BNMU। सम्मानित किए गए प्रोफेसर डाॅ. बहादुर मिश्र

डाॅ. बहादुर मिश्र का सम्मान

ठाकुर प्रसाद महाविद्यालय, मधेपुरा में शुक्रवार को तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय, भागलपुर में हिंदी विभाग के पूर्व अध्यक्ष एवं सुप्रसिद्ध साहित्यकार प्रोफेसर डॉ. बहादुर मिश्र को अंगवस्त्रम् एवं स्मृति चिह्न देकर सम्मानित किया गया। इस अवसर पर प्रधानाचार्य प्रोफेसर डाॅ. के. पी. यादव एवं दर्शनशास्त्र विभाग के असिस्टेंट प्रोफ़ेसर एवं अध्यक्ष डाॅ. सुधांशु शेखर ने बताया कि डाॅ. मिश्र को गत दिनों दर्शन परिषद्, बिहार के अधिवेशन में आमंत्रित किया गया था, लेकिन वे अपरिहार्य कारणों से इस आयोजन में शिरकत नहीं कर पाए थे। हमारा सौभाग्य है कि आयोजन के ठीक एक माह बाद वे यहाँ अनौपचारिक रूप से ही सही पधारे और हमें आशीर्वाद दिया।

मालूम हो कि डाॅ. मिश्र पूरे उत्तर भारत के वरिष्ठतम प्रध्यापक हैं। आप मार्च 1979 में व्याख्याता और 1995 में प्रोफेसर बने। इसके बाद स्नातकोत्तर विभाग के अध्यक्ष और मानविकी संकायाध्यक्ष भी रहे। आपकी हिंदी के अलावा अंग्रेजी एवं संस्कृति में भी समान गति है।

आपकी कई पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं। इनमें ‘पंडित नेहरू : मुक्तिबोध के नजरिए से’, ‘हिंदी काव्य में अप्रस्तुत विधान’, ‘भाषा, साहित्य और संस्कृति’ एवं ‘कविता आज तक’ प्रमुख समीक्षा कृति हैं। इसके अलावा ‘मुकरियां’,
‘रवींद्रनाथ टैगोर साहित्यकारों के नजरिए से’, ‘कवि दृष्टि में कवि’ एवं
‘चुनी हुई कहानियां’ संपादित पुस्तकें हैं।

इस अवसर पर डाॅ. बहादुर मिश्र ने कहा कि टी. पी. काॅलेज, मधेपुरा के परिसर में प्रवेश करते हुए मुझे सुखद अनुभूति हुई। स्वच्छता और सौंदर्य-चेतना का मुखर प्रदर्शन देख मुझे आंतरिक आनंद प्राप्त हुआ। मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि ऐसा परिवेश मैंने किसी अन्य अंगीभूत इकाई में नहीं देखा। महाविद्यालय के प्रधानाचार्य डाॅ. के. पी. यादव में निष्ठावान एवं भविष्यद्रष्टा प्रशासक की छवि दिखाई पड़ी। ये उदार हृदय के साथ प्रशासन-प्रबंधन में विश्वास रखते हैं। इन्होंने इस धारणा को झुठला दिया है कि भाषा-साहित्य का शिक्षक प्रशासकीय क्षमताओं में कम होता है। आशा ही नहीं, विश्वास है कि यह महाविद्यालय दिनानुदिन प्रगति करेगा।

उन्होंने शिक्षकों एवं विद्यार्थियों से अपील की कि वे बिहार में अध्ययन-अध्यापन का माहौल बनाने में योगदान दें। सभी शिक्षण संस्थानों में नियमित रूप से ऑफलाइन/ ऑनलाइन कक्षाओं का संचालन हो।

उन्होंने कहा कि गुरु या किसी भी जानकार की बातों को सुनना और स्वाध्याय ज्ञान के दो मुख्य साधन हैं।इन दोनों का कोई दूसरा विकल्प नहीं है। विद्यार्थियों को इन दोनों साधनों का भरपूर सदुपयोग करना चाहिए।