India। भारत मानव सभ्यता का जनक : प्रोफेसर संजय अवस्थी

भारत सदैव से सम्पूर्ण विश्व के लिए ज्ञान-विज्ञान का केंद्र रहा है। भारतीय संस्कृति सबसे समृद्ध और पुरानी है। भारत मानव सभ्यता का जनक रहा है।

यह बात शासकीय विज्ञान महाविद्यालय, जबलपुर में भौतिक शास्त्र के प्राध्यापक एवं राष्ट्रीय संग़ठन उन्मेष के अध्यक्ष प्रोफेसर संजय अवस्थी ने कही। वे बुधवार को भारत की स्वर्णिम वैज्ञानिक परम्पराएं विषय पर व्याख्यान दे रहे थे। यह आयोजन बीएनएमयू संवाद व्याख्यानमाला के अंतर्गत किया गया।

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उन्होंने कहा कि भारत ने संस्कृत के माध्यम से सर्वप्रथम विश्व को बोलना सिखाया। हमने विश्व को गिनना सिखाया। अगर भारत और अरब गणित में योगदान नहीं देते, तो आधुनिक विज्ञान वो चमत्कार नहीं कर पाता जो उसने आज किये हैं।

उन्होंने कहा कि हमारे देश में विज्ञान की समृद्ध परंपरा रही है। आचार्य आर्यभट्ट, महाऋषि कणाद जैसे ऋषि मुनि आध्यात्मिक विज्ञान के अतिरिक्त भौतिक विज्ञान में भी निष्णात थे। वे ज्ञान के नव क्षितिज तय करने हेतु अध्ययन एवं प्रयोग करते थे।

उन्होंने कहा कि यह दुर्भाग्य की बात है कि हमें अपनी परंपराओं का बोध नहीं है। रेखागणित भारत में ही विकसित हुआ। लेकिन आज हम किसी दसवीं कक्षा के बच्चे से पूछें, तो वो कहेगा कि रेखागणित का पितामह यूक्लिड था। यह यूक्लिड काल्पनिक चरित्र है।

उन्होंने पाइथागोरस प्रमेय को ऋषि बोधायन ने ईसा के प्रादुर्भाव के शताब्दियों पूर्व सिद्ध किया था। हमने पाई का मान शुद्धता से ज्ञात किया। शुल्बसूत्र बताते हैं कि हमारा रेखागणित का ज्ञान कितना उत्तम था। हमने दो की वर्गमूल को यथार्थता से ज्ञात किया।भारत ने विश्व को गिनना सिखाया, रोमन गिनने की पद्धति बहुत ही असुविधाजनक थी।

उन्होंने बताया कि ऋषि भास्कराचार्य ने कैलकुलस विश्व को दिया। पूरी के शंकराचार्य भारती कृष्ण तीर्थ जी ने वेदों के अध्ययन से गणित की सहज और सरल ‘वैदिक गणित पद्धति’ दी।

उन्होंने बताया कि हमारे यहाँ आकाश दर्शन की परंपरा थी। हमने काल गणना की वैज्ञानिक पद्धति दी। ऋषि भास्कराचार्य ने गुरुत्वाकर्षण की बात की। उन्होंन ग्रहण पड़ने का कारण समझाया और पृथ्वी एवं चंद्रमा , की सूर्य की परिक्रमा की बात की। प्रकाश के वेग की बात की, पृथ्वी की परिधि का मापन किया, जो आधुनिक वैज्ञानिक उपकरणों से किये गए मापन से मेल खाता है।

उन्होंने बताया कि हमने वर्ष की लंबाई ज्ञात की, हमारी काल गणना, पूर्णतः वैज्ञानिक थी।वास्तुकला में हम अत्यंत दक्ष थे, धोलावीरा और सृंगवेरपूर की जल प्रदाय व्यवस्था को देख आज के आधुनिक इंजीनियर दांतों तले उंगली दबाते हैं।

उन्होंने कहा कि चिकित्सा विज्ञान में हमारे आयुर्वेद का लोहा विश्व मानता है। आचार्य सुश्रुत विश्व के प्रथम प्लास्टिक सर्जन थे।

उन्होंने बताया कि भारत में राॅकेट का ज्ञान था। टीपू सुल्तान ने अंग्रेजों से युद्ध में इनका उपयोग किया। अंग्रेजों ने टीपू के रॉकेटों को सुधार कर युद्ध मे उपयोग लिया दर्शन के गर्भ से निकले विज्ञान का भली भांति हमारे देश में पोषण हुआ है।

उन्होंने इस बात पर दुख प्रकट किया कि हम अपनी वैज्ञानिक परम्पराओं को नहीं जानते। हम सहिष्णु रहें हैं। 300 वर्षों तक विदेशी लुटेरों के हम पर आक्रमण होते रहे, हमने उनके भी अपनाया, पर इन हमलों ने देश के मनोबल को छिन्न भिन्न कर दिया।

उन्होंने कहा कि सबसे अधिक नुकसान अंग्रेजो ने किया। अंग्रेजों ने हमारी शिक्षा व्यवस्था को पंगु कर दिया। हमारे देश की वैज्ञानिक परम्पराओं को नष्ट किया। हमें अपनी परंपराओं से अनभिज्ञ कर हमें आधुनिक विज्ञान में पीछे कर दिया।

उन्होंने कहा कि अब तक केवल एक विशुद्ध भारतीय को विज्ञान का नोबल मिला। आचार्य रमन ने जब देश गुलाम था तब भारत को विज्ञान का पहला और अब तक अकेला नोबल पुरस्कार दिलवाया।

उन्होंने बताया कि भारत में बाद में भी वैज्ञानिक हुए, जैसे जगदीश चन्द्र बसु, जिनके सिद्धांत का प्रयोग कर मारकोनी ने बेतार के तार का अविष्कार किया। बसु ने बताया की पौधों में भी जीवन होता है। आचार्य सत्येंद्र नाथ बोस का नाम विश्व प्रसिद्ध वैज्ञानिक आइंस्टीन के साथ लिया जाता है। आचार्य प्रफुल्ल चन्द्र राय ने भारत मे सर्वप्रथम रसायनों और औषधियों के औद्योगिक निर्माण की आधारशिला रखी। 33 वर्ष की उम्र लेकर आये गणित के जीनियस रामानुजन की खोजों का उपयोग आज भी विश्व कर रहा है।

उन्होंने बताया कि देश की स्वतन्त्रता के बाद होमी जहांगीर भाभा, विक्रम साराभाई, मेघनाद साहा, सतीश धवन, शांति स्वरूप भटनागर, कलाम साहब ने भारत मे विज्ञान की अधोसंरचना खड़ी करने में योगदान दिया।

उन्होंने कहा कि हमारे पास विज्ञान की स्वर्णिम परम्पराएं हैं। कर्मठ युवा हैं। हमें अपने को ज्ञान के क्षेत्र में पुनः स्थापित करना है। जब जब तक ज्ञान पर अधिकार न होगा, तब तक समर्थ और आत्मनिर्भर भारत का स्वप्न पूरा नहीं हो पायेगा।