BNMU शुरूआती सफर की कुछ यादें-कुछ बातें…

शुरूआती सफर की कुछ यादें-कुछ बातें…
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बिहार लोक सेवा आयोग, पटना द्वारा वर्ष 2014 में असिस्टेंट प्रोफेसर के लिए विज्ञापन निकला था। हमारे दर्शनशास्त्र विषय का साक्षात्कार मार्च 2016 में हुआ और परिणाम आया लगभग 9 माह बाद दिसंबर में। इसमें मेरा चयन भूपेंद्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय, मधेपुरा में हुआ। साक्षात्कार में कम अंक मिलने के कारण मेरा ‘रैंक’ सबसे नीचे रहा, इससे कुछ निराशा तो हुई, लेकिन हमने इसे अपनी नियति मानकर स्वीकार कर लिया।

बहरहाल, हम भूपेंद्र नारायण मंडल, विश्वविद्यालय में अपनी ‘ज्वाइनिंग’ का इंतजार करने लगे। साथ ही हम बीच-बीच में अगली प्रक्रियाओं की जानकारी आदि के लिए ‘विश्वविद्यालय’ का चक्कर काटते रहे और काफी खट्टे-मीठे अनुभवों से गुजरे।

हमारे अथक परिश्रम के बाद गत 8 मई, 2017 का यादगार दिन आया, जब हमारा ‘डाक्यूमेन्ट वेरिफ़िकेशन’ हुआ। इस दिन कई अनुभव हुए। इसमें से दो वाकए को मैं कभी नहीं भूल सकता हूँ।

एक, मैं केंद्रीय पुस्तकालय के बाहर बरामदे पर आगंतुकों के लिए लगी कुर्सी पर बैठा और अखबार पलटने लगा। एक कर्मी ने आकर मुझे कुर्सी से उठा दिया और मेरे हाथ से अखबार छीन लिया। मैं और मेरे साथीगण हक्का-बक्का रह गए।

दूसरा, ‘डाक्यूमेन्ट वेरिफ़िकेशन’ के बाद देर शाम हम महामना भूपेंद्र नारायण मंडल की प्रतिमा के पास फोटोग्राफी कर रहे थे। उसी दौरान वहाँ एक पदाधिकारी से हमें विश्वविद्यालय के बारे में निराशाजनक ‘टिप्पणी’ मिली थी। इस पूरे प्रकरण से व्यथित होकर मैंने ‘सास भी कभी बहू थी…’ शीर्षक से फेसबुक पर एक पोस्ट लिखा था।

बहरहाल, ‘डाक्यूमेन्ट वेरिफ़िकेशन’ के बाद ‘ज्वाइनिंग’ के लिए हमारी बेकरारी कुछ ज्यादा ही बढ़ गई थी। खासकर जब अन्य विश्वविद्यालयों से लगातार दर्शनशास्त्र विषय के असिस्टेंट प्रोफेसरों की ‘ज्वाइनिंग’ की सूचनाएँ मिलने लगीं, तो हम सब भी जल्द-से-जल्द ‘ज्वाइनिंग’ के लिए उतावले होने लगे।

इसलिए हम प्रतिदिन ‘डाक्यूमेन्ट वेरिफ़िकेशन’ कमिटी के सदस्यों को फोन एवं मैसेज भी करते थे, ताकि कुछ ‘पॉजिटिव’ न्यूज मिले। इसके लिए हमने विशेष रूप से अपने महिला साथियों को जिम्मेदारी दे रखी थी; क्योंकि प्रायः सदस्य लोग हम पुरूषों को झिड़क देते थे।

उधर, पटना के मेरे साथियों ने कई बार तत्कालीन कुलपति के स्थाई आवास की परिक्रमा की और राजभवन एवं राज्य सरकार तक भी दौड़ लगाई। इधर, मैंने अपने शहर भागलपुर से ताल्लुकात रखने वाले भावी कुलपति गुरूवर प्रोफेसर डॉ. अवध किशोर राय, पूर्व प्रति कुलपति, तिलकामाँझी भागलपुर विश्वविद्यालय, भागलपुर एवं प्रति कुलपति गुरूवर प्रोफेसर डॉ. फारूक़ अली, अध्यक्ष, जंतु विज्ञान विभाग, टी. एन. बी. काॅलेज, भागलपुर (जिनके नामों की घोषणा हो गई थी) को भी अपनी व्यथा-कथा सुनाई। दोनों ने कहा कि अभी वे इस मामले में हस्तक्षेप नहीं कर सकते हैं, लेकिन अपना पदभार ग्रहण करने के बाद वे जरूर हमारी समस्यायों के समाधान को प्राथमिकता देंगे।

