BNMU। शिक्षा के बदलते परिदृश्य एवं चुनौतियां विषयक राष्ट्रीय सेमिनार संपन्न

राष्ट्रीय शिक्षा नीति में गुणवत्तापूर्ण शोध पर काफी ध्यान दिया गया है। इसमें सभी शोध एजेंसियाँ के ऊपर एक नेशनल फाउंडेशन बनाने का प्रस्ताव है। इसके माध्यम से हम शोध करने वाले शिक्षकों एवं शोधार्थियों को समुचित फंड उपलब्ध करा सकेंगे।

यह बात बीएचयू वाराणसी के प्रोफेसर डॉ. बी. के. सिंह ने कही। वे मधेपुरा काॅलेज, मधेपुरा में शिक्षा के बदलते परिदृश्य एवं चुनौतियां विषयक दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार के समापन सत्र में मुख्य वक्ता के रूप में बोल रहे थे

उन्होंने बताया कि उन्होंने बताया कि आज देश में शोध को बढ़ावा देने के लिए कई संस्थाएँ कार्य कर रही हैं। इनमें यूजीसी, डीएसटी, आईसीएमआर आदि प्रमुख हैं। ऐसी तमाम संस्थाएँ छोटे और बड़े स्तर पर रिसर्च को प्रमोट करने के लिए अनुदान दे रही हैं।

उन्होंने कहा कि विश्व स्तर पर शोध-पत्र प्रकाशन के मामले में चीन प्रथम, अमेरिका द्वितीय और भारत तृतीय स्थान पर है। हमें मेहनत करके भारत को पहले स्थान पर लाना है।

उन्होंने कहा कि हमें छोटे स्तरों पर मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध करानी है और आधारभूत संरचना का विकास करना है। राज्य स्तरीय विश्वविद्यालयों और डिग्री काॅलेजों में शोध हेतु पर्याप्त धन मुहैया कराना है।

तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय, भागलपुर में शिक्षा संकाय के अध्यक्ष प्रोफेसर डॉ. राकेश कुमार ने कहा कि शून्यता से पूर्णता की ओर ले जाती है।शून्य सापेक्षिक है। पूर्ण निरपेक्ष है।

उन्होंने कहा कि सभी शिक्षा आयोगों ने नीतियां बनाई। लेकिन नीतियों का सही से क्रियान्वयन नहीं हो सका। इसलिए हम लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर पाए।

उन्होंने कहा कि आज तथाकथित शिक्षित व्यक्ति से ज्यादा तथाकथितअशिक्षित व्यक्ति ज्ञानी एवं हूनरमंद है। अशिक्षितों के द्वारा नया एवं अभिनव प्रयोग होता है।

 

 

उन्होंने कहा कि नई शिक्षा नीति का लक्ष्य है कि हम एक पेशेवर शिक्षक बने। हम उन कौशलों से युक्त हों, जिससे शिक्षार्थी को आगे ले जा सकें।
शिक्षण सामाजिक सरोकार का पेशा है। शिक्षक की समृद्धि सामाजिक समृद्धि है।

उन्होंने कहा कि मातृभाषा में अभिव्यक्ति आवश्यक है।
मातृभाषा में निर्भीकता, सजगता एवं सहजता होती है। नींव पर अधिक जोर देने की बात है।

उन्होंने कहा कि शिक्षक का अर्थ व्यापक है। जो भी सीख दे सब शिक्षक है। सबसे अच्छा शिक्षक वह है,जो कुछ पढ़ाता नहीं है। लेकिन पढाने के लिए प्रेरित करता है। आज शिक्षकों को अपनी मानसिकता बदलनी होगी। शिक्षकों के अंदर बदलाव हो। हम उस तरीके से समझाएं, जिससे बच्चे समझ सकें। शिक्षकों को क्लास रूम से बाहर भी सोचना होगा।

उन्होंने कहा कि यदि नई शिक्षा नीति को सफल करना है, तो इसे स्वीकार्यता, कार्यदक्षता एवं समावेशिता पर ध्यान देना होगा।

तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय, भागलपुर में गाँधी विचार विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर डॉ. विजय कुमार ने कहा कि आज धरती का ताप, पूंजी का पाप एवं हिंसा का श्राप बढ़ा है। शिक्षकों की यह जिम्मेदारी है कि वह इसे रोके।

उन्होंने कहा कि हमें विज्ञान एवं आध्यात्म का समन्वय करना होगा। विज्ञान एवं आध्यात्म का समन्वय ही सर्वकल्याण का मार्ग है। आध्यात्मविहीन विज्ञान सर्वनाश का मार्ग है।

कार्यक्रम की अध्यक्षता मधेपुरा काॅलेज, मधेपुरा के प्रधानाचार्य डाॅ. अशोक कुमार ने की। संचालन अकादमिक निदेशक प्रोफेसर डॉ. एम. आई. रहमान ने किया। कार्यक्रम में अतिथियों का अंगवस्त्रम्, पाग एवं पुष्पगुच्छ से स्वागत किया गया। अंत में सबों ने सेमिनार का सूत्र वाक्य का पाठ किया, “ग्रंथ से तंत्र, तंत्र से मंत्र एवं मंत्र से संयंत्र की ओर चलें। इस यात्रा में खुद आगे बढ़ें और दूसरों को भी बढ़ने में मदद करें।”

इस अवसर पर बीएनएमभी महाविद्यालय, मधेपुरा के प्रधानाचार्य डाॅ. के. एस. ओझा, डाॅ. विनय कुमार चौधरी, डाॅ. सिद्धेश्वर काश्यप, डाॅ. पूनम यादव, जनसंपर्क पदाधिकारी डाॅ. सुधांशु शेखर, डाॅ. शंकर कुमार मिश्र, डाॅ. स्वर्ण मणि, डाॅ. शेफालिका शेखर, डाॅ. शतेन्द्र कुमार, डाॅ. भगवान कुमार मिश्र, डाॅ. के. बी. एन. सिंह, मनोज भटनागर, ओमप्रकाश, मनोज कुमार झा, मणिभूषण वर्मा, रत्नाकर भारती, डाॅ. आभाष कुमार झा, डाॅ. विनय कुमार विश्वकर्मा आदि उपस्थित थे।

कार्यक्रम में कई शिक्षकों एवं शोधार्थियों ने अपने विचार व्यक्त किए। इनमें डाॅ. इशमलाल करहारिया, डाॅ. बैजवंश कुमार, डाॅ. प्रियंका, अमरेश कुमार अमर, स्वाती प्रिया, मौसमी कुमारी, रूपा कुमारी, अवनिन्द्र सिंह, विवेकानंद, राकेश कुमार रौशन, राजीव कुमार झा, मुकेश कुमार, साधना कुमारी, सुनील हिमांशु वर्णवाल, डाॅ. शंकर यादव, डाॅ. इंदु कुमारी, डाॅ. मणिमाला कुमारी, डाॅ. सरिता कुमारी आदि के नाम शामिल हैं।