रमों में जुड़ा देखकर लगता है कि देश का भविष्य उज्ज्वल है। हमें सभी युवाओं को जीवन एवं जगत से जुड़े सकारात्मक मूल्यों की ओर ले जाना चाहिए। युवाओं का चरित्र-निर्माण राष्ट्र-निर्माण के लिए आवश्यक है।

उन्होंने कहा कि चारित्रिक मूल्य भी भारत की असली पहचान हैं और यही भारत की वास्तविक ताकत है। यही वह बात है, जिसके कारण मोहम्मद इकबाल ने कहा है कि कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी। यूनान, मिस्र, रोमां, सब मिट गए जहां  से। कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी।’’

विशिष्ट अतिथि कोलकाता की डाॅ. गीता दुबे ने कहा कि मानसिक स्वास्थ्य मन की एक ऐसी स्थिति जिसमें व्यक्ति को सीमाओं का एहसास रहता है, वह जीवन के सामान्य तनावों का सामना कर सकता है, लाभकारी एवं उपयोगी रूप से काम कर सकता है और समाज के प्रति योगदान करने की क्षमता रखता है। ऐसा व्यक्ति जो अपने निर्णय स्वयं ले पाए, छोटी-छोटी बातों से घबराकर नींद की गोलियां ना लें, जो छोटी सी परेशानी में नशे का सहारा ना लें और सकारात्मक एवं रचनात्मक अवदान कर पाए।

उन्होंने कहा कि पहले भारतीय समाज में संयुक्त परिवार हुआ करता था। वहाँ बच्चों के बीच में बुजुर्ग भी होते थे, जो उनका ख्याल रखते थे। बुजुर्ग उन्हें प्रेरणादायक कहानियाँ सुनाते थे, उनकी समस्याओं को सुनते थे और उनके शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान देते थे।

उन्होंने कहा कि आधुनिक परिवेश में संयुक्त परिवार बिखर गया। आज एकल परिवार है। यदि माता-पिता दोनों कामकाजी हैं, उनके बच्चे इंतजार करते हैं कि कब हमारे माता-पिता घर आएं और हम अपनी स्कूल की बातें उनको सुनाएं। लेकिन कई बार ऐसा होता है कि माता-पिता स्वयं अवसाद से ग्रसित होते हैं। वह उन्हें सुनने की बजाय झिड़क के चुप करा देते हैं। इसका बच्चों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। आज बच्चों एवः युवाओं की जो समस्या है, वह पूरे समाज की समस्या है।

उन्होंने कहा कि आज भौतिकतावाद की आपाधापी में सबसे अधिक कुप्रभाव मन पर पड़ता है। अतः आज मानसिक स्वास्थ्य पर सबसे अधिक ध्यान देने की जरूरत है। लेकिन दुख की बात है कि आज भी आम लोग मानसिक स्वास्थ्य पर बात करने से कतराते हैं। सामान्यतः लोग मानसिक स्वास्थ्य पर ना तो लोग ध्यान देते ना ही उस पर बातचीत करते हैं।

उन्होंने कहा कि हमें शरीर के साथ-साथ मन के भी समुचित पोषण पर ध्यान देने की जरूरत है। इसके लिए हम अपनी जीवन-दृष्टि एवं जीवनशैली में सकारात्मक परिवर्तन लाएं। अच्छे साहित्य, अच्छे संगीत एवं अच्छी संगति को जीवन में शामिल करें। हम अपने जीवन में सामुदायिकता की भावना का विकास करें और हमेशा यह याद रखें कि हमारा जीवन समाज एवं राष्ट्र के लिए है।

योग विशेषज्ञ डाॅ. कविता भट्ट शैलपुत्री (उत्तराखंड) ने कहा कि युवा होने का उम्र से नहीं, बल्कि मानसिकता से संबंध है। जो व्यक्ति मानसिक रूप से मजबूत है और जो सकारात्मक सोच के साथ जीवन में निरंतर आगे बढ़ना चाहता है, वही युवा है, भले ही उसकी उम्र कुछ भी क्यों न हो। भारत के पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम अपने जीवन के अंतिम दिनों तक युवा रहे। वे अंतिम क्षणों तक उस कर्म के प्रति समर्पित रहे, जो कर्म उन्होंने लक्ष्य के रूप में अपने जीवन में निर्धारित किया था।

उन्होंने कहा कि शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य के लिए हमारा आहार एवं विहार दोनों स्वास्थ होना चाहिए। विशेषकर कोराना काल में मानसिक स्वास्थ्य पर अत्यधिक ध्यान देने की जरूरत है।

 

सम्मानित अतिथि राँची की सीएस पूजा शुक्ला ने कहा कि शारीरिक स्वास्थ्य एवं मानसिक स्वास्थ्य दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। स्वास्थ्य शरीर में ही स्वस्थ मन का वास होता है और मानसिक स्वास्थ्य शारीरिक स्वास्थ्य के लिए जरूरी है।

उन्होंने कहा कि हमें अपनी जड़ों से जुड़े रहने की जरूरत है। हम पश्चिमी वस्त्रों एवं अंग्रेजी भाषा का अनुकरण करने मात्र से आधुनिक नहीं बन जाते हैं। हमें अपने विचारों में आधुनिकता लाने की जरूरत है।

उन्होंने कहा कि युवा अपनी योग्यताओं एवं क्षमताओं के अनुरूप कोई भी मान्य पेशा अपना सकते हैं। लेकिन सबसे पहले तह जरूरी है कि हम एक बेहतर इंसान बनें। हम शारीरिक, मानसिक एवं नैतिक रूप से सबल बनें।

कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रधानाचार्य डाॅ. के. पी. यादव ने की। संचालन कार्यक्रम पदाधिकारी डॉ. सुधांशु शेखर एवं शोधार्थी सारंग तनय ने किया। इसके पूर्व अकादमिक निदेशक प्रोफेसर डॉ. एम. आई. रहमान ने स्वयंसेवकों को मानसिक रूप से स्वस्थ रहने के टिप्स दिए। प्रांगण रंगमंच की युवा कवयित्री सिखा कुमारी अग्रवाल ने अपनी कविताओं के माध्यम से रक्तदान के महत्व को समझाया।

इस अवसर पर महाविद्यालय अभिषद् सदस्य डाॅ. जवाहर पासवान, के. पी. काॅलेज, मुरलीगंज के कार्यक्रम पदाधिकारी डाॅ. अमरेन्द्र कुमार, सी. एम. साइंस काॅलेज, मधेपुरा के कार्यक्रम पदाधिकारी डाॅ. संजय कुमार परमार, अधिषद् सदस्य रंजन यादव, डेविड यादव, सौरभ कुमार चौहान, सांतनु यदुवंशी, संतोष कुमार आदि उपस्थित थे।

मालूम हो कि सात दिवसीय विशेष शिविर के दौरान सभी दिन अलग-अलग विषयों पर परिचर्चा का आयोजन होगा। इसके लिए क्रमशः कोरोना : कारण एवं निवारण, मानव और पर्यावरण, पोषण एवं स्वास्थ्य, आपदा प्रबंधन और सामाजिक दायित्व, भारत की ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक विरासत, मानसिक स्वास्थ्य और युवा वर्ग तथा राष्ट्र-निर्माण में युवाओं की भूमिका विषय निर्धारित किया गया है।