अंततः, 29 मई, 2017 को प्रोफेसर अवध किशोर राय सर ने भूपेंद्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय, मधेपुरा के नए कुलपति के रूप में योगदान दिया। मैं भी उनके पीछे-पीछे भागलपुर से मधेपुरा आ गया और इस ऐतिहासिक क्षण का गवाह बना। अवध बाबू ने अपने वादे के मुताबिक अपने योगदान के दिन ही हमारी ‘ज्वाइनिंग’ के बारे में खोज-खबर ली। उन्होंने देर शाम अपने आवास पर कई पदाधिकारियों एवं कर्मचारियों के बीच हमसे कहा कि गर्मी छुट्टी समाप्त होते ही तुम्हारी ‘ज्वाइनिंग’ करा देंगे। शायद उन्हें किसी अधिकारी या कर्मचारी ने समझा दिया कि गर्मी छुट्टी में ‘ज्वाइनिंग’ कराकर वेतन देना बेकार है। इस बात से मैं बहुत परेशान हो गया, लेकिन तब बहुत लोगों के बीच मैंने कुछ नहीं बोलना ही बेहतर समझा! उस दिन देर रात हम भागलपुर लौट आए।

अगले दिन मैंने प्रोफेसर अवध किशोर राय सर को एक मैसेज भेजा, “सर सादर प्रणाम। आपने जो कहा कि जुलाई में ‘ज्वाइनिन्ग’ कराएंगे। वह बिल्कुल सही है। माननीय कुलपति के रूप में आपकी इस भावना का हम आदर एवं सम्मान करते हैं। लेकिन आप हमारे अभिभावक भी हैं। इस रूप में विनम्र अनुरोध है कि अविलंब हमारी ‘ज्वाइनिन्ग’ कराने की कृपा करें। आपके एक ‘सिगनेचर’ से हम ‘रिसर्च स्कालर’ से ‘अस्सिटेंट प्रोफेसर’ बन जाएंगे। जून में ‘ज्वाइनिन्ग’ से हमारी सर्विस एक माह बढ जाएगी। यह आपका हमारे ऊपर विशेष उपकार होगा। आप जून में हमें छुट्टी नहीं दीजिए। परीक्षा, पुस्तकालय आदि के काम में लगाइए। कुछ ट्रेनिंग दीजिए। आभार सहित।” साथ ही मैंने उन्हें फोन भी किया। उन्होंने कहा, “फारूक एक को ज्वाइन कर रहा है। तुम आओगे ही न साथ में। आओ न। सब हो जाएगा।”

मैं पुनः एक जून को प्रोफेसर डॉ. फारूक़ अली सर के साथ भागलपुर से मधेपुरा आया, उन्होंने यहाँ प्रति कुलपति के रूप में योगदान दिया। उन्होंने योगदान के कुछ देर बाद कुलपति महोदय से कहा, “सर इ पहलवान तीन दिन से पीछे पड़ा है। कहता है कि भीसी साहेब बोले हैं कि पहले पीभीसी का ज्वाइनिंग होने दो। फिर तुम्हारी ज्वाइनिंग कराएँगे।” कुलपति महोदय ने कहा, “अब इसको ज्वाइनिंग लेटर देकर ही हम दोनों भागलपुर जाएँगे।” वे हरबार की तरह इस बार भी अपने वादे के पक्के निकले। महज दो दिन बाद 3 जून, 2017 को हमें ‘ज्वाइनिंग लेटर’ मिल गया।

