“स्त्री की सफलता पुरुष को बांधने में है, किन्तु सार्थकता पुरुष की मुक्ति में है” यह एक वाक्य शब्द-शक्ति के इस सिद्ध महर्षि की अद्भुत मेधा का एक आंशिक परिचय मात्र है। हिंदी गद्य की महान परंपरा में ऐसे बहुपठित आचार्य का मिलना दुर्लभ ही था, जो संस्कृत, ज्योतिष, पुरातत्व, सनातन धर्म के साथ साथ सारे विश्व की अन्य विचार-वीथियों से भी उसी तन्मयता के साथ निकला हो, जिस तन्मयता के साथ गुरुदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर के शान्तिनिकेतन में आचार्य क्षितीन्द्र मोहन सेन, नन्दलाल बसु और बलराज साहनी सरीखे महान सहकर्मियों के साथ अध्यापन किया। मेरे लिए गर्व की बात है, कि मेरे पूज्य पिता जी के शोध-ग्रन्थ परीक्षकों में आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी भी थे। उस क्षण का एक दुर्लभ श्वेत-श्याम चित्र हमारे घर में होना पिता के आत्म-गौरव और हमारे लिए पितृ-गौरव का विषय है। जिन्हें भारतीय गद्य की शक्ति का अनुभव करना हो, वे आचार्य जी की ‘पुनर्नवा’, ‘बाणभट्ट की आत्मकथा’ और ‘मेघदूत – एक पुरानी कहानी’ जैसे प्रातिभ ग्रन्थ अवश्य पढ़ें। आचार्य परम्परा के हिंदी महर्षि पंडित हज़ारी प्रसाद द्विवेदी जी की पुण्यतिथि पर उन्हें सादर प्रणाम। 🙏🏻❤️
-कुमार विश्वास, सुप्रसिद्ध कवि, नई दिल्ली