शिक्षा : मानक प्रारूप एवं वर्तमान व्यवस्था” विषयक व्याख्यान आयोजित

बीएनएमयू संवाद व्याख्यान माला के तहत डॉ. भुवनेश्वर द्विवेदी, हिन्दी, एसएसपीपीडी पी.जी. कॉलेज, तिसुही, मड़िहान, मीरजापुर, उत्तर प्रदेश ने “शिक्षा : मानक प्रारूप एवं वर्तमान व्यवस्था” विषय पर रोचक व्याख्यान दिया। उन्होंने बताया कि शिक्षा का जो मानक प्रारूप विद्वत जनों द्वारा निर्धारित किया गया था, वर्तमान पीढ़ी कहीं न कहीं उससे कटी जा रही है। पाठ्यक्रम एवं पाठ्यचर्या का मानकीकरण भी समय-परिवेशानुसार ध्वस्त होता जा रहा है। शिक्षा के माध्यम से जहाँ व्यक्ति विकास की बात स्वीकार की गई थी, वहीं आज के समय में शिक्षा के माध्यम से व्यक्त्ति का विकास न के बराबर हो गया है। मनुष्य धनार्जन के लिए आज की शिक्षा को अपने अनुरूप परिवर्तित कर रहा है। औपचारिक शिक्षा में मनोविश्लेषण, अनैतिकता, कटुता, अनाचार, कूटनीति इत्यादि भावों ने अपना घर स्थापित कर लिया है। शिक्षा के मानक प्रारूप में विद्यार्थियों को उनकी पात्रता के अनुसार शिक्षा प्रदान करना आवश्यक होता है, जिसे वर्तमान समय में बिल्कुल ग्रहण नहीं किया जाता।

उन्होंने कहा कि अभिभावक हमेशा अपने पसंद के पाठ्यक्रम को विद्यार्थियों पर थोपता है। इसको अरूचिपूर्ण विद्यार्थी धारण करता और विवशता के चलते हमेशा तनाव पूर्वक शिक्षा ग्रहण करता है। फलतः उससे सफलता कोशो दूर चली जाती है।

उन्होंने कहा कि आज औपचारिक शिक्षा व्यवस्था में परिवर्तन जरूर किया गया है किंतु पाठ्यक्रम एवं पाठ्यचर्या की दिशा बिल्कुल ग्रहणीय नहीं है। वर्तमान में विद्यार्थी वैकल्पिक होता जा रहा है और उसे इसी की लत धरायी जा रही है। उसके अंदर की रचनात्मकता जागृत नहीं हो पा रही है।

उन्होंने कहा कि आज विद्यार्थियों ने शिक्षा का मतलब नौकरी अथवा पैसा कमाना मात्र मान लिया है। वर्तमान में अभिभावक भी अपने बच्चों को यही सीख प्रदान करता है। उसे व्यक्तित्व निर्माण से कोई मतलब नहीं है। वह सिर्फ धनार्जन का व्यक्तित्व अपने बच्चों को धारण कराना चाहता है।

उन्होंने कहा कि आज का समाज पूँजीवादी व्यवस्था वाला है। यहाँ अच्छे चरित्र से कोई मतलब नहीं है बल्कि बुरा चरित्र हो किन्तु धन हो, तो समाज ऐसे व्यक्ति को अपने सिर पर धारण करने हेतु प्रयासरत है।
उन्होंने बताया कि शिक्षा व्यवस्था में समयानुसार पाठ्यक्रम एवं पाठ्यचर्या का परिवर्तन बहुत जरूरी है। साथ ही नियुक्ति की पद्धति एवं मूल्यांकन की पद्धति को भी बदलना अति आवश्यक है।

उन्होंने कहा कि आज मूल्यांकन की स्थिति बहुत खराब है। उसका बुरा असर विद्यार्थियों पर पड़ता है। पढ़ने वाले विद्यार्थी कभी-कभी घटिया मूल्यांकन के चलते धरासायी हो जाते हैं और उनका मनोबल टूट जाता है।

उन्होंने कहा कि शिक्षा में नकलबाजी आज के समय में आम बात हो गयी है। इसके माध्यम से भी हमारी मानक शिक्षा व्यवस्था का ह्रास होता जा रहा है।

जनसंपर्क पदाधिकारी डाॅ. सुधांशु शेखर ने सभी शिक्षकों, विद्यार्थियों एवं आम लोगों से अपील की है कि इस व्याख्यान को सुनकर लाभ उठाएँ।