… और इस लेटर की खास बात यह थी कि अवध बाबू ने मुझे विशेषरूप से उपकृत करते हुए प्रतिष्ठित ठाकुर प्रसाद महाविद्यालय, मधेपुरा की सेवा का अवसर दिया। मैं इस आशीर्वाद के लिए उनका विशेष रूप से ॠणि हूँ और हमेशा रहूँगा। विशेषरूप से इसलिए भी; क्योंकि उन्होंने मुझे यह आशीर्वाद भी बिना माँगे दिया था। सचमुच हमारे लिए तो ‘ज्वाइनिंग’ ही इतना बड़ा मुद्दा हो गया था कि ‘काॅलेज च्वाइस’ की तो हमने सोचा भी नहीं था।

अंत में, मैं पुनः-पुनः भूपेंद्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय, मधेपुरा में हमारे सफर के शुरूआती दिनों में हमें संबल देने वाले गुरूवर द्वय तत्कालीन कुलपति प्रोफेसर डाॅ. अवध किशोर राय सर एवं तत्कालीन प्रति कुलपति प्रोफेसर डाॅ. फारूक अली सर के प्रति विनम्रतापूर्वक आभार व्यक्त करता हूँ।

मैं आभारी हूँ ठाकुर प्रसाद महाविद्यालय, मधेपुरा के तत्कालीन प्रधानाचार्य प्रोफेसर डाॅ. एच. एल. एस. जौहरी एवं तत्कालीन अर्थपाल एवं संप्रति कुलसचिव डाॅ. कपिलदेव प्रसाद का, जिनके समक्ष हमने योगदान देकर असिस्टेंट प्रोफेसर के रूप में अपने सफर की शुरूआत की थी। साथ ही अभिभावक समान पूर्व प्रधानाचार्य डाॅ. परमानंद यादव एवं वर्तमान प्रधानाचार्य डाॅ. के. पी. यादव एवं सिंडिकेट सदस्य अग्रज डाॅ. जवाहर पासवान के प्रति आभार व्यक्त करता हूँ, जिनसे मुझे इस सफर में हमेशा संरक्षण एवं स्नेह मिलता आ रहा है।

मैं माननीय कुलपति प्रोफेसर डाॅ. आर. के. पी. रमण, माननीय प्रति कुलपति प्रोफेसर डाॅ. आभा सिंह, पूर्व प्रभारी कुलपति प्रोफेसर डाॅ. ज्ञानंजय द्विवेदी एवं अकादमिक निदेशक अग्रज प्रोफेसर डाॅ. एम. आई. रहमान के प्रति भी हार्दिक कृतज्ञता ज्ञापित करता हूँ, जिनके मार्गदर्शन में मेरा यह सफर जारी है और मुझे बहुत कुछ सीखने-समझने का अवसर मिल रहा है।

इन चार वर्षों के सफर में जिनका भी प्रत्यक्ष या परोक्ष सहयोग मिला, उन सबों के प्रति हार्दिक साधुवाद व्यक्त करता हूँ और त्रुटियों एवं कमियों के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ।

पुनश्च, जिंदगी एक रहस्यमय सफर है। इसमें प्रायः चीजें सीधी रेखा में नहीं चलती हैं। जो चीज प्रारंभिक रूप से हमें दुखदायी नजर आती हैं, उसमें भी अक्सर हमारे उज्ज्वल भविष्य की संभावनाएँ छीपी होती हैं। हम भी प्रारंभ में भूपेंद्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय, मधेपुरा में चयनित होने से दुखी थे। लेकिन यह मेरे लिए ‘वरदान’ साबित हुआ। अतः, हमें विपरीत परिस्थितियों में भी साहस, धैर्य एवं विवेक से काम लेना चाहिए और सफर का सिलसिला जारी रखना चाहिए।

आप सबों की सेवा में ‘सफर’ से संबंधित कुछ पंक्तियाँ-

1. “ज़िंदगी अपना सफ़र तय तो करेगी लेकिन/ हमसफ़र आप जो होते तो मज़ा और ही था।” -अमीता परसुराम ‘मीता’

2. “हमसफ़र होता कोई तो बाँट लेते दूरियाँ। राह चलते लोग क्या समझें मेरी मजबूरियाँ।” -सरदार अंजुम

3. “न हम-सफ़र न किसी हम-नशीं से निकलेगा। हमारे पाँव का काँटा हमीं से निकलेगा।” -राहत इंदौरी

बहुत-बहुत आभार। सादर प्रणाम।